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अक्सर ये कहा जाता है कि नाम में क्या रखा ?लेकिन क्या आप फिरोज गांधी के बारे में जानते हैं

हमारे देश में अक्सर ये कहा जाता है कि नाम में क्या रखा है ? लेकिन असलियत ये है कि नाम में ही सबकुछ रखा है. और अगर नाम के साथ Gandhi Surname लगा हो, तो उसका असर पीढ़ियों तक रहता है. आज हम देश के इस सबसे मशहूर और शक्तिशाली Surname का DNA टेस्ट करेंगे. और इस Surname का फिरोज़ गांधी से सीधा रिश्ता है. 

कल हमने आपको बताया था कि फिरोज़ जहांगीर गांधी को कैसे गुमनाम गांधी बना दिया गया ? फिरोज़ गांधी ही वो कड़ी हैं जहां से गांधी परिवार के नेताओं को गांधी Surname मिला .

इस Surname की भी एक कहानी है और आज ये पूरी कहानी आपको बताना बहुत ज़रूरी है . क्योंकि इसी Surname ने पूरे देश की राजनीति को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है. पिछले 71 वर्षों में भारत के सबसे बड़े राजनीतिक चेहरों के नाम के आगे गांधी लगा हुआ है. ज़रा सोचिए कि गांधी परिवार को उसका Surname देने वाले फिरोज़ गांधी.. भारत के इतिहास में एक गुमनाम गांधी बन गये.

हमने अपनी Research फिरोज़ गांधी पर कई किताबों के अध्ययन के साथ शुरू की थी . ज़्यादातर किताबें फिरोज़ गांधी की जीवनी थीं . जिनमें फिरोज़ गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की गई थी. ऐसी किताबों में तथ्यों की कमी थी. इसी दौरान हमें एक किताब मिली, जिसका नाम है… Feroze the Forgotten Gandhi, इस किताब के लेखक Sweden के एक पत्रकार हैं. उनका नाम है… Bertil Falk.

Bertil Falk वर्ष 1977 में इंदिरा गांधी का एक Interview करने के लिए भारत आए थे . उस दौरान जब उन्होंने इंदिरा गांधी के पति के बारे में लोगों से जानकारी मांगी. तो लोगों ने कहा कि फिरोज़ गांधी एक बहुत मामूली आदमी थे . लेकिन जब उन्होंने फिरोज़ गांधी के बारे में और गहराई से जानना शुरू किया तो उन्हें फिरोज़ गांधी की गुमनामी पर बहुत आश्चर्य हुआ. इसके बाद उन्होंने फिरोज़ गांधी के जीवन पर एक किताब लिखने का निश्चय किया.

इस किताब को फिरोज़ गांधी और गांधी परिवार के करीबियों से बातचीत और प्रमाणों के आधार पर तैयार किया गया है. इस किताब के आखिरी पन्नों पर फिरोज़ गांधी का Birth Certificate भी है जिसमें फिरोज़ गांधी के पिता का नाम लिखा हुआ है . ये Birth Certificate फिरोज़ गांधी स्मारक समिति News Letter से लिया गया है .

ये Birth Certificate मेरे हाथ में हैं . इसमें फिरोज़ गांधी के पिता का नाम जहांगीर जी फिरदौस जी Ghandhy लिखा गया है . अगर ये Birth Certificate सही है तो फिरोज़ गांधी के पिता का Surname ‘Ghandhy’ था . लेकिन फिरोज़ गांधी को फिरोज़ Ghandhy नहीं कहा जाता है… फिरोज़ गांधी कहा जाता है .

Surname के उच्चारण में ये बदलाव कैसे हुआ ? इसका कोई प्रामाणिक जवाब हमारे पास नहीं है. सवाल ये है कि क्या इस Surname का उच्चारण जानबूझकर बदला गया ? इसका कोई जवाब भी हमारे पास नहीं है. ऐसे सवाल बहुत निजी होते हैं और इनका जवाब फिरोज़ गांधी का परिवार ही दे सकता है. लेकिन उनके परिवार ने तो उन्हें भुला दिया. ऐसे में ये जवाब कौन देगा?

