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राफेल हलफनामे पर: स्वामी बोले, ‘क्या हम अंग्रेजी में बेहतर ड्राफ्ट भी तैयार नहीं कर सकते?’

राफेल मामले में केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम में दायर किए हलफनामे पर बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा है, ‘अगर अटॉर्नी जनरल कह रहे हैं कि उन्होंने इस हलफनामे को तैयार नहीं किया है तो फिर ये किसने किया है? मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री को इसका पता लगाना चाहिए. क्योंकि इससे उनकी छवि खराब होती है, क्या हम अंग्रेजी में एक बेहतर ड्राफ्ट भी तैयार नहीं कर सकते है, वे इसे हिंदी में भी दे सकते थे.’

स्वामी ने कहा, ‘ये सामान्य सवाल है, जब भी हलफनामा दाखिल किया जाता है वह सील कवर में होता है, लेकिन इस बार ये इत्तिफाक है कि कोर्ट के फैसले में इसका जिक्र किया गया है नहीं तो हम ये जान ही नहीं पाते कि इसमें क्या लिखाहै. अगर जजों का फैसला इस पर आधारित है तो इससे न्याय को धक्का लगेगा.’

बता दें कि केंद्र सरकार ने आनन-फानन में शनिवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख कर राफेल करार से जुड़े शीर्ष अदालत के फैसले के उस हिस्से में सुधार की गुहार लगाई जिसमें नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) और लोक लेखा समिति (पीएसी) का जिक्र है. सरकार को लगा कि यदि फैसले में सुधार कराने में देरी हुई तो विपक्ष को उस पर हमलावर होने का बड़ा मौका मिल जाएगा. सूत्रों ने यह जानकारी दी.

केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया कि उसके आदेश में जहां सीएजी रिपोर्ट और पीएसी का जिक्र है, वहां उसके नोट की ‘‘गलत व्याख्या’’ की गई और ‘‘नतीजतन, सार्वजनिक तौर पर विवाद पैदा हो गया.’’ 

सूत्रों ने बताया कि रक्षा एवं कानून मंत्रालयों के आला अधिकारियों और अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल के बीच शनिवार को एक मैराथन बैठक हुई, जिसमें तय किया गया कि सुप्रीम कोर्ट में आज ही एक अर्जी दायर कर फैसले में सुधार की गुजारिश की जाए.

उन्होंने बताया कि शीर्ष अदालत का रुख करने में जरा भी देरी से भ्रम बढ़ेगा और विपक्ष को संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार पर हमलावर होने का बड़ा मौका मिल जाएगा. राफेल करार के मुद्दे पर कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष पहले ही सरकार के खिलाफ काफी आक्रामक है.

पीएसी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पहले ही कह चुके हैं कि राफेल विमानों को लेकर उन्हें सीएजी की कोई रिपोर्ट नहीं मिली है. विपक्ष ने मोदी सरकार पर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने के आरोप भी लगाए हैं. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि करार में विमानों की कीमत का ब्योरा सीएजी से साझा किया जा रहा है और सीएजी ने अपनी रिपोर्ट संसद की पीएसी से साझा की है. 

अपनी अर्जी में केंद्र ने कहा कि फैसले के 25वें पैरा में दो वाक्य उसकी ओर से एक सीलबंद कवर में दिए गए कीमतों के ब्योरे के साथ सौंपे गए एक नोट पर आधारित लग रहे हैं. लेकिन सरकार ने संकेत दिए कि अदालत की ओर से इस्तेमाल किए गए शब्द इसे एक अलग अर्थ दे रहे हैं.

केंद्र ने साफ किया कि उसने यह नहीं कहा कि पीएसी ने सीएजी की रिपोर्ट का परीक्षण किया या कोई संपादित हिस्सा संसद के समक्ष रखा गया है.सरकार ने साफ किया कि नोट में कहा गया था कि सरकार सीएजी के साथ कीमतों का ब्योरा ‘‘पहले ही साझा कर चुकी’’ है. यह नोट भूतकाल में लिखा गया था और ‘‘तथ्यात्मक तौर पर सही’’ है. याचिका के मुताबिक, वाक्य का दूसरा हिस्सा पीएसी के संबंध में है. इसमें कहा गया है कि कैग की रिपोर्ट का पीएसी परीक्षण कर रही है. फैसले में ‘इज’ की जगह ‘हैज बीन’ का इस्तेमाल हुआ है. 

केंद्र ने शीर्ष अदालत के आदेश में आवश्यक संशोधन की मांग करते हुए कहा कि इसी तरह फैसले में यह कथन है कि रिपोर्ट का संपादित हिस्सा संसद के सामने रखा गया. इस बारे में कहा गया कि रिपोर्ट का संपादित हिस्सा संसद के सामने रखा गया और यह सार्वजनिक है. 

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