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महिलाओं से तलाक़ का हक़ छीनना चाहती है सरकार: मुस्लिम लॉ बोर्ड

mmmनई दिल्ली। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ( एईएमपीएलबी) का आरोप है कि महिलाओं की समानता की बात करने वाली केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा तीन-तलाक़ को मुद्दा बनाकर मुस्लिम समाज की महिलाओं से तलाक़ का हक छीन रही है। जबकि मुस्लिम समाज के असली मुद्दे बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा हैं जिसके प्रति सरकार उदासीन है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की सदस्य अस्मा जहरा ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, “मुस्लिम महिलाएं सुरक्षित है। उन्हें शरीयत में सभी हक़ मिले हुए है। “साहवा” भी है जिसके जरिये उन्हें सारे हक़ प्राप्त हैं। मोदी जी हक़ की बात करते है, लैंगिक न्याय की बात करते है। पर देश की संसद में समानता क्यों नही दिखती? इस्लाम में शादी एक कॉन्ट्रैक्ट की तरह है, कोई बंदिश नहीं है। इसमे कोई असमानता की बात ही नहीं है।“

उन्होंने कहा, तलाक़ कोई समस्या नहीं है। ये परेशानी का समाधान है। देशभर की मुस्लिम महिलाएं इसके खिलाफ है। जिस तरह तीन तलाक़ को मीडिया हाइप बनाया जा रहा है। इस्लाम में तलाक़ के तीन महीने बाद महिला किसी से भी शादी कर सकती है पर तलाक़ के बाकी तरीके, खासतौर पर संवैधानिक तरीके इतने आसान नहीं है। कई बार तो छह-छह साल तक लग जाते हैं।

अस्मा जहरा ने आरोप लगाया, “समानता की बात करने वाले दूसरे धर्मों में मुस्लिम धर्म की तरह दूसरी महिला को पत्नी का दर्जा नहीं दिया जाता। इस मामले में यहां समानता है। तीन तलाक़ मुद्दा नहीं है, इसे जबरन बनाया जा रहा है। इतनी चिंता दहेज प्रथा रोकने के प्रति क्यों नहीं दिखाई जा रही? महिला सुरक्षा मुद्दा है, तीन तलाक़ मुद्दा नहीं है। देश की महिलाएं, गांव-देहात की महिलाएं बुर्के में इसका विरोध करने के लिए बाहर आ रही हैं।“

उन्होंने कहा कि वे महिलाएं जिन्हें शरीयत क़ुरान के बारे में नहीं पता, राजनीतिक पार्टी उन्हें भ्रमित कर रही है।जिस तरीके से खून की जांच खुद नहीं की जा सकती, वैसे ही कोई भी इसका विशेषज्ञ नहीं हो सकता। यहां जो मुस्लमान नहीं है, वे कुरान समझा रहे हैं। कुरान के हिसाब से तलाक बहुत आसान है। इसे मुश्किल नहीं बनाया जाना चाहिए।

वहीं वीमेन इंडिया राजस्थान की सदस्य यास्मीन फारुखी ने कहा, ‘अन्य धर्मो में तलाक़ नहीं, अलगाव होता है। अलग रहते है पर शादी नहीं हो पाती। इस्लाम में तलाक़ के दो तरीके हैं।एक हसन और दूसरा तलाके विदा – इसका मतलब “चले जाओ”। ये कहने के बाद भी महिला को पुरुष पर थोपने पर मजबूर नहीं किया जा सकता। अगर औरत कहती है कि शादी नहीं करनी तो नहीं होगी।

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