अब ये सवाल भी उठता है कि क्या ये Birth Certificate सही है ? इस संबंध में इस किताब के लेखक Bertil Falk ने लिखा है कि

देखने में तो ये Birth Certificate असली लग रहा था. लेकिन अगर ये किसी बात को छुपाने की कोशिश है.. या इसमें कोई Cover Up है, तो भी बहुत स्पष्ट रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता. इसलिए इस Birth Certificate से सारे सवालों का जवाब नहीं मिलता. सिर्फ़ DNA टेस्ट ही ऐसे सवालों को हमेशा के लिए खत्म कर सकता है.

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कांग्रेस पार्टी के कुछ स्थानीय नेताओं से बात की थी . उनका कहना है कि महात्मा गांधी ने अपना Surname गांधी, फिरोज़ जहांगीर को दिया था… जिसके बाद वो फिरोज़ गांधी कहे जाने लगे . कांग्रेस के नेता ये भी दावा करते हैं कि फिरोज़ जहांगीर के साथ… गांधी Surname लगने के बाद उनका हिंदूकरण हो गया… यानी शादी के बाद वो हिंदू हो गए .

Bertil Falk ने अपनी किताब Feroze the Forgotten Gandhi के Chapter 9, 10 और 11 में इंदिरा नेहरू और फिरोज गांधी के विवाह के बारे में विस्तार से लिखा है .

Bertil Falk ने लिखा है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू वर्ष 1942 में भारत के बहुत प्रभावशाली व्यक्ति थे . वो उदारवादी विचारों के थे लेकिन इंदिरा नेहरू ने जब फिरोज़ गांधी से विवाह की बात कही तो पंडित नेहरू नाराज़ हो गए थे . पंडित नेहरू जब इंदिरा गांधी को नहीं समझा सके तो उन्होंने इंदिरा गांधी को महात्मा गांधी से मिलने के लिए कहा .

Bertil Falk ने लिखा है कि महात्मा गांधी ये समझ चुके थे कि इंदिरा गांधी पहले ही अपना मन बना चुकी थी इसलिए उन्होंने इंदिरा गांधी का फैसला स्वीकार कर लिया . लेकिन उन्होंने फिरोज़ गांधी से भी ये वचन लिया था कि बिना पंडित नेहरू की इजाज़त के इंदिरा गांधी से विवाह नहीं करेंगे . आखिरकार पंडित नेहरू ने इंदिरा गांधी के फैसले को मान लिया.

इंदिरा नेहरू और फिरोज़ के विवाह की खबर जैसे ही पूरे देश में फैली . हिंदू कट्टरपंथी इस खबर के बाद भड़क गए . ये सवाल उठाए गये कि एक ब्राह्मण लड़की, पारसी लड़के से शादी कैसे कर सकती है ? इस शादी के विरोध में महात्मा गांधी और पंडित नेहरू को बहुत कड़े विरोध वाले पत्र मिले . कुछ पत्रों में बहुत ही असभ्य भाषा का प्रयोग किया गया था. ऐसा कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने उन पत्रों को नष्ट कर दिया था . इन चिट्ठियों में इतना क्रोध था कि उसे बयान कर पाना भी मुश्किल था… खास तौर पर हिंदू कट्टरपंथियों और ब्राह्मणों की चिट्ठियों में. यानी उस दौर में भी बहुत असहनशीलता थी.

इसके बाद पंडित नेहरू को एक आधिकारिक बयान जारी करना पड़ा था . उन्होंने लिखा था कि महात्मा गांधी के विचारों को मैं सामाजिक जीवन में ही नहीं बल्कि निजी जीवन में भी बहुत महत्व देता हूं . और उन्होंने इस विवाह को अपना आशीर्वाद दे दिया है .

