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कभी फुटपाथ पर भीख मांगने वाली दोनों हाथों से दिव्यांग अंजना अब पैरों से बनाई पेंटिंग के जरिये जीविका चला रही है

कभी फुटपाथ पर भीख मांगने वाली दोनों हाथों से दिव्यांग अंजना अब पैरों से बनाई पेंटिंग के जरिये जीविका चला रही है। उसकी बनाई कलाकृति दो से पांच हजार रुपये तक में बिक जाती है। जीवन में सही राह दिखाने वाला कोई मिल जाए तो जीने का मकसद ही बदल जाता है। यही अंजना के साथ हुआ।

ऋषिकेश, उत्तराखंड की 32 वर्षीय अंजना मलिक, जो दोनों हाथ न होने के बावजूद किसी मंझे हुए कलाकार की तरह पैरों की अंगुलियों से तूलिका थामे न सिर्फ अपनी कल्पनाओं को आकार दे रही है, बल्कि उसने यह भी साबित कर दिखाया कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। यह सब संभव हो पाया एक विदेशी महिला की प्रेरणा से, जिसने 12 साल तक सड़क के किनारे भीख मांगती रही इस दिव्यांग युवती को सम्मान से जीने का हुनर सिखाकर एक चित्रकार के रूप में प्रतिष्ठित किया। आज उसी फुटपाथ पर अंजना की पेंटिंग को मुंहमांगा दाम मिल रहा है। 

तीर्थनगरी के स्वर्गाश्रम क्षेत्र में सड़क किनारे कागज पर पैर की अंगुलियों से खूबसूरत चित्र उकेरती अंजना पर जिसकी भी नजर पड़ती है, उसके कदम वहीं ठिठक जाते हैं। जन्म से ही दोनों हाथों से दिव्यांग और कमर के हिस्से से भी अक्षम अंजना ने मजबूरी में ऋषिकेश के इसी फुटपाथ पर करीब पंद्रह वर्ष पूर्व भीख मांगना शुरू किया था। यहां से गुजरने वाले लोग एक-दो रुपये के सिक्के उसके डिब्बे में डाल दिया करते थे। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी आते हैं। साल 2015 में स्वर्गाश्रम घूमने आई एक अमेरिकी कलाकार स्टीफेनी की नजर अंजना पर पड़ी। उस वक्त अंजना अपने पैर की अंगुलियों से चारकोल का छोटा सा टुकड़ा थामे फर्श पर ‘राम’ शब्द उकेरने का प्रयास कर रही थी। स्टीफेनी को अंजना के भीतर छिपा कलाकार नजर आ गया और उसने कुछ समय तक यहीं पर अंजना को चित्रकला का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। 

फिर क्या था, अंजना के सपने आकार लेने लगे और धीरे-धीरे वह एक मंझी हुई कलाकार बन गई। वह देवी-देवताओं, पशु-पक्षियों और प्रकृति की सुंदरता को कागज पर आकार देने लगी। यही नहीं, उसके बनाए चित्रों के अच्छे दाम भी मिलने लगे। वर्तमान में अंजना के बनाए चित्रों की कीमत न्यूनतम दो हजार रुपये है। उसकी एक पेंटिंग को तो सात हजार रुपये तक का दाम मिल चुका है, जो एक विदेशी पर्यटक ने दिया। 

अंजना ने बताया कि स्टीफेनी नामक जिस विदेशी कलाकार ने उसे यह हुनर सिखाया, वह फिर दोबारा उसके पास नहीं आईं। अलबत्ता, पिछले वर्ष उसे अमेरिका से एक पार्सल मिला, जिसमें उसके चित्रों का एक सुंदर एलबम और कुछ उपहार थे। 

परिवार का सहारा है अंजना

अंजना बताती है कि उसे एक पेंटिंग तैयार करने में चार से पांच दिन का समय लगता है। वह स्वयं के अलावा घर में बीमार पिता, मां और दिव्यांग भाई का भी सहारा है। अब उसका परिवार ऋषिकेश में किराये के मकान पर रहता है और अंजना का सपना अपना घर बनाने का है।

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