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अटल जैसी स्थिति मोदी के सामने, क्या दोहराया जाएगा इतिहास?

अटल जैसी स्थिति मोदी के सामने, क्या दोहराया जाएगा इतिहास?

मोदी सरकार के चार साल से ज्यादा के कार्यकाल में पहली बार आए अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर कर लिया गया है. अविश्वास प्रस्ताव पर आज लोकसभा में चर्चा और वोटिंग होगी. मोदी की तरह वाजपेयी सरकार को भी अविश्वास प्रस्ताव का सामना पड़ा था. विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर कांग्रेस अगस्त 2003 में वाजपेयी सरकार के खिलाफ प्रस्ताव लेकर आई थी.अटल जैसी स्थिति मोदी के सामने, क्या दोहराया जाएगा इतिहास?

मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ऐसे समय आया है, जब चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा हुआ है. हालांकि, एनडीए के पास पर्याप्त नंबर है, ऐसे में सरकार के सामने किसी तरह का कोई खतरा नहीं है. इसी तरह से ही वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के पास बहुमत के आकड़े थे. इसके बावजूद कांग्रेस विपक्ष के साथ मिलकर 2003 में अटल सरकार के खिलाफ इसलिए अविश्वास प्रस्ताव लाई थी, क्योंकि उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस को रक्षा मंत्रालय का जिम्मा सौंपा था. 

वाजपेयी के नेतृत्व में पहली ऐसी गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी जिसने अपने कार्यकाल को पूरा किया था. इसके बाद अब दूसरी सरकार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में है, जो अपने पांच साल के कार्यकाल को पूरा करती दिख रही है. वाजपेयी सरकार के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव को एनडीए ने आसानी से पार कर लिया था. जबकि उस समय बीजेपी के पास बहुमत से कम सीटें थी, लेकिन मौजूदा समय में बीजेपी के खुद के 273 सांसद हैं.

2003 में वाजपेयी सरकार के खिलाफ लाए अविश्वास प्रस्ताव के समय एनडीए ने बहुत ही आराम से विपक्ष को वोटों की गिनती में हरा दिया था. एनडीए को 312 वोट मिले थे जबकि विपक्ष 186 वोटों पर सिमट गया था. अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से तमिलनाडु की एआईडीएमके और फारुक अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने खुद को अलग रखा था. जबकि बसपा ने वाजपेयी सरकार के पक्ष में वोट किया था.

वाजपेयी के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान तत्कालीन विपक्ष की नेता और कांग्रेस की उस समय अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी ने सदन में हिंदी में भाषण दिया था और उन्होंने वाजपेयी सरकार को कई मोर्चों पर अस्थिर बताया था. इसी तरह से मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर होने के बाद सोनिया गांधी से जब पूछा गया कि क्या आपके पास पर्याप्त नंबर हैं तो उनका जवाब था कि कौन कहता है कि हमारे पास नंबर नहीं हैं?

वाजपेयी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में कांग्रेस भले ही सदन में हार गई. लेकिन इसका प्रभाव उसी साल होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनाव और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में होने थे.

कांग्रेस ने दिल्ली पर जीत दर्ज की वहीं इसका प्रभाव मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावों पर भी पड़ा. बीजेपी यहां बेशक जीत गई लेकिन उसकी सीटें पहले से कम हो गईं. इसके बाद साल 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व यूपीए को जीत मिली.

मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का समय भी वैसा ही है. हालांकि इस बार कांग्रेस के द्वारा लाए अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर नहीं किया गया है, बल्कि टीडीपी द्वारा आंध्र प्रदेश को स्पेशल स्टेट्स के लिए लाया गया है. बावजूद इसके अविश्वास प्रस्ताव लाने की टाइमिंग वही है. कुछ महीनों के बाद मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव होने हैं. तीनों राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं. कांग्रेस इन राज्यों में सत्ता की वापसी की उम्मीद लगाए हुए है.

दिलचस्प बात ये है कि अटल सरकार की तरह ही मोदी सरकार के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान एआईडीएमके ने सदन से बाहर रहने का फैसला एक बार फिर किया है.

एक साल के बाद 2019 का लोकसभा चुनाव होने हैं. लेकिन माना जा रहा है कि पीएम मोदी भी अटल की तरह लोकसभा चुनाव को समय से पहले करा सकते हैं, जबकि कांग्रेस उन्हें मात देने के लिए विपक्षी दलों के साथ गठबंधन करके चुनावी मैदान में उतरना चाहती है. कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जिस तरह से 2004 में अटल को मात देने के लिए कई दलों को मिलाया था. अब राहुल भी उसी फार्मूले पर आगे बढ़ रहे हैं. देखना होगा कि 2003 का इतिहास फिर से दोहराया जाता है या फिर मोदी 2019 में लिखेंगे नई इबारत.

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