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मायावती को फिर राजनीतिक झटका

617793553_mayawatiबूंद- बूंद से घड़ा भरता है और एक-एक कार्यकर्ता से पार्टी लेकिन बसपा इसकी अपवाद है। वह खुद को समुद्र समझ बैठी है। उससे चाहे जितना भी पानी निकाला जाए, पानी कम नहीं होगा। मतलब चाहे जितने भी पार्टी कार्यकर्ता और पदाधिकारी निकल जाएं,भले ही वे कितने भी महत्वपूर्ण क्यों न हों, मायावती और उनकी पार्टी पर कोई असर नहीं होता। मायावती और उनके रणनीतिकारों के बड़बोले बयान तो कुछ ऐसा ही संदेश दे रहे हैं। बसपा के कद्दावर नेता न केवल पार्टी में घुटन महसूस कर रहे हैं बल्कि पार्टी को अलविदा कहने को बेताब हैं। कुछ अलविदा कह चुके हैं और कुछ उचित समय का इंतजार कर रहे हैं। विद्रोह का लावा अंदर ही अंदर प्रबल हो रहा है। इसमें संदेह नहीं कि मायावती को इन दिनों झटके पर झटके लग रहे हैं। उनके एक और विश्वस्त सिपहसालार ने उनका साथ छोडऩे का ऐलान कऱ दिया है। उन पर पैसा बटोरने और टिकट बेचने का भी आरोप लगाया है। अब तक जितने भी नेताओं ने बसपा छोड़ी है, सबका यही आरोप रहा है।  इससे पूर्व बसपा के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने मायावती को दौलत की बेटी करार देते हुए पार्टी छोड़ दी थी। तब मायावती ने सफाई दी थी कि अगर स्वामी प्रसाद पार्टी न छोड़ते तो वे उनको खुद निकाल देतीं। उन्होंने स्वामी प्रसाद मौर्य पर परिवारवाद की राजनीति करने का आरोप लगाया था लेकिन दलित नेता आरके चौधरी के मामले में वे क्या कहेंगी। आरके चौधरी कांशीराम से अभिन्न रूप से जुड़े रहे हैं। बसपा में अपना प्रभाव बढ़ते ही मायावती ने वर्ष 2001 में आरके चौधरी और बरखूराम वर्मा को उन्होंने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा  दिया था। करीब 12 साल के बाद आरके चौधरी की बसपा में वापसी  हुई थी। इस बीच उन्होंने खुद की पार्टी बीएस-4 बना ली थी। यह अलग बात है कि बरखूराम वर्मा उनसे पहले ही बसपा में शामिल हो गए थे। आरके चौधरी को पता था कि मायावती पार्टी नेताओं को निकालने में गर्व का अनुभव करती हैं। इसलिए उन्होंने पहले ही मायावती को जोर का झटका दिया है। स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद यह दूसरा मौका है जब उनके किसी सिपहसालार ने उन्हें शिकस्त दी है।  उन्हें निकालने का मौका ही नहीं दिया। खुद पार्टी छोड़ दी और मायावती को आरोपों के कठघरे में खड़ा कर दिया। जो काम कभी मायावती किया करती थी,वही काम अब उनके सिपहसालार कर रहे हैं।  स्वामी प्रसाद मौर्य पार्टी छोड़ेंगे, इसकी भनक तो उनके घर के रंग-रौगन से लग गई थी। उन्होंने नीले रंग से घर सजाने की बजाय किसी और रंग का सहारा लिया था लेकिन आरके चौधरी ने तो पार्टी आलाकमान को  इसका भान तक नहीं होने दिया। जब स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा छोड़ी थी तब मायावती ने कहा था कि उनकी जाति के लोग उनके साथ नहीं जाएंगे और बसपा के रणनीतिकार कुछ उसी तरह का राग आलाप रहे हैं कि आरके चौधरी के साथ पासी समाज हरगिज नहीं जाएगा। पहले भी जब उन्होंने बसपा छोड़ी थी तब भी पासी समाज उनके साथ नहीं गया था। अगर बसपा के रणनीतिकारों की बात में वाकई  दम है तो फिर मायावती ने उन्हें दोबारा बसपा में क्यों शामिल किया था ?सच तो यह है कि बीएस-4 से बसपा की सियासी जमीन दरकने लगी थी। बसपा महासचिव नसीमुद्ददीन सिद्दीकी ने तो यहां तक कह दिया था कि जब तक आरके चौधरी बसपा में थे, तब तक पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। उनके पार्टी से हटते ही बसपा को स्पष्ट बहुमत मिला और अब जब उन्होंने बसपा छोड़ दी है तो इस बार फिर पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलेगा। इसे बसपा के रणनीतिकारों का अति आत्मविश्वास कहेंगे या दिमाग का दिवालियापन। प्रयास तो पार्टी से पलायन रोकने का होना चाहिए था लेकिन पार्टी छोडऩे पर जिस तरह के अवैज्ञानिक तर्क दिए जा रहे हैं, उसे शुभ संदेश तो नहीं ही कहा जा सकता। बेहतर होता कि मायावती इस बावत आत्ममंथन करतीं।

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