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डाला छठ में प्रमुख रूप से भगवान सूर्य की होती है पूजा, खास है यह व्रत

सूर्य पूजा का पर्व  

छठ पूजा के कर्इ नाम हैं जैसे , छठ पूजा, छठ, छठी माई के पूजा, छठ पर्व, छठ पूजा, डाला छठ, डाला पूजा, आैर सूर्य षष्ठी आदि। इस व्रत में भगवान सूर्य की पूजा की जाती है और अस्त गामी एवं उदित होते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है और पूजा की जाती है। इस व्रत प्रसाद मांग कर खाने का विधान है।

स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को एक बार भोजन करना चाहिए तत्पश्चात प्रातः काल व्रत का संकल्प लेते हुए संपूर्ण दिन निराहार रहना चाहिए। इस दिन वाणी पर संयम रखना चाहिए। किसी नदी या सरोवर के किनारे जाकर फल, पुष्प, घरके बनाए पकवान, नैवेद्यए धूप आैर दीप आदि से भगवान का पूजन करना चाहिए। लाल चंदन और लाल पुष्प भगवान सूर्य की पूजा में विशेष रूप से रखने चाहिए और अंत में ताम्र पात्र में शुद्ध जल लेकर के उस पर रोली, पुष्प, आैर अक्षत डालकर उन्हें अर्ध्य देना चाहिए

छठ माता का भी पूजन 

छठ के व्रत में आटे और गुड़ से युक्त ठेकुआ विशेष रूप से बनाए जाते हैं। चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है। सूर्य भगवान के साथ साथ इस दिन छठ माता की पूजा भी जाती है। उदयागामी अर्ध्य के पश्चात् उनका विसर्जन किया जाता है और ऐसी मान्यता है कि पंचमी के सायं काल से ही घर में छठ माता का आगमन हो जाता है। डाला छठ का व्रत मनोकामना की पूर्ति के साथ-साथ संतान की कामना के लिए भी किया जाता है।

रोग मुक्ति का आर्शिवाद 

एेसी मान्यता है कि सूर्य की पूजन से चर्म रोग और आंखों की बीमारी से भी छुटकारा मिलता है। कहते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण से प्रारंभ हुर्इ थी। वे प्रतिदिन उनको गंगा में खड़े हो कर अर्ध्य देते थे और सूर्य की कृपा से महान योद्धा बने। इस बारे में एक आैर कथा के अनुसार भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था। इस रोग से मुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गयी, जिसके लिए शाक्य द्वीप से ब्राह्मणों को बुलाया गया था।

सूर्य पूजा का महातम्य

छठ पूजा में सूर्य देव का सर्वाधिक महातम्य है। उनके लिए कहा जाता है कि वे एकमात्र ऐसे देवता है  जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है। सूर्य की पत्नियां उषा और प्रत्यूषा है, जो उनकी शक्ति भी मानी जाती हैं। छठ पूजा में सूर्य के साथ इन दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना की जाती है। छठ पर्व अस्ताचल गामी सूर्य की अंतिम किरण से प्रत्यूषा और व्रत पारण पर सूर्य की पहली किरण से उषा की पूजा की जाती है। इस पूजा को संतान और परिवार की खुशहाली के लिए किया जाता है। छठ पूजा में मन्नत मांगने और मन्नत पूरी होने पर कोसी भरने का रिवाज है। विवाह, नई बहू के आगमन आैर बच्चे के जन्म पर कुल परंपरा के अनुसार कोसी भरी जाती है।

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