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भूकंप की सटीक भविष्यवाणी जुटे वैज्ञानिक, तबाही से बचाने के लिए प्रयास जारी

भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में हर साल विनाशकारी भूकंप से हो रही भारी तबाही से चिंतित विज्ञानियों ने इस प्राकृतिक आपदा की पहले ही सटीक भविष्यवाणी की दिशा में तेजी से काम करना शुरू कर दिया है। इसके लिए भारत समेत कई देशों के वैज्ञानिक पिछले 2000 साल में आए विनाशकारी भूकंपों का डाटा बैंक तैयार करने में जुटे हैं।

देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के भूकंप विज्ञानियों की टीम देश के तमाम राज्यों में आए विनाशकारी भूकंपों का अध्ययन कर रही है। पिछले 2000 साल में आए विनाशकारी भूकंपों का अध्ययन करने के लिए ऑप्टिकल स्टीमुलेटेड ल्यूमिनेशन (ओएसएल) तकनीक का सहारा लिया जा रहा है। साथ ही रेडियो कार्बन डेटिंग, रेडॉन गैस इमिशन मेजरमेंट (आरजीईएम), मैग्नेटिक फील्ड मेजरमेंट (एमएफएम) जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। वहीं, भूकंप की सटीक भविष्यवाणी के लिए जीआईएस तकनीक से इमेज के जरिये भी डाटा जुटाया जा रहा है।

उत्तराखंड समेत अन्य राज्यों में किया जा रहा अध्ययन

संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया कि भूकंपों का डाटा बैंक तैयार करने का काम केवल भारत में नहीं वरन पूरी दुनिया में किया जा रहा है। उक्त डाटा के अध्ययन के बाद ही इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकेगा कि दुनिया के तमाम देशों में किस किस अंतराल पर कितनी क्षमता के भूकंप आए।

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एस. एस. भाकुनी बताते हैं कि भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील उत्तराखंड के अलावा देश के सभी हिमालयी राज्यों के साथ ही असम, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात में पहले आए विनाशकारी भूकंपों की जानकारियां जुटाई जा रही हैं।  अध्ययन के दौरान भूकंप की तिथि, उसकी अवधि, क्षमता का भी अध्ययन किया जा रहा है।

इसलिए आ रहे विनाशकारी भूकंप
संस्थान के विशेषज्ञों की मानें तो धरती के भीतर इंडियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट के खिसकने के कारण विनाशकारी भूकंप आ रहे हैं। जिस तरह इंडियन प्लेट खिसक रही है, उससे आने वाले समय में किसी बड़े भूकंप की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। भूकंप वैज्ञानिकों की मानें तो उत्तराखंड समेत देश के हिमालयी राज्यों में विनाशकारी भूकंप का खतरा ज्यादा है।

‘वैज्ञानिकों के पास पिछले 100 वर्ष में आए भूकंपों की जानकारी है, लेकिन उससे पूर्व की कोई जानकारी नहीं है। इस प्रोजेक्ट से सटीक भविष्यवाणी करने में काफी मदद मिलने की संभावना है।’

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