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आजादी से 4 साल पहले अंडमान में मनाया गया आजादी का पहला जश्‍न

आज 31 दिसंबर है. नया साल बस आने ही वाला है. लोग नए साल के स्वागत की तैयारी कर रहे हैं. पूरा देश जश्न में डूबने वाला है. दिसंबर का आखिरी हफ्ता कुछ ऐसा होता है कि लोग छलांग लगाकर सीधे 2019 में प्रवेश कर जाना चाहते हैं. ऐसे में 30 दिसंबर की महत्वपूर्ण तारीख पर आपका ध्यान नहीं गया होगा. करीब 75 वर्ष पहले 30 दिसंबर 1943 को यानी 1947 में मिली आज़ादी से 4 साल पहले ही अंडमान निकोबार में पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने तिरंगा फहराया था. ये तिरंगा आज़ाद हिंद फौज का था और ये भारत की ज़मीन पर आज़ादी का पहला जश्न था. 

आज हम एक जनवरी 2019 के स्वागत से ठीक पहले उन शहीदों को नमन करेंगे जिन्होंने इतिहास तो बनाया, लेकिन इतिहास की किसी किताब में इन शहीदों का नाम नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल अंडमान निकोबार द्वीप समूह में मौजूद Cellular जेल का दौरा किया और भारत के अमर क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि दी. अंग्रेज़ों ने भारत के क्रांतिकारियों को यातनाएं देने के लिए अंडमान-निकोबार में Cellular जेल बनवाई थी.

भारत की मुख्य भूमि से एक हज़ार किलोमीटर दूर मौजूद ये एक ऐसी जेल थी, जिससे बाहर निकलना असंभव था. जेल के बाहर हजारों किलोमीटर तक फैला हुआ समुद्र था और जेल के अंदर अंग्रेज़ों की यातनाएं थीं. तब अखबार तो थे लेकिन किसी भी पत्रकार के पास अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं थी. किसी को उस जेल के अंदर जाने की आज़ादी नहीं थी.

अभिव्यक्ति की आज़ादी और मानव अधिकार उस जेल के अंदर दम तोड़ चुके थे. भारत में किसी को भी ये नहीं पता था कि Cellular जेल के अंदर क्रांतिकारियों पर कितने ज़ुल्म हो रहे हैं. तब इंटरनेट नहीं था, Social Media नहीं था. तब लोग अपनी भावनाओं को आज की तरह प्रकट नहीं कर पाते थे. Cellular जेल के पार दूर-दूर तक फैला हुआ खारा समुद्र था. अंग्रेज़ों के अत्याचारों से परेशान होकर लोग उसी समुद्र में डूब कर अपने प्राण त्याग देते थे.

इन क्रांतिकारियों ने सर्वोच्च बलिदान देकर नये आदर्श स्थापित किये, लेकिन आज़ादी के बाद इन शहीदों के नाम पर ना तो किसी सड़क का निर्माण हुआ और ना ही इनके नाम से कोई योजनाएं चलाई गईं. मान्यता प्राप्त इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों की कलम ने भी इन क्रांतिकारियों की जय-जयकार नहीं की.

लेकिन कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने Cellular जेल का दौरा करके स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े तीर्थ का अभिनंदन किया. प्रधानमंत्री ने कल पोर्ट ब्लेयर में शहीद स्तंभ पर श्रद्धांजलि अर्पित की. उन्होंने Cellular Jail की उन जगहों का दौरा किया जहां क्रांतिकारियों को यातनाएं दी जाती थीं. इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने Port Blair के South Point पर 150 फीट ऊंचा तिरंगा फहराया. इसी जगह पर 75 वर्ष पहले नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने तिरंगा फहराया था और भारत को अंग्रेज़ों से आज़ाद करवाने का संकल्प लिया था.

ये 30 दिसंबर 1943 की घटना थी. स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में ये वो समय था. जब अंग्रेज़ों ने बहुत बेरहमी से भारत छोड़ो आंदोलन का दमन कर दिया था. महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और कांग्रेस के हज़ारों कार्यकर्ता जेलों में बंद कर दिए गए थे. पूरा देश निराशा के अंधेरे में डूब गया था, लेकिन उसी दौरान दूसरे विश्व युद्ध में अंडमान निकोबार में अंग्रेज़ों की बहुत बड़ी हार हुई. अंडमान निकोबार द्वीप पर नेता जी की आज़ाद हिंद फौज का कब्ज़ा हो गया और यहीं पर नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने तिरंगा फहराया था. इस घटना के बाद पूरे देश में जोश आ गया था. लोग ये समझ चुके थे कि आज़ादी का आंदोलन अभी ज़िंदा है और इस जंग के सेनापति नेता जी सुभाष चंद्र बोस हैं.

इस ऐतिहासिक घटना के 75 वर्ष पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक डाक टिकट और 75 रुपये का स्मारक सिक्का जारी किया और नेता जी सुभाष चंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज के नायकों को Smart Phones वाले युग के अंदाज़ में याद किया.

