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रामपुर तिराहा कांड: आंदोलनकारियों और महिलाओं के साथ हुई बर्बरता के मामले में हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

रामपुर तिराहा कांड: आंदोलनकारियों और महिलाओं के साथ हुई बर्बरता के मामले में हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य आंदोलन के दौरान दो अक्टूबर की रात राज्य आंदोलनकारियों और महिलाओं के साथ हुई बर्बरता के मामले में सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड सरकार को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के आदेश पारित किए हैं।

कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव गृह को याचिका में पक्षकार बनाते हुए पूछा है कि इस मामले के जिम्मेदार पुलिस व प्रशासनिक अफसरों पर क्या कार्रवाई हुई और तमाम अदालतों में रामपुर तिराहा कांड से संबंधित मुकदमों का स्टेटस क्या है? सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता परेश त्रिपाठी मौजूद रहे।
रामपुर तिराहा कांड: आंदोलनकारियों और महिलाओं के साथ हुई बर्बरता के मामले में हाईकोर्ट ने मांगा जवाब
राज्य आंदोलन के दौरान दो अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा कांड में पीड़ितों को अब तक न्याय न मिलने व फायरिंग के आरोपितों पर कार्रवाई नहीं होने के मामले का हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया। कोर्ट ने इसे जनहित याचिका के रूप में स्वीकार कर सूचीबद्ध किया है।

मामले की सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ में हुई। 23 साल बाद कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है, जिससे शहीद, घायल आंदोलकारियों के साथ ही अस्मत लुटा चुकी महिलाओं को न्याय की उम्मीद जगी है।

24 साल पहले की वो काली रात आज तक कोई नहीं भुला पाया। चारों तरफ आंदोलनकारियों की लाशें और बस चीख पुकार। फायरिंग में सात उत्तराखंडियों की मौत होने के साथ ही 17 जख्मी हो गए थे। 400 आंदोलनकारियों को पकड़कर सिविल लाइंस थाने ले जाया गया था। सुबह हुई तो महिलाओं की अस्मत लूटे जाने की बात सामने आई।

प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो पृथक राज्य की मांग को लेकर आंदोलनकारी 36 बसों में सवार होकर दिल्ली में दो अक्तूबर को प्रस्तावित रैली में भाग लेने जा रहे थे। गुरुकुल नारसन में आंदोलनकारियों के बैरियर तोड़कर आगे बढ़ जाने के बाद यूपी पुलिस ने रामपुर तिराहे पर उन्हें रोकने की योजना बनाई थी। 

पूरे इलाके को सील कर आंदोलनकारियों की बसों को रोक लिया था। आंदोलनकारियों ने सड़कों पर बैठकर नारेबाजी शुरू कर दी थी। आंदोलनकारी दिल्ली जाने की जिद पर अड़े थे। रात में बारह बजे के करीब पुलिस ने आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज कर दिया। इसी बीच फायरिंग भी शुरू हो गई। करीब दो बजे तक पुलिस का दमन चक्र चलता रहा। 

आंदोलन के दौरान केंद्रीय तथ्य अन्वेषण कमेटी के अध्यक्ष सुरेंद्र कुमार ने बताया कि दो अक्तूबर की रैली में शामिल होने के लिए हम दिल्ली के रास्ते में थे। तब ही पता चला कि मुजफ्फरनगर में बर्बर कांड हो गया है। हर उत्तराखंडी की तरह ये खबर मेरे लिए भी विचलित करने वाली थी। उसके बाद का आक्रोश हम सबने देखा। 

राज्य आंदोलन से जुडे़ प्रमुख आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती का कहना है कि रामपुर तिराहा में बर्बर हत्याकांड और मातृ शक्ति के अपमान ने जैसे उत्तराखंड में आग लगा दी थी। मुझे अच्छे से याद है कि इसकी प्रतिक्रिया। सभी लोग पुलिस कंट्रोल रूम के बाहर जमा हो गए थे। एक हुजूम उमड़ पड़ा था। सभी को अपनों की चिंता थी। सब जानना चाहते थे कि उनका बेटा, बेटी, मां-पिता, भाई-बहन सुरक्षित है या नहीं। पुलिस प्रशासन के पास कोई जवाब नहीं था। हर तरफ बेचैनी थी। हर कोई विचलित था। 

जब शहीद पोलू का पार्थिव शरीर देहरादून पहुंचा, तो फिर हालात बेकाबू थे। उसके बाद नियंत्रण से बाहर हुई स्थिति सबने देखी है। यह उन आंदोलनकारियों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी, जो अपना हक मांगने और शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए दिल्ली जाना चाहते थे। जिन्हें गांधी जयंती के दिन मौत और अपमान नसीब हुआ। आज इस बात पर दुख होता है कि शहीदों की शहादत और आंदोलनकारियों के संघर्ष को हर सरकार ने भुला दिया है।

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