दिल्ली नगर निगम चुनाव में भाजपा से बगावत करने वाले नेताओं को अब गलती का अहसास होने लगा है और वह घर वापसी की कोशिश में लगे हुए हैं, इसके लिए वह पार्टी के नेताओं व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पदाधिकारियों की परिक्रमा कर रहे हैं। वहीं, पार्टी के कई पदाधिकारी उनकी वापसी की राह में रोड़ा अटका रहे हैं। उनका तर्क है कि इससे पार्टी में अनुशासनहीनता बढ़ेगी, इसलिए चुनाव में पार्टी उम्मीदवारों के खिलाफ काम करने वालों की किसी भी सूरत में वापसी नहीं होनी चाहिए।

बता दें कि नगर निगम चुनाव में भाजपा ने बड़ा दांव खेलते हुए पार्षदबंदी का फैसला किया था। इस कारण सभी पार्षदों के टिकट काटकर नए लोगों को चुनाव मैदान में उतारा गया था। उनके परिजनों को भी चुनाव मैदान में उतारने से साफ इन्कार कर दिया था, जिससे कई पार्षद नाराज हो गए थे।

वहीं, कई अन्य नेता भी टिकट नहीं मिलने से नाराज हो गए थे। इनमें से कई पार्टी के फैसले का विरोध करते हुए चुनाव मैदान में उतर गए थे तो कई अपने परिजनों को उतार दिया था। कई ऐसे भी थे जो चुनाव तो नहीं लड़ा, लेकिन पार्टी उम्मीदवार की खुलकर मुखालफत की थी।

इन बागियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए पार्टी नेतृत्व ने इन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था। 80 से ज्यादा नेताओं व वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को पार्टी से छह वर्षो के लिए बर्खास्त किया गया था।

इन बागियों में से सिर्फ कृष्ण गहलोत ही नवादा वार्ड से नगर निगम चुनाव जीतने में सफल रहे थे, जबकि भाजपा की तीनों निगमों में जीत हुई थी। भाजपा से बाहर किए जाने की वजह से कई बागी नेताओं का सियासी भविष्य पर ग्रहण लग गया है, इसलिए वह किसी भी कीमत में वापसी चाहते हैं। बताते हैं कि कृष्ण गहलोत भी वापसी के फिराक में हैं जिससे कि निगम में कोई पद मिल सके।

इन नेताओं को लेकर पिछले दिनों प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारियों की बैठक भी हुई थी। बैठक में कई पदाधिकारियों का कहना था कि इस तरह के लोगों को पार्टी में वापस लेने से गलत संदेश जाएगा और अनुशासनहीनता को बढ़ावा मिलेगा।

उनका कहना है कि यदि लाभ के पद मामले में आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता जाती है तो दिल्ली में उपचुनाव भी होंगे। अगले वर्ष लोकसभा और बाद में विधानसभा चुनाव भी हैं। ऐसे में टिकट नहीं मिलने पर पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ने वालों को बढ़ावा मिलेगा, इसलिए अनुशासनहीनता को रोकने के लिए कठोर रवैया जरूरी है।