Tuesday , April 16 2024

जब पीएम नरेंद्र मोदी ने प्रयागराज की जनसभा में अक्षयवट को लोगों के लिए खोले जाने की घोषणा की

यागराज मांगे अक्षयवट दर्शन’ दैनिक जागरण के इस अभियान को रविवार को मुकाम मिल गया। प्रलय और सृष्टि का साक्षी, प्रयाग की पहचान। सनातन धर्म व संस्कृति की धूरी अक्षयवट से श्रद्धालुओं की दूरी आखिरकार खत्म हो गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रयागराज की महिमा का वर्णन करने के साथ ही कुंभ के दौरान अक्षयवट दर्शन सबके लिए सुलभ होने का एलान किया।

 प्रधानमंत्री मोदी ने यहां अंदावा के संत निरंकारी मैदान में जनसभा को संबोधित करने के दौरान कहा-आज जब अर्धकुंभ से पहले मैं यहां आया हूं, आप सभी को, देश के हर जन को एक खुशखबरी भी देना चाहता हूं। इस कुंभ में सभी श्रद्धालु अक्षयवट का दर्शन कर सकेंगे। कई पीढ़ियों से अक्षयवट किले में बंद था, लेकिन इस बार यहां आने वाला हर श्रद्धालु प्रयागराज की त्रिवेणी में स्नान करने के बाद अक्षयवट के दर्शन का सौभाग्य भी प्राप्त कर सकेगा। इतना ही नहीं, सरस्वती कूप दर्शन भी संभव हो पाएगा। अक्षयवट अपनी गहरी जड़ों की वजह से बार-बार पल्लवित होकर हमें भी जीवन के प्रति ऐसा ही जीवट रवैया अपनाने की प्रेरणा देता है। बताया कि संबोधन करने के पहले मैंने भी अक्षयवट का दर्शन किया। कुछ देर अक्षयवट के नीचे चबूतरे पर बैठे भी।

अभी तक रसूखदार लोगों को मिलता था दर्शन का लाभ 
ओडी किला में बंद अक्षयवट का दर्शन अभी तक सिर्फ रसूखदार लोगों को मिलता था। सेना के अधिकारियों से जिसकी पहचान होती थी वही अंदर तक पहुंच पाता है। सुरक्षा का हवाला देकर आम श्रद्धालुओं को वहां जाने से रोका जाता था। ‘दैनिक जागरण’ ने अक्षयवट के दर्शन-पूजन को लेकर हो रहे भेदभाव के खिलाफ दस नवंबर से ‘प्रयागराज मांगे अक्षयवट दर्शन’ का अभियान चलाया। इस समाचारीय अभियान में प्रतिदिन अक्षयवट के धार्मिक, पौराणिक व वैज्ञानिक महत्व पर खबरें प्रकाशित की गई।
विशिष्‍टजनों ने प्रमुखता से उठाया था 
साथ ही संत-महात्मा, अधिवक्ता, बुद्धिजीवी, राजनेता, समाजसेवी, शिक्षकों व महिलाओं की अक्षयवट को लेकर भावनाओं को प्रमुखता से उठाया। प्रयागराज के संतों के साथ राउंड टेबल कांफ्रेंस भी किया गया। 37 दिनों तक चले इस अभियान के जरिए तथ्यपरक खबरें प्रकाशित करके लोगों को अक्षयवट से जुड़ी नई-नई जानकारी दी गई। अभियान की धमक लखनऊ और दिल्ली तक पहुंची।

सीएम ने पहले ही अक्षयवट को खोलने का दिया था संकेत

अभियान की धमक लखनऊ और दिल्ली तक पहुंचने के बाद जनभावनाओं का ख्याल रखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अक्षयवट को आम श्रद्धालुओं के लिए खोलने का संकेत पहले ही दे दिया था। अब अक्षयवट के खुलने से समाज के हर वर्ग के लोगों में खुशी की लहर है। वह प्रधानमंत्री के फैसले का स्वागत करते हुए कहते हैं कि यह सनातन धर्म की जीत है।

मुगलकाल से बंद है अक्षयवट 

अक्षयवट का प्राचीन वृक्ष यमुना तट पर स्थित अकबर के किले में कैद है। मुगल व अंग्रेजों के शासन में अक्षयवट का दर्शन दुर्लभ था। देश को आजादी मिली उसके बाद भी वहां तक कोई पहुंच नहीं पाता। अकबर ने यमुना किनारे किला बनवाने के लिए 1574 में नींव रखी। किला बनने में 42 साल लग गए। नींव रखने के बाद से अक्षयवट के दर्शन-पूजन का सिलसिला बंद कर दिया गया। वहां लोगों के आवागमन को रोककर किले का निर्माण कराया गया।

