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पीएयू की ओर से किसानों को जागरूक करने के लिए पंजाबी भाषा में दो वीडियो बनाए हैं

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की ओर से शुरू की गई पराली न जलाने की मुहिम खूब रंग ला रही है। प्रदेश के बाहर पर्यावरण बचाने में जुटे संगठन भी इसकी खूब तारीफ कर रहे हैं। पीएयू की ओर से किसानों को जागरूक करने के लिए पंजाबी भाषा में दो वीडियो बनाए हैं। इनमें पराली न जलाने का संदेश व न जलाने के फायदे बताए गए हैं।

इसके अलावा जागरूकता के प्रोग्राम भी करवाए जा रहे हैं। इन्हें सोशल मीडिया, रेडियो, टेलीविजन पर प्रचारित किया जा रहा है। जिन गानों के माध्यम से जागरूक किया जा रहा है उनमें वीरा आग न पराली नूं लगा, ओए गल मान लै। फिजूल समझ न जला पराली ये तो कीमती मोती। घर फूंक न देखिए दीवाली, साड़ीं न पराली प्रमुख हैं।

पीएयू के विभिन्न कॉलेजों के स्टूडेंट गुरप्रीत सिंह एमटेक, पलविंदर सिंह एमएससी फॉरेस्ट, गुरजीत शर्मा बीएससी एग्रीकल्चर थर्ड ईयर, शरणदीप कौर ढिल्लोंं रिसर्चर, जसवंत सिंह एमएससी एक्सटेंशन सहित 60 विद्यार्थियों के सहयोग से तीन वीडियो बन चुके हैं, जिसमें पहली वीडियो 20 जून को गत वर्ष रिलीज हुई थी। इसमें पानी बचाओ पर संदेश था।

गांव पड़ैन में हुई शूटिंग में दिखाया गया कि पराली जलाने के लिए किसान कैसे सोचता है और वो सरकारी सुविधाओं से जागरूक न होकर पराली जलाने को मजबूर है। दूसरा युवा चिंतित किसान को पराली न जलाने को लेकर सरकारी स्कीमों के बारे में जागरूक करता है।

इसके अलावा तीसरी वीडियो में पराली न जलाने से भूमि में पाए जाने वाले कीमती तत्व फास्फोरस, गंधक, पोटाश, नाइट्रोजन के तत्व होते हैं जो पराली जलाने से खत्म हो जाते हैं। ऐसे में पराली न जलाने से खेती खर्च कम होते हैं और पैदावार अधिक होती है का संदेश दिया गया है।

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के कम्युनिकेशन विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. अनिल शर्मा का कहना है कि यदि किसानों को विज्ञान आसान तरीके व सरल भाषा में पहुंचाना है तो सोशल मीडिया प्रचार व प्रसार का मुख्य साधन बन चुका है। किसानों में जागरूक करने के लिए कुनैन की दवा को शहद बनाना पड़ता है। हम भावनात्मक तरीके से अपने संदेश किसानों तक पहुंचा सकते हैं, जिसमें पराली जलाना नुकसानदायक है। पीएयू के वीसी डॉ. बलदेव सिंह ढिल्लों के प्रयासों से राज्यभर में जागरूकता फैलाई जा रही है।

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