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यूपी चुनाव के पहले चरण में 839 प्रत्याशियों का भविष्य ईवीएम में कैद

नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश का प्रथम चरण का चुनाव कई राजनैतिक दिग्गजों का भविष्य तय करेगा। उत्तर प्रदेश में सियासत का संग्राम शनिवार को पश्चिम उत्तर प्रदेश में सम्पन्न हुआ।

चुनाव के इस पहले ही चरण में ही कई सूरमाओं की परीक्षा भी हुई है। आज से एक माह बाद 11 मार्च को इन दिग्गजों पर जनता का फैसला आएगा। यह 11 मार्च को ही स्पष्ट होगा कि आज का मतदान पश्चमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी – कोंग्रेस महागठबंधन, बसपा, रालोद के साथ जाता है या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को स्वीकार करते हुए लोकसभा चुनाव की तरह भाजपा के कमल का फूल खिलाता है।

यूपी चुनाव की घोषणाएं होने के पहले से ही पश्चिम यूपी के कैराना पर सम्पूर्ण देश की निगाहें बनी हुई हैं। कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उठाने वाले भाजपा सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह चुनाव लड़ रही हैं। भाजपा को इन सीटों पर काउंटर पोलराइजेशन का भरोसा है। मृगांका के सामने उनके ही चचरे भाई अनिल चौहान आरएलडी से खड़े हैं। ऐसे में हुकुम सिंह के लिए ये चुनौती वाली बात ही होगी कि वे साबित करें कि उनके उठाए मुद्दे का लोगों की तरफ जनता का समर्थन है। वहीं मुज़फ़्फ़रनगर दंगों में आरोपी सरधना से बीजेपी विधायक संगीत सिंह सोम और थानाभवन से सुरेश राणा का भी चुनाव जीतना या हारना बहुत हद तक प्रतीकात्मक होगा।

विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 15 जिलों में वोट डाले गए हैं। पहले चरण में गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, मेरठ, हापुड़, शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, ,बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, हाथरस, आगरा, फिरोजाबादा, एटा, कासगंज में वोट डाले गए है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 73 सीटों पर सभी राजनैतिक दलों ने अपने अपने दांव चले है। कुल 839 उम्मीदवार मैदान में हैं। जनता ने आज मतदान से इन सबका भविष्य ईवीएम में कैद कर दिया है।

सभी सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला है। जहां समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन इलाके में ताल ठोंक रहा है। वहीं भाजपा, बसपा और रालोद अपने अपने चुनावी समीकरणों से जुटे हुए हैं। 15 में से 11 जिले में जाट वोटरों की बड़ी भूमिका है। ऐसे में जाट वोटर को लेकर भाजपा और राष्ट्रीय लोकदल के बीच खींचतान है। जाट,मुस्लिम और पिछड़ी जातियां इन सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा करती आई हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद हालात बदले हैं। ऐसे में आरएलडी ने सपा से हाथ मिलाना ठीक नहीं समझा। वहीं मायावती ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सोशल इंजीनियरिंग का पूरा खाका तैयार किया है। जाट, मुस्लिम और दलित उम्मीदवार उतारने में बीएसपी ने पूरे गणित का ध्यान रखा है। जबकि भाजपा को उम्मीद है कि वोटों के ध्रुवीकरण से वो इस इलाके में सीटों का बड़ा हिस्सा अपने पक्ष में करेगी। राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख अजित सिंह का भविष्य भी काफी हद तक आज तय हो गया है।

 

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