मुगल शासनकाल के बाद अंग्रेजी हुकूमत में भी अक्षयवट के दर्शन पर पाबंदी थी। अंग्रेजों ने किले को कब्जे में लेकर अपनी छावनी बना ली थी। जहां हथियार बनाए जाते थे। इससे आम लोगों का किले के अंदर प्रवेश करना तो दूर यमुना नदी में किले के पास से नाव में गुजरने पर भी पाबंदी थी। देश को आजादी मिलने के बाद अक्षयवट को आम श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोलने के लिए समय-समय पर मांग उठती रही है, लेकिन सेना के होने के चलते उसे नहीं खोला गया।

23 बार काटकर जलाया गया
मुगल शासकों ने अक्षयवट का अस्तित्व समाप्त करने का काफी प्रयत्न किया। हिंदुओं की धार्मिक मान्यता व भावना को चोट पहुंचाने के लिए अक्षयवट को 23 बार काटा व जलाया गया, लेकिन उसे नष्ट करने में विफल रहे। काटने व जलाने के चंद माह बाद वह पुन: पुराने स्वरूप में आ जाता। इससे हारकर अक्षयवट को बंद करने का निर्णय हुआ, जिसके लिए विशाल घेरा बनाया गया, उसमें किसी को जाने की अनुमति नहीं थी। तब से अक्षयवट कैद था।

इसलिए है करोड़ों की आस्था का केंद्र

यज्ञों की बाहुलता वाला स्थल प्रयाग पृथ्वी के पवित्र स्थलों में एक है। धार्मिक मान्यता है कि सृष्टि रचना से पहले परमपिता ब्रह्माजी ने यहां यज्ञ किया था। प्रयाग में यज्ञ से सृष्टि की रचना हुई। ब्रह्माजी ने जब प्रयाग में यज्ञ किया था अक्षयवट तब भी यहां मौजूद था।

धर्माचार्य आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि अक्षयवट पृथ्वी का सबसे प्राचीन वृक्ष है। भागवत पुराण में कहा गया है कि अक्षयवट में भगवान विष्णु बालरूप में शयन करते हैं। यह न सिर्फ प्रयाग बल्कि पूरी धरती के प्रहरी माने जाते हैं। धरती पर प्रलय आने पर भी इसकी क्षति नहीं होगी। वह बताते हैं कि प्रयाग महात्म्य, पद्म व स्कंद पुराण में अक्षयवट के दर्शन को मोक्ष का माध्यम बताया गया है। यह भगवान विष्णु का साक्षात विग्रह है।

प्रयाग पीठाधीश्वर जगद्गुरु ओंकारानंद सरस्वती बताते हैं कि पद्म पुराण में अक्षयवट को तीर्थराज प्रयाग का छत्र कहा गया है। अक्षयवट का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में भी मिलता है। वनवास के लिए निकले मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जब प्रयाग में महर्षि भारद्वाज के पास आए तो उन्होंने यमुना तट पर स्थित अक्षयवट की महिमा बताई। इसके बाद श्रीराम, सीता व लक्ष्मण ने अक्षयवट का दर्शन किया था। माता सीता ने अक्षयवट का पूजन कर आशीर्वाद पाने को याचना की थी। रामचरित मानस में वर्णित है-पूजहि माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता।

और अक्षयवट तब भी मौजूद था
अक्षयवट यानी जो अक्षय है, जिसका कभी क्षय नहीं हो सकता। पौराणिक कथाओं में है कि जब संत मार्कंडेय ने भगवान नारायण से अपनी ईश्वरीय शक्ति दिखाने का आग्रह किया था तो क्षण भर के लिए उन्होंने सारे संसार को जलमग्न कर दिया। उस समय पृथ्वी की सारी वस्तुएं जल में समा गई। लेकिन प्रयाग में स्थित अक्षयवट का ऊपरी भाग दिखाई दे रहा था। अक्षयवट आज अकबर के बनाए किले में है। प्रख्यात इतिहासकार प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि गुप्तकाल में कालीदास द्वारा रचित ‘रघुवंशम्’ में प्रयाग में यमुना के दक्षिण तट पर श्याम नामक वटवृक्ष का उल्लेख है।

