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क्या बंटे हुए देश को जोड़ पाएंगे ट्रंप ?

वाशिंगटन अपने 45वें राष्ट्रपति डोनल्ड जे ट्रंप की ताजपोशी के लिए सज चुका है.उनके उद्घाटन समारोह के हर लम्हे की रिहर्सल की गई है, यहां तक की डोनल्ड ट्रंप की जगह किसी और को खड़ा करके शपथ ग्रहण और दूसरे पहलुओं को भी पूरी तरह से जांच परख लिया गया है.क्या बंटे हुए देश को जोड़ पाएंगे ट्रंप ?

मुख्य समारोह तो कैपिटल हिल पर होगा लेकिन उसके पहले लिंकन मेमोरियल पर रंगारंग शो हो रहा है जिसमें बॉलीवुड और हॉलीवुड दोनों ही की झलक होगी.

देश के कई हिस्सों से स्कूली बैंड पहुंच रहे हैं परेड में भाग लेने. लेकिन लाख पूछने पर भी इनमें से ट्रंप की राजनीति पर बात करने को कोई तैयार नहीं होता.

क्योंकि जहां एक तरफ़ ये तैयारियां हो रही हैं, लाखों लोगों के आने की उम्मीद की जा रही है वहीं दूसरी तरफ़ हज़ारों ऐसे भी हैं जो डोनल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ खड़े नज़र आएंगे.

शहर में कई तरह के विरोध प्रदर्शनों की तैयारी चल रही है और कई गुट अपने सदस्यों को अहिंसक प्रदर्शन करने और पुलिस के साथ किस तरह से पेश आएँ उसके लिए प्रशिक्षण भी दे रहे हैं.

सलमान ख़ान को एड्स है : स्वामी ओम

कांग्रेस के कई डेमौक्रैट सदस्यों ने उद्घाटन समारोह को बॉयकॉट करने का एलान कर दिया है.

ज़्यादातार नामी-गिरामी सितारों ने उनके समारोह में भाग लेने से इंकार कर दिया है.

डोनल्ड ट्रंप उद्घाटन समारोह के लिए अपना भाषण लिखने में जुटे हुए हैं और उनके एक प्रवक्ता का कहना है कि लगभग 20 मिनट के इस भाषण पर उन्होंने काफ़ी मेहनत की है.

उनके प्रवक्ता शॉन स्पाइसर का कहना था, “ये भाषण उनके लिए निजी रूप से काफ़ी अहम है. इसमें वो अपनी आनेवाली नीतियों के साथ-साथ आज के अमरीका पर उनकी क्या सोच है इसपर भी बात करेंगे.”

बहुत लोगों की नज़र इस बात पर होगी कि ट्रंप अपने भाषण में इस वक़्त बुरी तरह से बंटे हुए देश को एकजुट करने की कोशिश करते हैं या फिर अपने चिर-परिचित अंदाज़ में उसी तरह की बातें दोहराते हैं जिसने उन्हें यहां तक पहुंचाया है.

ट्रंप ने फ़ॉक्स न्यूज़ को दिए अपने इंटरव्यू में कहा है कि अपने भाषण की शुरूआत सबका धन्यवाद देकर करेंगे और बराक और मिशेल ओबामा को भी उनकी उदारता के लिए सराहेंगे.

ट्रंप ने अपनी जीत के बाद अमरीका को साथ लेकर चलने की बात कही थी लेकिन उसके बाद अपने ट्विट्स में उन्होंने हिलेरी क्लिंटन समेत अपने सभी आलोचकों पर हमले किए हैं.

जानकारो का कहना है कि ये नीति चुनाव में तो कारगर रही है लेकिन हुकूमत चलाने में शायद ही कारगर रहे.

मीडिया के साथ उनके संबंध बेहद तनावपूर्ण हैं, रूस के साथ उनके ताल्लुकात पर सवाल उठ रहे हैं, उनकी व्यापार नीति क्या होगी उस पर लोगों को भरोसा नहीं है और अपने निजी बिज़नेस को व्हाइट हाउस से सही मायने में अलग रख पाएंगे उस पर भी ख़ासा विवाद है.

लेकिन इन सबसे बड़ी चुनौती उनके सामने देश को ये यकीन दिलाने की होगी कि वो सिर्फ़ अपने समर्थकों के नहीं पूरे देश के राष्ट्रपति होंगे.

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