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सत्ता में रहते अटल जी ने हर बार बड़ी मुसीबतों का डटकर किया था सामना

अटल बिहारी वाजपेयी को केंद्र की सत्ता में रहते कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। पोखरण में परमाणु परीक्षण के बाद देश पर पाबंदियों के बाद अर्थव्यवस्था को संभाले रखने की चुनौती हो या कारगिल में पाकिस्तान से मिला धोखा, अटल ने हर बार हर मुसीबत का डटकर सामना किया। 

केंद्र की तत्कालीन अटल सरकार ने 13 मई, 1998 को पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट कर भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर दिया। इस कदम से उन्होंने भारत को निर्विवाद रूप से दुनिया के नक्शे पर मजबूत वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित किया। 

यह सब इतनी गोपनीयता से किया गया कि अत्याधुनिक जासूसी उपग्रहों और तकनीकी से संपन्न पश्चिमी देशों को इसकी भनक तक नहीं लगी। इसके बाद पश्चिमी देशों की ओर से भारत पर कई प्रतिबंध लगाए गए, लेकिन वाजपेयी सरकार ने सबका सामना करते हुए आर्थिक विकास की ऊंचाइयों को छुआ।

कारगिल युद्ध

19 फरवरी, 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू की गई। इसका उद्घाटन करते हुए प्रथम यात्री के तौर पर वाजपेयी ने पाकिस्तान की यात्रा कर तत्कालीन पीएम नवाज शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में नई शुरुआत की घोषणा की। हालांकि, कुछ ही समय बाद पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना और आतंकियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ कर कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। 

अटल सरकार ने पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन नहीं करने की अंतरराष्ट्रीय सलाह का सम्मान करते हुए धैर्यपूर्वक ठोस कार्रवाई कर भारतीय क्षेत्र को पाकिस्तानी सेना से मुक्त कराया। इस युद्ध में भारतीय सेना को जान माल का काफी नुकसान हुआ। इसके बाद पाकिस्तान के साथ शुरू किए संबंध सुधार फिर बेपटरी हो गए।

विमान अपहरण

24 दिसंबर, 1999 में अटल के शासनकाल में इंडियन एयरलाइंस की उड़ान संख्या आईसी 814 को हरकत-उल-मुजाहिदीन के पांच आतंकियों ने अपहरण कर लिया। आतंकी विमान को अमृतसर, लाहौर और दुबई ले गए। विमान में 176 यात्री सवार थे। दुबई में 27 यात्रियों को छोड़ दिया गया। इसके बाद आतंकी विमान को अफगानिस्तान के कांधार ले गए।

 उन्होंने विमान को छोड़ने के बदले मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुश्ताक अहमद जरगर जैसे कुछ आतंकियों को भारत की जेलों से छोड़ने की मांग की। विमान में सवार यात्रियों की सुरक्षा को लेकर दबाव में आई अटल सरकार ने सातवें दिन तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह के साथ मसूद अजहर समेत तीन आतंकियों को कांधार रवाना कर दिया। अटल सरकार के इस फैसले की आज भी आलोचना की जाती है। 

संसद पर हमला
13 दिसबंर, 2001 को पाकिस्तान परस्त पांच आतंकियों के एक समूह ने संसद पर हमला किया। सुरक्षाबलों ने पांचों आतंकियों को मार गिराया। हालांकि, हमले में दिल्ली पुलिस के 6 जवान और अर्द्धसैनिक बल के दो जवान शहीद हो गए, जबकि एक माली की मौत हो गई। हमले में लश्कर-ए-तईबा और जैश-ए-मोहम्मद का हाथ था। इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया। अटल सरकार ने पंजाब, राजस्थान, गुजरात और कश्मीर सीमा पर सेना के पांच लाख सैनिकों को बढ़ा दिया। 

गुजरात दंगे

गोधराकांड के बाद फरवरी, 2002 में गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों में 1,000 से ज्यादा हिंदू-मुस्लिमों की मौत हुई। सैकड़ों लोग घायल और लापता हो गए। तब अटल ने आधिकारिक तौर पर दंगों की कड़ी निंदा की थी। उन्होंने गुजरात दौरे के दौरान तब के गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी को राजधर्म निभाने की सलाह दी थी। तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने वाजपेयी सरकार पर दंगों को रोकने में नाकाम रहने का आरोप भी लगाया था।
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