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जापान का हायाबुसा-2 अंतरिक्ष यान साढ़े तीन साल की यात्रा के बाद पृथ्वी से 30 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित एस्टरॉयड (क्षुद्रग्रह) रायगु पर पहुंच गया है। जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी ने रायगु से जीवन की उत्पत्ति से पर्दा उठाने वाले नमूने एकत्रित करने के लिए दिसंबर, 2014 में यह अभियान लांच किया था। छह साल तक चलने वाले इस अभियान का नाम फाल्कन पक्षी पर रखा गया है, जिसे जापानी भाषा में हायाबुसा कहा जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि एस्टरॉयड सौरमंडल विकसित होने के शुरुआती समय में ही बन गए थे। रायगु पर जैविक पदार्थ, पानी और जीवन की उत्पत्ति के लिए जरूरी तत्व भारी मात्रा में उपलब्ध हो सकते हैं। वहां के नमूनों से पृथ्वी पर जीवन संभव होने के कारणों का पता लगाया जा सकता है। बड़े फ्रिज के आकार वाले हायाबुसा-2 में सोलर पैनल लगे हैं। अभी कुछ महीनों तक यह एस्टरॉयड से 20 किलोमीटर ऊपर रहकर उसका चक्कर लगाएगा और उतरने से पहले उसकी सतह का नक्शा तैयार करेगा। टूथब्रश तो करते हैं, लेकिन क्या जानते हैं किसने बनाया था पहला ब्रश इसके बाद बचे हुए करीब 18 महीनों में यह एस्टरॉयड से नमूने एकत्रित कर 2020 के अंत तक पृथ्वी पर लौट आएगा। जापान के वैज्ञानिकों ने इससे पहले हायाबुसा-1 लांच किया था। इस अभियान के दौरान ज्यादा नमूने नहीं जुटाए जा सके थे। बावजूद इसके वह किसी एस्टरॉयड से पृथ्वी पर नमूने लाने वाला पहला अभियान बना था। हायाबुसा-1 का सात साल लंबा अभियान 2010 में समाप्त हो गया था।

जीवन की उत्पत्ति के साक्ष्य तलाशने एस्टरॉयड पर पहुंचा जापान का यान

जापान का हायाबुसा-2 अंतरिक्ष यान साढ़े तीन साल की यात्रा के बाद पृथ्वी से 30 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित एस्टरॉयड (क्षुद्रग्रह) रायगु पर पहुंच गया है। जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी ने रायगु से जीवन की उत्पत्ति से पर्दा उठाने वाले नमूने एकत्रित करने के लिए दिसंबर, 2014 में यह अभियान लांच किया था।जापान का हायाबुसा-2 अंतरिक्ष यान साढ़े तीन साल की यात्रा के बाद पृथ्वी से 30 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित एस्टरॉयड (क्षुद्रग्रह) रायगु पर पहुंच गया है। जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी ने रायगु से जीवन की उत्पत्ति से पर्दा उठाने वाले नमूने एकत्रित करने के लिए दिसंबर, 2014 में यह अभियान लांच किया था।  छह साल तक चलने वाले इस अभियान का नाम फाल्कन पक्षी पर रखा गया है, जिसे जापानी भाषा में हायाबुसा कहा जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि एस्टरॉयड सौरमंडल विकसित होने के शुरुआती समय में ही बन गए थे। रायगु पर जैविक पदार्थ, पानी और जीवन की उत्पत्ति के लिए जरूरी तत्व भारी मात्रा में उपलब्ध हो सकते हैं।  वहां के नमूनों से पृथ्वी पर जीवन संभव होने के कारणों का पता लगाया जा सकता है। बड़े फ्रिज के आकार वाले हायाबुसा-2 में सोलर पैनल लगे हैं। अभी कुछ महीनों तक यह एस्टरॉयड से 20 किलोमीटर ऊपर रहकर उसका चक्कर लगाएगा और उतरने से पहले उसकी सतह का नक्शा तैयार करेगा।  टूथब्रश तो करते हैं, लेकिन क्या जानते हैं किसने बनाया था पहला ब्रश  इसके बाद बचे हुए करीब 18 महीनों में यह एस्टरॉयड से नमूने एकत्रित कर 2020 के अंत तक पृथ्वी पर लौट आएगा। जापान के वैज्ञानिकों ने इससे पहले हायाबुसा-1 लांच किया था।  इस अभियान के दौरान ज्यादा नमूने नहीं जुटाए जा सके थे। बावजूद इसके वह किसी एस्टरॉयड से पृथ्वी पर नमूने लाने वाला पहला अभियान बना था। हायाबुसा-1 का सात साल लंबा अभियान 2010 में समाप्त हो गया था।

छह साल तक चलने वाले इस अभियान का नाम फाल्कन पक्षी पर रखा गया है, जिसे जापानी भाषा में हायाबुसा कहा जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि एस्टरॉयड सौरमंडल विकसित होने के शुरुआती समय में ही बन गए थे। रायगु पर जैविक पदार्थ, पानी और जीवन की उत्पत्ति के लिए जरूरी तत्व भारी मात्रा में उपलब्ध हो सकते हैं।

वहां के नमूनों से पृथ्वी पर जीवन संभव होने के कारणों का पता लगाया जा सकता है। बड़े फ्रिज के आकार वाले हायाबुसा-2 में सोलर पैनल लगे हैं। अभी कुछ महीनों तक यह एस्टरॉयड से 20 किलोमीटर ऊपर रहकर उसका चक्कर लगाएगा और उतरने से पहले उसकी सतह का नक्शा तैयार करेगा।

इसके बाद बचे हुए करीब 18 महीनों में यह एस्टरॉयड से नमूने एकत्रित कर 2020 के अंत तक पृथ्वी पर लौट आएगा। जापान के वैज्ञानिकों ने इससे पहले हायाबुसा-1 लांच किया था।

इस अभियान के दौरान ज्यादा नमूने नहीं जुटाए जा सके थे। बावजूद इसके वह किसी एस्टरॉयड से पृथ्वी पर नमूने लाने वाला पहला अभियान बना था। हायाबुसा-1 का सात साल लंबा अभियान 2010 में समाप्त हो गया था।

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