यही उल्लेख हमें आठवीं शताब्दी में भवभूति द्वारा रचित उत्तररामचरित में भी मिलता है। जबकि 573 ई. के स्वामीराज के नगरधन ताम्र लेख से भी संगम के निकट एक वटवृक्ष की पुष्टि होती है। वहीं 644 ई. में चीनी यात्री ह्वेनसांग के विवरण में अक्षयवट का उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार 1030 ई. के अलबरूनी के विवरण में प्रयाग के वृक्ष के रूप में अक्षयवट की महिमा बखानी गई है। जबकि 11वीं शताब्दी के मध्य में महमूद गरदीजी संगम के निकट एक विशाल बातू (वट) का उल्लेख करता है।

आस्था का केंद्र है सरस्वती कूप 

अक्षयवट की तरह किले में बंद सरस्वती कूप का दर्शन भी श्रद्धालु कर सकेंगे। सरस्वती कूप पृथ्वी के सबसे पवित्रतम् कूप (कुआं) है। मान्यता है कि संगम जो अदृश्य सरस्वती हैं उनका वास इसी कूप में है। टीकरमाफी आश्रम पीठाधीश्वर स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी बताते हैं कि मत्स्य पुराण में सरस्वती कूप की महिमा बखानी गई है। जैसे गंगा जी गंगोत्री और यमुना जी यमुनोत्री से निकली हैं। इसी प्रकार उत्तराखंड के बद्रीनाथ के पास माणा गांव के ऊपर पवर्तीय क्षेत्र से सरस्वती नदी निकली हैं। पांडव इसी नदी को पार करके स्वर्गलोक की सीढ़ी चढऩे गए थे। वहां आज भी भीम शिला रखी है। प्राचीनकाल में सरस्वती नदी प्रयाग आती थीं, लेकिन सदियों पहले लुप्त हो गईं। यमुना तट पर बने कुआं में आज भी उनका जल है। सरस्वती कूप का दर्शन मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

वटवृक्ष दर्शन को एमएनएनआइटी ने जांची थी दीवार की क्षमता

कुंभ के दौरान श्रद्धालुओं को वटवृक्ष दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होगा। प्रधानमंत्री ने रविवार को इसकी घोषणा कर दी है पर इसमें एमएनएनआइटी के सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट का भी हाथ है। एमएनएनआइटी के सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के विशेषज्ञों ने किले की दीवार की क्षमता की जांच की थी। जांच में किले की दीवार की लोड सहने की क्षमता देखी थी। निदेशक प्रो. राजीव त्रिपाठी ने बताया कि सिविल इंजीनिरिंग डिपार्टमेंट ने किले की दीवार की क्षमता का पता लगाने के लिए ड्रिलिंग की कार्रवाई की थी। उससे साफ हो गया है कि एक बार कितने लोग किले की दीवार से गुजारे जा सकते हैं। यह जांच सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए की गई है।

सिर्फ कुंभ नहीं, हमेशा के लिए खुले अक्षयवट

निष्पक्ष, ज्ञानवर्धक व शोधपरक तथ्य प्रकाशित कर ‘दैनिक जागरण’ ने वह कर दिखाया जो असंभव था। देश को आजादी मिलने के बाद जिस अक्षयवट का द्वार नहीं खुला था। दशकों से जिसे खोलने की मांग चल रही थी, उसे दैनिक जागरण ने अपने समाचारीय अभियान के जरिए पूरा करा दिया। यह वक्तव्य है समाज के विशिष्टजनों के। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कुंभ में अक्षयवट को आम श्रद्धालुओं के दर्शन-पूजन को खोलने की घोषणा किया तो प्रयागवासी हर्षित हो उठे। उन्होंने इस घोषणा को श्रेय दैनिक जागरण के समाचारीय अभियान को दिया। साथ ही प्रशासन से मांग की कि अक्षयवट सिर्फ कुंभ मेला तक ही नहीं, बल्कि हमेशा के लिए खोला जाए।

प्रयाग को मिली अमूल्य सौगात : नरेंद्र गिरि

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने अक्षयवट को आम श्रद्धालुओं के लिए खुलने पर खुशी व्यक्त की। बोले, यह प्रयाग के लिए अमूल्य सौगात है। अखाड़ा परिषद इसकी मांग कर रहा था। दैनिक जागरण ने उस आवाज को और बुलंद की, जिससे सार्थक परिणाम आया।

