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गर्भपात कानून पर सुप्रीम कोर्ट का सरकारों को नोटिस  

unnamed (4)नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात से जुड़े कानून की समीक्षा करते हुए इस मामले में केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भेजा है। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को इस मामले में शुक्रवार तक जवाब देने को कहा है।  एक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर गर्भपात कानून को चुनौती दी है। अब तक कानून के मुताबिक 20 हफ्ते तक का गर्भपात कराया जा सकता है। कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली महिला का कहना है कि डॉक्टरों के मुताबिक उसके गर्भ में पल रहा भ्रूण सामान्य नहीं है। इसलिए उसके मानसिक विकारों के साथ जन्म लेने की आशंका है। वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्वेज और सत्या मित्रा ने इस मामले की तत्काल सुनवाई के लिए उल्लेखन करते हुए कहा कि इस मामले में महिला का जीवन गंभीर खतरे में है। याचिका में कहा गया है कि 20 हफ्ते की समयसीमा अतार्किक,एकतरफा, कठोर,भेदभावपूर्ण और जीवन व समानता के अधिकार का उल्लंघन है। महिला ने आरोप लगाया है कि उसके पूर्व प्रेमी ने शादी का झांसा देकर उसके साथ दुर्व्यवहार किया जिससे वह गर्भवती हो गई। महिला गर्भपात करना चाहती है लेकिन उसे गर्भधारण किए हुए 24 सप्ताह हो गए हैं। ऐसे में इस महिला ने 20 सप्ताह से अधिक के गर्भ को गिराने की इजाजत नहीं होने को अतार्किक, भेदभावपूर्ण, अतार्किक और मनमानापूर्ण बताया है और गर्भपात कानून के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की।  महिला का कहना है कि डॉक्टरों के मुताबिक उसके गर्भ में पल रहा भ्रूण सामान्य नहीं है और उसके मानसिक विकारों के साथ जन्म लेने की आशंका है। याचिका में मेडिकल टर्मिनेशनल ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी)एक्ट 1971की धारा 3 बी को चुनौती दी गई है। इसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। धारा के तहत 20 सप्ताह के बाद गर्भपात नहीं करा सकते। याचिका के मुताबिक 1971 में जब ये कानून बना था तब भले ही इसका औचित्य रहा होगा लेकन अब नहीं है क्योंकि अब ऐसी आधुनिक तकनीक मौजूद है जिससे 26 सप्ताह के बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है। याचिका के मुताबिक भ्रूण में गंभीर आनुवांशिक विकार का पता 20 सप्ताह बाद ही चल पाता है, इसलिए 20 सप्ताह के बाद गर्भपात की इजाजत न होना बेहद सख्त और अनुचित है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है। । याचिका में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट की धारा 5 की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई है। याचिका के मुताबिक अस्पतालों में डॉक्टर इस धारा के बेहद संकुचित मायने निकालते हैं। याचिका में मांग की गई है कि मेडिकल टर्मिनेशनल ऑफ प्रेग्नेंसी कमेटी की रिपोर्ट को अदालत में पेश किया जाए। इस कमेटी में स्वास्थ्य सचिव,नरेश दयाल(पूर्व सचिव,आईसीएमआर) और डॉ एन के गांगुली शामिल है। याचिका में मांग की गई है कि केन्द्र सरकार सभी अस्पतालों को निर्देश दें कि वो अपने यहां डॉक्टर्स का एक अतिरिक्त पैनल बनाएं जो बलात्कार पीडि़त लड़कियों और महिलाओं का गर्भपात करा सकें जो 20 हफ्ते से ज्यादा की गर्भवती हों और ऐसा चाहती हों।

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