इस खास मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की है कि रॉस द्वीप समूह का नाम अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप रखा जाएगा. नील द्वीप समूह को शहीद द्वीप के नाम से जाना जाएगा और हैवलॉक द्वीप का नया नाम अब स्वराज द्वीप होगा. ये हमारे पूर्वजों के शौर्य का अभिनंदन है. नए साल के जश्न से पहले आपको इन शहीदों को याद करना चाहिए, क्योंकि उन्हीं के बलिदान की वजह से हम आज़ाद भारत में सांस ले रहे हैं.

आज जिन Clubs और Pubs में आप Dance करेंगे, आज़ादी से पहले ऐसे ही Clubs के अंदर भारत के लोगों के प्रवेश पर पाबंदी लगी हुई थी. ऐसे Clubs के बाहर लिखा होता था – Dogs And Indians Are Not Allowed.
शुक्र मनाइये कि आज ये परिस्थितियां नहीं हैं। इसके लिए भारत के अमर शहीदों का जितना सम्मान किया जाए.. कम है

ये वो दौर था जब अहिंसा के पुजारियों पर लाठियां बरसाने में अंग्रेज़ों को बहुत मज़ा आता था. अंग्रेज़ों से उनकी बर्बरता का बदला नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने लिया था. आज़ाद हिंद फौज से हुई लड़ाई में अंग्रेज़ों की सेना के 45 हज़ार से ज़्यादा सैनिकों की मौत हुई थी. बर्मा की जंग में अंग्रेज़ों की सेना सुभाष चंद्र बोस के चक्रव्यूह में इस तरह फंसी थी कि ब्रिटिश सेना के 10 हज़ार से ज़्यादा सैनिक बीमारियों का शिकार हो गए थे. इस लड़ाई में अमेरिका की सेना के भी 3 हज़ार से ज़्यादा सैनिकों की मौत हुई थी.

भारत में लाखों लोंगों की हत्या करने वाले अंग्रेज़ों को, सुभाष चंद्र बोस ने ये बताया था कि अहिंसा और शांति भारत की कमज़ोरी नहीं है. भारत को हथियारों से जवाब देना भी आता है. कालापानी की जेल में कैदियों को कोल्हू में जानवरों की जगह दौड़ाया जाता था. कैदियों से दिन भर नारियल के छिलके कुटवाए जाते थे. उनकी गरदनों में लोहे की बहुत वज़नदार बेड़ियां लटकाई जाती थीं. कैदियों के हाथों को ही नहीं, पैरों को भी ज़ंजीरों से बांध दिया जाता था.

उस दौर में उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले में जन्म लेने वाले क्रांतिकारी राम चरण लाल शर्मा को अंग्रेज़ों के खिलाफ कुछ कविताएं लिखने के आरोप में काले पानी की सज़ा दी गई थी. उन्होंने कालापानी में अपने अनुभवों पर एक किताब लिखी थी, जिसका नाम है ‘काला पानी का ऐतिहासिक दस्तावेज’. आज हमने इस किताब का अध्ययन किया है.

इस किताब से हमें ये जानकारी मिली कि उस समय कालापानी में एक कैदी को एक साल में एक ही चिट्ठी लिखने की इजाज़त थी. तब क्रांतिकारी राम चरण लाल शर्मा ने अपने भाई को एक चिट्ठी लिखी थी. ये चिट्ठी हम आपको पढ़कर सुनाना चाहते हैं. इस चिट्ठी में लिखे शब्द, आज आपको भावुक कर देंगे.

प्यारे भाई, वंदेमातरम
मैं यहां 5 अक्टूबर को आ गया था. आने के बाद कुछ दिन बीमार रहा, लेकिन अब अच्छा हूं. यहां की जलवायु बहुत खराब है. हिंदुस्तान की जेलों में रहते हुए, मैं सपना देखा करता था कि अंडमान में जाने से स्वतंत्रता की देवी के दर्शन होंगे. यहां तो मैं जेल ही में बंद हूं और लगता है कि कभी भी यहां से बाहर निकलने का समय नहीं आएगा. जो दशा मेरी इस समय है उससे अनुमान होता है कि अब तुमसे भेंट नहीं होगी. अगर मैं यहां मर जाऊं तो माता जी को खबर मत करना और हमेशा यही लिखते रहना कि मैं आनंद से हूं. अगर जी चाहे तो उत्तर दे देना. मैं अब एक साल तक पत्र नहीं लिख पाऊंगा और आपका भेजा हुआ एक से ज्यादा पत्र भी मुझे नहीं मिलेगा.

ज़रा सोचिए.. आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ आराम से पार्टी कर सकें, जश्न मना सकें.. इसके लिए हमारे देश के क्रांतिकारियों और लेखकों ने कितनी यातनाओं को सहन किया है. इसलिए आपको हमेशा आज़ादी की कीमत समझनी चाहिए. 2018 के इस विश्लेषण से शिक्षा लेकर.. 2019 को बेहतर बनाया जा सकता है. ये हम सबकी ज़िम्मेदारी है.

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