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घर को आग लग रही घर के चिराग से

mulayam-singhसियाराम पांडेय ‘शांत’
समाजवादी पार्टी में एक बार फिर गृहकलह चरम पर है। कहा जा रहा है कि यह परिवार का नहीं, सरकार का झगड़ा है। अभी तक तो मतभेद से ही इनकार किया जाता रहा, पहली बार किसी ने स्वीकार किया कि धुआं निराधार नहीं है। घर को आग घर के ही चिराग से लगी है, इस बात से भले ही इनकार हो लेकिन जो चल रहा है, उससे कोई भी यही कहेगा कि नेता जी का यह राजनीतिक कुनबा अब उन्हीं के कौशल से बचेगा। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चाहते हैं कि उनके चाचा मंत्री नहीं, सपा के प्रदेश अध्यक्ष ही बने रहें और शिवपाल की नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है। ऐसे में परिवार बचाने के लिए मुलायम सिंह यादव को ही कुछ करना पड़ेगा। यह भी संभव है कि गृहकलह से बचने के लिए वे मुख्यमंत्री पद खुद संभाल लें। भले ही कुछ लोग इसे अखिलेश यादव की छवि सुधार प्रयासों के क्रम में देख रहे हों लेकिन मामले में जिस तरह नाटकीय परिदृश्य सामने आए हैं, उससे राजनीतिक पंडितों का चौंकना स्वाभाविक है। बचपन में एक एकांकी पढ़ी थी ‘सीमा रेखा’ जिसमें एक ही परिवार में नेता भी हैं, व्यापारी भी हैं। पुलिस अधिकारी भी हैं और जब दंगे में उसी परिवार का एक बच्चा मारा जाता है तो उस पुलिस अधिकारी की आलोचना घर में ही होती है। वह घर तो फिर भी विविधता भरा था लेकिन जिस परिवार में सभी नेता हों, उस घर में मतभेद न हो, ऐसा कैसे मुमकिन है? समाजवादी पार्टी आम चुनाव से छह माह पूर्व ही कलहग्रस्त हो गई है। नेता जी के बाद कौन की जंग सतह पर आ गई है।

वर्चस्व की यह जंग यूं तो सरकार बनने के दिन से ही चल रही है लेकिन इसे मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक चातुर्य ही कहा जाएगा कि परिवार एक है। पार्टी के बड़े नेता भले ही माहौल को खुशनुमा दिखाने का प्रयास कर रहे हों और इस बात का दावा कर रहे हों कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के परिवार में किसी भी तरह का कोई मतभेद नहीं है। मीडिया बेवजह आग लगा रहा है लेकिन शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच सरकार बनने के दिन से ही तनातनी का माहौल है। चाचा-भतीजे के बीच मतभेद का आलम यह है कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाना पड़ा। उनकी जगह उन्होंने शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष्ा बना दिया। इससे नाराज मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव को आठ मंत्रालयों के दायित्व से मुक्त कर दिया। इससे शिवपाल यादव ही नहीं, उनके पत्नी और बेटे तक नाराज हैं। शिवपाल ने तो दो घंटे तक मुलायम सिंह यादव से उनके दिल्ली स्िथत आवास पर मुलाकात की। चाचा-भतीजे की सियासी जंग में फैसले की गेंद अब सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के हाथ में है। सपा की संसदीय बोर्ड की बैठक में वे कोई सर्वमान्य हल निकालने की कोशिश करेंगे। वैसे अखिलेश और शिवपाल दोनों ने ही नेताजी की बात मानने की बात कही है।शिवपाल की पत्नी और बेटे भी इस्तीफे की धमकी दे रहे हैं। यह केवल नूराकुश्ती है या वाकई रिश्तों में खटास सतह पर आ गई है। अखिलेश की मानें तो जब बाहर के लोग दखलंदाजी करने लगें तो पार्टी कैसे चलेगी। जाहिर तौर पर उनका इशारा अमर सिंह की ओर है।हालांकि अमर सिंह ने इससे इनकार किया है कि अखिलेश ने उन्हें कुछ कहा भी है। उन्होंने एक बार फिर कहा है कि मुलायम सिंह यादव उनके सगे भाई की तरह हैं। मुलायम पुत्र जो कुछ भी कहेंगे, मैं उसे मानूंगा। दरअसल इस तरह के हालात क्यों बन रहे हैं, यह देखने-समझने की बात है। इसमें शक नहीं कि पार्टी संतुलन को बनाए रखने की मुलायम सिंह यादव की कोशिशें हर बार दम तोड़ती नजर आ रही है। छह माह बाद आम चुनाव हैं, ऐसे में गृहकलह पार्टी के विजयरथ की चाल मंद कर सकती है। कौमी एकता दल का सपा में विलय न करा पाने की नाराजगी शिवपाल यादव के सीने में शूल की तरह चुभ रही है। उसके बाद उनके चहेते मुख्य सचिव को उनके पद से हटाया जाना उनके वर्चस्व को सीधी चुनौती थी। इससे एक दिन पहले ही शिवपाल यादव के दो करीबी मंत्री गायत्री प्रजापति और राजकिशोर सिंह मंत्री पद से हटाए गए थे। शिवपाल की नाराजगी को देखते हुए ही मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया होगा। लेकिन अब बात हद से ज्यादा बढ़ गई है। मतभेद का पानी सिर से ऊपर बह रहा है। ऐसे में मुलायम को आर-पार का निर्णय करना होगा।एक तरफ देश के सबसे बड़े राजनीतिक कुनबे की एकता है और दूसरी ओर सत्ता का संतुलन। सत्ता के इस महाभारत में परिजन ही सामने हैं। किसी को भी उपेक्षित करना पार्टी के व्यापक हित में नहीं है। परिवार की इस कलह का लाभ विपक्ष को मिलेगा और जिस तरह कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का बयान आया है कि अखिलेश यादव ने साइकिल का एक पहिया उखाड़ कर फेंक दिया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने भी मंत्रियों को उनके पद से हटाए जाने पर कटाक्ष किया है। मतलब मुलायम कुनबे की कलह की आंच पर विपक्ष ने भी अपनी रोटियां सेंकनी शुरू कर दी है। यह समय छवि सुधार का नहीं, बल्कि विकास कार्यों को आगे बढ़ाने का है। सत्ता रहेगी, तभी वर्चस्व भी रहेगा। यह बात सपा के नेताओं को समझनी होगी। मुलायम सिंह यादव के लिए यह समय अग्नि परीक्षा का है। वे पुत्र को तरजीह देंगे या भाई को, अगर दोनों के बीच की जंग जारी रही तो इससे सपा को बड़ा नुकसान होगा। मुख्यमंत्री को कड़े फैसले पहले ही लेना चाहिए था। अगर वे पहले ही इस तरह के कड़े फैसले लेते तो आज हालात कुछ और होते। मुख्यमंत्री विकास के पक्षधर हैं लेकिन अब कड़े फैसले लेकर साढ़े चार साल पुरानी अदावत को हवा देना ठीक नहीं है। सत्तासीन व्यक्ति को हवा का रुख देखना चाहिए। प्रदेश के विकास के चलते माहौल अखिलेश के पक्ष में है। उसे कड़े फैसलों की आंच पर तपाना और अपनों को शत्रु बनाना मुनासिब तो नहीं।

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