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गिरि इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज को तीन दशक बाद याद आई किताब

गिरि इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज (गिड्स) को 45 रुपये की वसूली करने की याद 33 साल बाद आई है। इंस्टीट्यूट द्वारा जिन पर बकाया राशि निकाली गई है वह अब गैर प्रांत के शैक्षिक संस्थान से सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं। प्रो. चंद्रनाथ ने जब मेल देखी तो पहले तो वे अचंभित हो गए। फिर उन्हें इतने समय के बाद संस्थान के संज्ञान लेने पर हंसी आई।

अलीगंज के सेक्टर ओ में केंद्र और राज्य सरकार के द्वारा शोध संस्थान गिड्स संचालित है। साल 1986 में जब संस्थान किराए के परिसर में संचालित किया जा रहा था तब यहां से प्रो. चंद्रनाथ रे (सीएन रे) ने पीएचडी की। 29 जनवरी 2019 को प्रोफेसर को संस्थान की ओर से मेल आया। इसमें कहा गया कि पीएचडी के दौरान आप द्वारा एक बुक पीजेंट मूवमेंट इन इंडिया, नार्थ बिहार (1917, 1942) इश्यू कराई गई थी, जिसकी कीमती 45 रुपये है। प्रो. रे पर किताब के 45 रुपये बकाया बताया गया है। साथ ही इसे जल्द से जल्द जमा करने के लिए भी कहा गया है।

प्रो. चंद्रनाथ रे तीन दशक से अधिक अहमदाबाद के नामी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुए। मौजूदा समय में वह सेप्ट विश्वविद्यालय में बतौर गेस्ट लेक्चरर सेवाएं दे रहे हैं। प्रो. चंद्रनाथ को 45 रुपये बकाया की जानकारी होने पर वह भी आश्चर्यचकित रह गए और लखनऊ विश्वविद्यालय में तैनात अपने एक जूनियर शिक्षक से बकाया राशि जमा करने के लिए फोन पर कहा।

45 रुपये के लिए भेजा बैंक खाते का ब्योरा

इंस्टीट्यूट की ओर से प्रो. रे से बकाया राशि जमा कराए जाने के लिए बकाया बैंक का ब्योरा भी भेजा गया है। संस्थान द्वारा यूनियन बैंक का खाता नंबर देते हुए भुगतान के लिए कहा गया है।  

गिरि इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के निदेशक ब्रजेश कुमार बाजपेई ने बताया कि प्रो. रे हमारे भी बहुत अच्छे जानने वाले हैं। उन्होंने हमारे यहां से पीएचडी की थी। लंबे समय से कुछ किताबें मिसिंग थीं, जो ऑडिट में पकड़ में आई हैं। कई लोगों को रिकवरी ईमेल भेजा गया है। उन्हें भी ईमेल चली गई होगी। मैं उनसे बात कर लूंगा।

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