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भाजपा की राजनीतिक यात्रा का श्रेय दीनदयाल जी को: मोदी

moodनई दिल्ली। भाजपा के शून्य से लेकर शिखर तक पहुंचने की राजनीतिक यात्रा का श्रेय पंडित दीन दयाल उपाध्याय को देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि “पंडित जी ने कम समय में विपक्ष से लेकर विकल्प के रूप में एक राजनैतिक दल को खड़ा किया”। आज भाजपा जो भी है वह उपाध्याय जी ने जो नींव डाली थीं उसी का प्रतिफल है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि उपाध्याय ने संगठन आधारित राजनैतिक दल चलाने का विचार कर उसे जमीन पर उतारा और एक राजनैतिक दल खड़ा कर दिया। भारतीय जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी तक की पहचान एक संगठन आधारित दल के रूप में ही है। दीन दयाल जी के राजनैतिक कौशल का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी उपाध्याय के राजनैतिक विचार और कौशल से इतने प्रभावित थे कि एक बार उन्होंने कहा कि दीन दयाल जैसा एक और दीनदयाल हो तो भारतीय राजनीति का रूप बदल जाये।

1962 से 67 के कालकंड को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ये वो दौर था जब कांग्रेस में गिरावट आ रही थी किन्तु कांग्रेस के विकल्प के रूप में कोई दल नही था। ऐसे वक्त में उपाध्याय ने छोटे-छोटे दलों को एकजुट कर कांग्रेस का विकल्प प्रस्तुत किया। राम मनोहर लोहिया ने उस वक्त कहा कि, ये उपाध्याय के विशाल राजनैतिक दूरदृष्टि की ही देन है कि सभी दल एक साथ आये और कांग्रेस का विकल्प खड़ा किया। मोदी ने कहा कि पंडित जी के राजनैतिक कौशल को समझने के लिये 1962 से 67 का कालखंड का खासा महत्वपूर्ण है।

मोदी ने उपाध्याय के व्यक्तित्व, कृतित्व के तमाम पहलुओं का जिक्र करते हुए कहा कि उपाध्याय ने कार्यकर्ताओं के बल पर राजनैतिक संगठन की नींव डाली। उनका मानना था कि, स्वतंत्र चिंतन, राष्ट्रभक्ति से प्रेरित कार्यकर्ताओ का समूह तैयार कर उसे संगठन के तौर पर विकसित करें तदुपरांत राजनीति में पदार्पण। उन्होंने इस विचार पर अमल किया और कार्यकर्ताओं के निर्माण व संगठन के विस्तार में जीवन खपा दिया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि विश्व की जरूरतों को आज पूरा करने के लिए हमें सामर्थ्यवान बनना चाहिए। यही दीनदयाल जी भी चाहते थे। उनका मानना था कि व्यक्ति, परिवार, समाज समर्थ बने और राष्ट्र समर्थ बने जिसकी एक मजबूत सेना हो। उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि यदि कोई व्यायाम कर रहा हो तो उसके पड़ोसी को यह नहीं समझना चाहिये कि वह ऐसा उनके लिए कर रहे है। उनका इशारा पाकिस्तान की ओर था।

उन्होंने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि समाज का उत्थान नीचे से होना चाहिए और गरीब के उत्थान से ही समाज और राष्ट्र का उत्थान संभव है। उनके इसी विचार पर समर्पित होकर उनकी सरकार उनके जन्मशताब्दी वर्ष को गरीब कल्याण को समर्पित करेगी। इस दौरान सरकार का हर काम गरीब केंद्रित होगा ।

इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विचार अपने आप में शक्ति होता है और दीन दयाल जी का यह विचार हमें प्रसाद के रूप में मिला है। वह खंड के निर्माताओं का धन्यवाद करते हैं कि उन्होंने इस विचार को आने वाली पीढ़ियों के लिए संग्रहित किया। उन्होंने कहा कि यह पंद्रह ग्रन्थ पंडित जी के जीवन की त्रिवेणी है जिसमें हमें स्नान करने का अवसर मिला है। श्री मोदी ने कहा कि दीनदयाल जी का दर्शन वही है जिसे हम वेद से विवेकानंद तक और सुदर्शन चक्रधारी मोहन से चरखा चलाने वाले मोहन (गांधीजी) तक सुनते आये हैं।
भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विचारक दीन दयाल उपाध्याय के जन्म शताब्दी वर्ष पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके दर्शन को समर्पित कार्यों की एक श्रृंखला ‘दीनदयाल उपाध्याय संपूर्ण वाङ्मय’ का रविवार को यहां विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम में विमोचन किया। संग्रह में श्री उपाध्याय के बौद्धिक संवादों, उपदेशों, लेखों, भाषणों और उनके जीवन से जुडी घटनाओं को शामिल किया गया है ।

इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह भैया जी जोशी ने कहा कि भारत की पहचान चिंतन के आधार पर भी है इसी क्रम में दीनयाल उपाध्याय का दर्शन सम्पूर्ण मानवजाति के लिए है। भारत के चिंतन का आधार मजबूत है लेकिन वर्तमान नेतृत्वकर्ता भी इसे मजबूत बनाते हैं और वर्तमान में वह बना भी रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने नए विचारों को सुना पर स्वीकार तब किया, जब वह मानव कल्याण के विचार बने। दीनदयाल जी का मानव दर्शन व्यक्ति की बुनियादी जरुरत पूरा करने पर केंद्रित था। उसी के क्रियान्वयन में आज नेतृत्व लगा हुआ है। समाज के बारे में वह सहकारिता को उत्तम साधन मानते थे। इसी सूत्र की रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी बनती है। हमे अहंकार नहीं बल्कि स्वभिमान है कि हमारे पास विश्व को देने के लिए बहुत कुछ है। भारत की शक्ति मार्गदर्शन की शक्ति है जो विश्व को दिशा देना चाहती है।

इस अवसर पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि वह मानते है कि दीनदयाल जी एक सफल नेता भी थे। उनके कालखंड में जनसंघ ने प्रगति ही की। उन्होंने सिद्धांत और राष्ट्रवाद की राजनीति की थी और हमारा कर्तव्य है कि हम उसे आगे लेकर जाएं। यह सौभाग्य है कि आज उनकी जन्मशताब्दी वर्ष पर देश में भाजपा की सरकार है। मोदी जी के नेतृत्व में यह सरकार कल्याण के कार्य कर रही है जिससे भारत प्रगति की ओर बढ़ रहा है। उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि भारत विश्व में गौरवशाली राष्ट्र के रुप में उभरा है। दीनदयाल जी की दूरदर्शिता के बारे में उन्होंने कहा कि भविष्य में आने वाली समस्यायों के बारे में उन्हें पहले ही पता चल गया था।

इस अवसर पर खंड के संपादन में शामिल रहे वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय, अचुत्यानंद मिश्र, जवाहर लाल कौल और खंड के संपादक डॉक्टर महेश चंद शर्मा भी मंच पर मौजूद रहे। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्जवलन से हुई। डॉक्टर महेश चंद शर्मा ने कहा कि दीनदयाल जी ने कहा था कि स्वयंसेवक को राजनीति से अलिप्त रहना चाहिए जैसे कि वह स्वयं हैं। उनका मानना था कि वह तो राजनीति में संस्कृति की धरोहर बन कर आये हैं। कार्यक्रम की शुरुआत से पहले दीनदयाल उपाध्याय के जीवन पर आधारित एक फीचर फिल्म दिखाई गई जिसमें उनके जीवन पर प्रकाश डाला गया और जिसमें कई महान विभूतियों ने अपने अनुभव साझा किए।

इस संग्रह का प्रकाशन एकात्म मानवदर्शन अनुसन्धान एवं विकास प्रतिष्ठान एवं प्रभात प्रकाशन ने मिलकर किया है। 15 संस्करण वाले इस संग्रह में श्री उपाध्याय के बताए गए भारतीयता के प्रतिरूप के आधार पर समकालीन समस्याओं को सुलझाने के दृष्टिकोण एवं समीक्षात्मक विश्लेषण पर प्रकाश डाला गया है। ‘दीनदयाल उपाध्याय संपूर्ण वाङ्मय’ संग्रह में जन संघ की यात्रा को रेखांकित करते हुए उपाध्याय के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को रेखांकित किया गया है। संग्रह के अंतिम से पहले वाले संस्करण में उपाध्याय के 1967 में जनसंघ प्रमुख बनने के तत्काल बाद उनकी मौत संबंधी घटनाओं का भी जिक्र किया गया है।

25 सितम्बर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में जन्मे दीनदयाल उपाध्याय का इस वर्ष भाजपा शताब्दी वर्ष मना रही है। भारतीय जनता पार्टी ने 25 सितम्बर को कोझिकोड की सभा में कहा था कि वह उनके जन्मशताब्दी वर्ष को देशभर में पिछड़ों के उत्थान को समर्पित करेगी।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक स्वयंसेवक के साथ-साथ दार्शनिक, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, इतिहासकार, पत्रकार भी थे। 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के असमय निधन के बाद जनसंघ के संगठन की जिम्मेदारी पंडित दीनदयाल उपाध्याय को दी गई थी। भारतीय जनसंघ का 14वां वार्षिक अधिवेशन 1967 में कोझीकोड (कालीकट) में हुआ जिसमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय को अखिल भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया।

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