बयां नहीं कर सकता खुशी : हरि गिरि

अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत हरि गिरि ने कहा कि अक्षयवट खुलने पर मुझे जो खुशी हुई है उसे बयां नहीं कर सकता। यह मेरा सपना था, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरा किया है। मैं दैनिक जागरण परिवार को हृदय से आभार देता हूं, जिन्होंने अक्षयवट को श्रद्धालुओं को दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

श्रद्धालुओं को मिला अनोखा उपहार : सद्गुरु 

ओम नम: शिवाय संस्थान के संस्थापक सद्गुरु जी महाराज अक्षयवट के खुलने पर प्रसन्न हैं। कहते हैं अक्षयवट तक दर्शन-पूजन बिना भेदभाव के हो, यह उनकी पुरानी इच्छा थी जो आज पूरी हो गई। अगर दैनिक जागरण अक्षयवट खुलवाने को अभियान न चलाता तो यह संभव न हो पाता।

हमेशा के लिए खुले द्वार : व्रतशील

पं. देवीदत्त शुक्ल पं. रमादत्त शुक्ल शोध संस्थान के सचिव व्रतशील शर्मा कुंभ में किला में बंद अक्षयवट का द्वार खुलने से खुश हैं। कहते हैं इसका पूरा श्रेय दैनिक जागरण परिवार को जाता है। बोले, अक्षयवट सिर्फ कुंभ तक ही न खुले बल्कि श्रद्धालुओं के वहां तक पहुंचने की छूट हमेशा मिले।

साकार हुआ सपना : रामजी

अग्रहरि समाज के संरक्षक रामजी अग्रहरि कहते हैं कि अक्षयवट तक आम श्रद्धालु बिना रोक-टोक के पहुंचे यह उनका सपना था। आज दैनिक जागरण की मदद से यह पूरा हुआ। मैं खुश हूं, कि अक्षयवट के दर्शन के लिए किसी की अनुमति नहीं लेनी होगी।

आसानी से होगा दर्शन : सोनाली

नृत्यांगना सोनाली कहती हैं कि अक्षयवट का दर्शन-पूजन बिना किसी रोक-टोक के होगा उसका विश्वास नहीं हो रहा है। यह मांग तो पुरानी थी, जो दैनिक जागरण ने उठाई और इतनी जल्दी पूरी हो गई। वास्तव में यह मेरे लिए किसी आश्चर्य से कम नही है।

जनभावनाओं की जीत, जागरण को बधाई : नरेंद्रदेव

लोकतंत्र सेनानी नरेंद्रदेव पांडेय कहते हैं कि अक्षयवट का आम श्रद्धालुओं के लिए खुलना जनभावनाओं की जीत है। हर वर्ग के लोग वहां पहुंचने पर लगने वाली पाबंदी खत्म कराना चाहते थे। जो पूरी हुई, अक्षयवट को खुलवाने के लिए दैनिक जागरण ने जो समाचारीय अभियान चलाया उसके लिए उन्हें बधाई।

जागरण को बधाई, सदा के लिए खुले अक्षयवट : सुबोध

अक्षयवट को खोले जाने की मांग उठाने वाले भाजपा नेता सुबोध सिंह कहते हैं कि दैनिक जागरण ने जिस तरह निरंतरता से यह मुद्दा उठाया था। उसी का नतीजा है कि प्रधानमंत्री ने जनता की आवाज को सुना और अक्षयवट को आमजन के लिए खोलने का निर्णय लिया, लेकिन यह कुंभ में ही नहीं हमेशा होना चाहिए।

खुश हूं कि सब पहुंचेंगे अक्षयवट : डॉ. सुरेश

सेवानिवृत्त चिकित्साधिकारी डॉ. सुरेश द्विवेदी कहते हैं कि अक्षयवट तक हर व्यक्ति आसानी से पहुंच सकेगा, इससे वह खुश हैं। अक्षयवट देववृक्ष है, जिसके दर्शन-पूजन में भेदभाव नहीं होना चाहिए। अक्षयवट को खुलवाने के लिए दैनिक जागरण परिवार ने सराहनीय प्रयास किया है।

 प्रधानमंत्री ने सुनी प्रयागराज की पुकार : मुन्ना भैया

अक्षयवट को खोलने के लिए कई आंदोलन करने वाले व्यापारी नेता अमर वैश्य मुन्ना भैया कहते हैं कि यह मांग लंबे समय से चली आ रही थी। दैनिक जागरण ने जब इसे मुहिम के रूप में स्वीकार कर लिया तो बात पीएमओ तक पहुंची। इसलिए दैनिक जागरण समेत पूरे समस्त सनातनधर्मियों को बधाई।

 
 
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