लेकिन फिर भी लोगों का गुस्सा नहीं थमा . आखिरकार 8 मार्च 1942 को महात्मा गांधी ने हरिजन पत्रिका में लिखा कि मुझे बहुत सारे गुस्से और गालियों से भरे हुए पत्र प्राप्त हुए . और कुछ चिट्ठियां ऐसी थीं जिनमें इंदिरा गांधी और फिरोज़ गांधी की शादी की वजह के बारे में पूछा जा रहा था . पत्र लिखने वाले किसी भी व्यक्ति ने, फिरोज़ गांधी के खिलाफ कुछ नहीं कहा है . फिरोज़ का अपराध सिर्फ इतना है कि वो एक पारसी हैं . मैं विवाह के लिए धर्म बदलने के हमेशा खिलाफ रहा हूं . धर्म कोई कपड़ा नहीं है जो अपनी मर्ज़ी से बदल दिया जाए . और इस मामले में धर्म को बदलने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता. फिरोज़ गांधी बहुत लंबे वक्त से नेहरू परिवार के करीब रहे हैं . और बीमारी के दिनों में उन्होंने कमला नेहरू की सेवा की है . फिरोज, कमला नेहरू के लिए एक बेटे की तरह हैं.

अब यहां Note करने वाली बात ये है कि कांग्रेस पार्टी के नेता और बहुत सारे लोग ये दावा करते हैं कि महात्मा गांधी ने अपना Surname देकर फिरोज़ जहांगीर गांधी का धर्म बदल दिया था . लेकिन महात्मा गांधी के जो लिखित दस्तावेज, Sweden के पत्रकार Bertil Falk को मिले उनमें गांधी जी खुद ये कह रहे हैं कि विवाह के लिए फिरोज गांधी के धर्म को बदलने का सवाल ही पैदा नहीं होता. ये एक विरोधाभास है जिसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिलता.

इंदिरा नेहरू और फिरोज़ गांधी का विवाह प्रयागराज के आनंद भवन में हुआ था. इंदिरा नेहरू और फिरोज़ ने अग्नि के सात फेरे लिए थे . शादी के वक्त मंडप में बैठे हुए फिरोज़ गांधी, हिंदू थे या पारसी ? इस पर लोगों के दावे अलग-अलग हैं लेकिन नेहरू परिवार ने इस विवाह को हिंदू धर्म और वैदिक रीति रिवाज़ों के साथ किया .

इस विवाह के लिए 26 मार्च 1942 का दिन चुना गया. खास बात ये है कि उस दिन राम नवमी थी, जो हिंदू धर्म का एक बहुत महत्वपूर्ण पर्व है . इसी दिन भगवान श्री राम का जन्म हुआ था .

पंडित नेहरू ने विवाह को यादगार बनाने के लिए पुरोहितों से विशेष वैदिक मंत्रों के साथ इसे सम्पन्न करवाने का आग्रह किया था. ज्यादातर लोगों को ये लगा कि ये विवाह हिंदू रीति रिवाजों से हो रहा है लेकिन इसमें कुछ ऐसी चीज़ें भी थीं जिनके बारे में विवाह में शामिल हुए लोगों को जानकारी नहीं थी.

22 दिसंबर 1986 को फिरोज़ गांधी के रिश्तेदार रातू दस्तूर ने एक मुलाकात में स्वीडन के पत्रकार Bertil Falk को बताया कि विवाह के मंडप में जाने से पहले फिरोज़ गांधी की मां रतिमाई गांधी ने फिरोज़ गांधी से कहा कि देखो तुम एक पारसी हो . और तुम्हारा नवजोत संस्कार हुआ है . इसलिए विवाह के दिन तुम्हें एक पवित्र धागा ज़रूर पहनना चाहिए . ये बात मानते हुए फिरोज़ गांधी ने शादी के दिन अपनी खादी की शेरवानी के अंदर एक पवित्र धागा पहना हुआ था .

