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दावोस में बोले रघुराम राजन- सुधारों को पटरी से उतार देते हैं नौकरशाह, मंत्रियों को मिले नेतृत्व

दावोस में विश्व आर्थिक मंच सम्मेलन में शरीक हुए पूर्व रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन ने देश में नौकरशाही को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि आर्थिक सुधारों की विफलता का बहुत बड़ा कारण नौकरशाही में निहित है. इंडिया टुडे से एक्सक्लूसिव बातचीत में राजन ने कहा कि सुधारों की दिशा को निर्धारित करते समय नौकरशाह एक ऐसा पक्ष जोड़ देता है जिससे सभी सुधार धरे के धरे रह जाते हैं.  

सरकारी बैंकों के निजीकरण पर पूछे गए सवाल के जवाब में राजन ने यह टिप्पणी की. राजन ने कहा कि यह बेहद जरूरी है कि सरकारी बैंकों में सरकारी की दखलंदाजी को रोका जाए. वहीं किसी नौकरशाह को बैंक की कमान देने की जगह उचित व्यक्ति के हाथ में बैंक को सौंपने की जरूरत है. राजन ने कहा कि सरकार को यह साफ तौर पर समझने की जरूरत है कि सही व्यक्ति न कि नौकरशाह को बैंक चलाने के लिए स्वतंत्र करने का कोई विकल्प नहीं है. सरकार का काम बैंकों को यह बताना कि उसे क्या करना चाहिए नहीं है.

हालांकि रिजर्व बैंक के अपने कार्यकाल के दौरान नौकरशाहों से मुलाकात के अपने अनुभव के आधार पर राजन ने कहा कि उनका सामना कई किस्म के नौकरशाहों से हुआ. जहां कई बेहतरीन अधिकारियों से उनका पाला पड़ा वहीं कई ऐसे अधिकारियों से भी वह रूबरू हुए जिनके किस्म को राजन सुधार की दिशा में समस्या मानते हैं.

खासबात है कि राजन ने कहा कि मौजूदा मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान भारत में विकेंद्रीकरण का उल्टा देखने को मिल रहा है. राजन के मुताबिक मोदी सरकार में केन्द्रीय मंत्रियों की भूमिका नौकरशाह अदा कर रहे हैं. जबकि आदर्श स्थिति है कि मंत्रियों को नेतृत्व करते हुए नौकरशाहों को निर्देश देने का काम करना चाहिए. लिहाजा राजन के मुताबिक मोदी सरकार ने केन्द्रीय मंत्रियों की जगह नौकरशाह को सत्ता के केन्द्र में रखा है.

राजन ने कहा कि भारत को एक ऐसे नौकरशाही ढांचे की जरूरत है चीजों को आगे बढ़ाने वाली हो न की बाधा पैदा करने वाली. बैंक एनपीए की समस्या पर सरकार के दृष्टिकोण पर राजन ने कहा कि मौजूदा समय में सरकार एनपीए की पहचान होने के बाद कर्ज लेने वाली कंपनियों के कर्ज की किश्त को रोकने का काम करती है. वहीं सीबीआई, सीवीसी, ईडी जैसी नौकरशाही संस्थाएं ऐसी कंपनियों के उभरने के सभी रास्तों को बंद कर  देती हैं. राजन ने कहा कि उनका मानना है कि एनपीए की पहचान होने के बाद कर्ज की किश्त बंद करना गलत प्रक्रिया है और इससे सिर्फ देश का कारोबारी माहौल खराब होगा.

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