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अगर इन तरीकों से बरतेंगे सावधानी, तो थायरॉइड से ब्रेन डैमेज का खतरा होगा कम

भारत में थायरॉइड से जुड़ी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं, इन बीमारियों का इलाज संभव नहीं है, लेकिन इन पर नियन्त्रण रखा जा सकता है। ऑयोडीन की कमी थायरॉइड की बीमारी का मुख्य कारण है, जिसके कारण ब्रेन डैमेज तक हो सकता है। एसआरएल डायग्नॉस्टिक्स के टेक्नोलॉजी एंड मेंटर (क्लिनिकल पैथोलोजी) के अध्यक्ष डॉ. अविनाश फड़के ने कहा, हालांकि थायरॉइड पर अनुसंधान किया जा रहा है, लेकिन यह स्पष्ट है कि आनुवंशिक कारक इसके लिए जिम्मेदार हैं। जिन परिवारों में थायरॉइड की बीमारियों का इतिहास होता है, उनमें इस बीमारी की संभावना अधिक होती है। ऑयोडीन की कमी थायरॉइड की बीमारी का मुख्य कारण है, जिसके कारण ब्रेन डैमेज तक हो सकता है।

थायरॉइड की नियमित जांच जरूरी

उन्होंने कहा, आज दुनिया की 86 फीसदी आबादी तक आयोडीन युक्त नमक उपलब्ध है। नियमित जांच के द्वारा इस पर नियन्त्रण रखा जा सकता है। खासतौर पर गर्भावस्था में और 30 की उम्र के बाद थायरॉइड की नियमित जांच करवानी चाहिए। भारत में हर 10 में से 1 वयस्क हाइपोथॉयराइडिज्म से पीड़ित है। इसमें थायरॉइड ग्लैंड थॉयराइड हॉर्मोन पर्याप्त मात्रा में नहीं बना पाता। इसके लक्षण थकान, पेशियों और जोड़ों में दर्द, वजन बढ़ना, त्वचा सूखना, आवाज में घरघराहट और मासिक धर्म अनियमित होना है। इसमें थायरॉइड कम सक्रिय होता है।

बचाव, सावधानियां और लक्षण

1: हाइपोथायराइडिज्म का इलाज नहीं किए जाने पर यह गॉयटर का रूप ले सकता है। इससे गर्दन में सूजन आ जाती है। इसके अलावा आथरोस्क्लेरोसिस, स्ट्रोक, कॉलेस्ट्रॉल बढ़ना, बांझपन, कमजोरी जैसे गंभीर लक्षण भी हो सकते हैं। हाइपरथॉयराइडिज्म में जब थायरॉइड ज्यादा सक्रिय होता है तो ग्लैंड से हॉर्मोन ज्यादा बनता है, जो ग्रेव्स डीजीज या ट्यूमर तक का कारण बन सकता है। ग्रेव्स डीजीज में मरीज में एंटीबॉडी बनने लगते हैं जिससे थायरॉइड ग्लैंड ज्यादा हॉर्मोन बनाने लगती है। 

2: आयोडीन के ज्यादा सेवन, हॉर्मोन से युक्त दवाओं के सेवन से यह हाइपरथॉयराइडिज्म हो सकता है। इसके लक्षण हैं ज्यादा पसीना आना, थायरॉइड ग्लैंड का आकार बढ़ जाना, हार्ट रेट बढ़ना, आंखों के आसपास सूजन, बाल पतले होना, त्वचा मुलायम होना। लेकिन ऐसे मामले कम पाए जाते हैं।

3: अगर इसका इलाज नहीं किया जाए तो व्यक्ति को अचानक कार्डियक अरेस्ट, एरिथमिया (हार्टबीट असामान्य होना), ऑस्टियोपोरोसिस, कार्डियक डायलेशन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा गर्भावस्था में ऐसा होने पर गर्भपात, समयपूर्व प्रसव, प्रीक्लैम्पिसिया (गर्भावस्था के दौरान ब्लड प्रेशर बढ़ना), गर्भ का विकास ठीक से न होना जैसे लक्षण हो सकते हैं।

4: इसके अलावा हाशिमोटो थॉयरॉइडिटिस बीमारी, जिसमें थायरॉइड में सूजन के करण ग्लैंड से हॉर्मोन का रिसाव होने लगता है और मरीज हाइपरथॉयराइडिज्म का शिकार हो जाता है, गॉयटर में थायरॉइड ग्लैंड का आकार बढ़ जाता है, ऐसा आमतौर पर आयोडीन की कमी के कारण होता है। इसके लक्षण हैं गर्दन में सूजन, खांसी, गले में अकड़न और सांस लेने में परेशानी।

5: थायरॉइड कैंसर, यह आमतौर पर 30 साल के बाद की उम्र में होता है। यह कैंसर थायरॉइड ग्लैंड के टिश्यूज में पाया जाता है। मरीज में या तो कोई लक्षण नहीं दिखाई देते या गर्दन में गांठ महसूस होती है। पर्यावरणीय और आनुवंशिक कारक इसका कारण हो सकते हैं। इसके इलाज के लिए सर्जरी, हॉर्मोन थेरेपी, रेडियोएक्टिव आयोडीन, रेडिएशन और कुछ मामलों में कीमोथेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है।

6: डॉक्टर इन बीमारियों से बचने के लिए जीवनशैली में बदलाव लाने की सलाह देते हैं, खासतौर पर उन लोगों को ये बदलाव लाने चाहिए जिनके परिवार में इस बीमारी का इतिहास है। इसमें नियमित जांच, खूब पानी पीने, संतुलिस आहार, नियमित रूप से व्यायाम, धूम्रपान या शराब का सेवन नहीं करने और अपने आप दवा नहीं लेने जैसे सुझाव शामिल हैं।

7: डॉ. फड़के ने बताया, महिलाओं में हॉर्मोनों का बदलाव आने की संभावना पुरुषों की तुलना में अधिक होती है। आयोडीन की कमी से यह समस्या और अधिक बढ़ जाती है। तनाव का असर भी टीएसएच हार्मोन पर पड़ता है। इसलिए महिलाओं को हर साल थॉयराइड ग्लैंड की स्क्रीनिंग करवानी चाहिए, इससे कोई भी समस्या तुरंत पकड़ में आ जाती है और समय पर इलाज शुरू किया जा सकता है।

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