पारसी धर्म में बचपन में बच्चों का नवजोत संस्कार होता है जिसमें उन्हें एक पवित्र धागा पहनाया जाता है . यानी अगर देखा जाए तो फिरोज़ गांधी और इंदिरा नेहरू का विवाह वैदिक रीति रिवाजों से हुआ था लेकिन मंडप में उन्होंने पारसी संस्कारों का भी ख्याल रखा था.

फिरोज़ गांधी के ससुर पंडित नेहरू पहले ही राजनीति की मुख्य धारा में थे . इंदिरा गांधी भी अपने पिता के साथ राजनीति में सक्रिय थीं . लेकिन फिरोज़ गांधी धीरे-धीरे गुमनामी के अंधेरे में चले गए .

Bertil Falk ने अपनी किताब के तीसवें अध्याय में लिखा है कि अपनी मृत्यु से पहले फिरोज़ गांधी अपने जीवन से बहुत निराश हो चुके थे .

Bertil Falk के मुताबिक पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने… फिरोज़ गांधी के अंतिम दिनों को याद करते हुए कहा था कि एक शाम वो लखनऊ के एक मशहूर कॉफी हाउस में फिरोज़ गांधी से मिले थे. उस दौरान किसी ने फिरोज़ गांधी से ये कहा कि उन्हें धूम्रपान नहीं करना चाहिए क्योंकि ये उनकी सेहत के लिए बुरा है तब फिरोज़ गांधी ने कहा था कि ज़िंदगी में जीने के लिए अब बचा ही क्या है ? मेरे जीवन का अब कोई लक्ष्य नहीं है . इसलिए मुझे मेरी इच्छाओं के हिसाब से ज़िंदगी जीने दो.. फिर चाहे वो ज़िंदगी कितनी ही छोटी क्यों ना हो .

7 सितंबर 1960 को फिरोज़ गांधी को संसद भवन के अंदर ही दिल का दौरा पड़ा . जिसके बाद फिरोज गांधी ज़िद करके खुद अपनी कार चलाकर Willingdon Nursing Home पहुंचे . और 8 सितंबर 1960 को अपने अकेलेपन से लड़ते हुए फिरोज़ गांधी की मृत्यु हो गई .

दिल्ली के निगम बोध घाट पर उनका अंतिम संस्कार हुआ था . और उनकी चिता पर सभी धर्मों के महत्वपूर्ण ग्रंथों – यानी गीता, रामायण, कुरान और गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ हुआ था . उनके अंतिम संस्कार के दौरान एक पारसी पुरोहित भी मौजूद था जिसने उनकी आत्मा की शांति के लिए एक विशेष पूजा की थी.

हमें लगता है कि फिरोज़ गांधी के जीवन को धर्म या गोत्र में नहीं बांधा जा सकता.
लेकिन फिरोज़ गांधी के पौत्र और कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने खुद को दत्तात्रेय गोत्र का कौल ब्राह्मण बताया है .

उनके गोत्र के बारे में जानने के लिए हमने प्रयागराज में कश्मीरी ब्राह्मणों और नेहरू परिवार के तीर्थ पुरोहित पंडित मदनलाल शर्मा से भी बात की . पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जब भी आनंद भवन आती थीं, तो वो पंडित मदन लाल शर्मा के पिता को आनंद भवन अवश्य बुलाती थीं . पंडित मदन लाल शर्मा ने हमें बताया कि फिरोज़ गांधी एक पारसी थे . और पारसियों में गोत्र की परंपरा नहीं होती. नेहरू परिवार के तीर्थ पुरोहित ने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी से ये सवाल पूछा है कि उन्हें किसने बताया कि उनका गोत्र दत्तात्रेय है ?

हमारी टीम ने प्रयागराज जाकर इस पूरे मामले पर ग्राउंड रिपोर्टिंग की और वहां के बहुत सारे लोगों से बात की . ये रिपोर्ट देखने के बाद आपके मन में मौजूद कई शंकाएं दूर हो जाएंगी

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