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यूपी में अंतर्कलह दूर करे कांग्रेस : सुधांशु द्विवेदी

 

UPउत्तरप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी खासी गंभीर है, जिसकी झलक पार्टी की चुनावी रणनीति में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। लेकिन पार्टी के मार्ग में मुश्किलें भी कम नहीं हैं। क्यों कि पिछले एकाध माह के अंदर ही पार्टी के 7 विधायक कांग्रेस छोडक़र दूसरे राजनीतिक दलों में शामिल हो चुके हैं साथ ही कई और नेता भी अन्य दलों में अपने लिये संभावनाएं तलाश रहे हैं, ऐसा विश्वस्त सूत्रों का कहना है। वहीं यूपी में कांग्रेस पार्टी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के प्रति पार्टी नेताओं की नाराजगी लगातार उजागर हो रही है। पार्टी में पहले से ही यह आवश्यकता शिद्दत के साथ महसूस की जाती रही है कि चुनाव रणनीतकार प्रशांत किशोर राज्य के कांग्रेस नेताओं के साथ समन्वय बनाएं तथा पार्टी नेताओं- कार्यकर्ताओं के सम्मान का पूरा ध्यान रखते हुए उन्हें उपयुक्त चुनावी जिम्मेदारियां सौंपें लेकिन राज्य के ताजा हालात को देखकर ऐसा लग रहा है कि प्रशांत किशोर ने इस आवश्यकता को पूरा करने की अभी तक जहमत नहीं उठाई है और न ही कांग्रेस हाईकमान ने ही पीके को इस संदर्भ में किसी तरह से आगाह किया है।अब राज्य में हालात यह है कि यूपी में कांग्रेस संगठन व टीम पीके अपना-अपना राग अलाप रहे हैं। इन सभी कारणों के चलते यूपी कांग्रेस में मची अंतर्कलह चुनावी बेला में कांग्रेस पार्टी के लिये राजनीतिक नुकसान का कारण बन सकती है। कांग्रेस अगर सही मायने में यूपी में चुनाव जीतने को लेकर गंभीर है तो उसे इस अंतर्कलह को दूर करना होगा। पार्टी नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को उत्साहित, ऊर्जित एवं एकजुट करने के मूल्यवान उपाय करने होंगे। साथ ही कांग्रेस पार्टी को पीके के लिये यह संदेश देना ही होगा कि पार्टी के लिये अपने नेताओं एवं कार्यकर्ताओं का सम्मान सर्वोपरि है क्योंकि पार्टी नेता व कार्यकर्ता ही कांग्रेस पार्टी की उस विचारधारा के ध्वजवाहक हैं जिसकी उर्वरता से पार्टी की राजनीतिक जमीन उपजाऊ बनेगी । ऐसा बताया जा रहा है कि पीके की काम करने की हाई प्रोफाइल स्टाइल व उनका अक्खड़ अंदाज यूपी के कांग्रेस नेताओं को रास नहीं आ रहा है। पीके के द्वारा कांग्रेस संगठन के पदाधिकारियों, नेताओं की पूछपरख नहीं की जा रही है तथा वह एकला चलो की रणनीति पर काम कर रहे हैं। यह स्थिति कांग्रेस पार्टी के राजनीतिक हितों की दृष्टि से ठीक नहीं है। कांग्रेस नेताओं के साथ सलाह-मशविरा करने तथा राजनीतिक हितों की दृष्टि से उनका सुझाव लेने के बजाय पीके सिर्फ कांग्रेस नेताओं, पदाधिकारियों को संदेश, आदेश, निर्देश देने का काम कर रहे हैं।यह तो एक प्रकार की तानाशाही है तथा इससे यह भी लगने लगेगा कि जैसे पीके को कांग्रेस हाईकमान ने पैराशूट स्टाइल में राज्य के कांग्रेस नेताओं पर थोप दिया हो। राजनीति एक तरह की तपस्या है, जिसके पुण्य प्रभाव रूपी फल प्राप्त करने के लिये काफी कौशल की जरूरत होती है तथा चुनाव जीतने के लिये राजनीतिक जनों के बीच समन्वय, संवाद, शालीनता एवं सदाशयता का होना बेहद जरूरी है। और फिर जब बात चुनावी रणनीति तय करके सबको एकजुट होकर खुद को मिशन में समर्पित करने की हो तब तो किसी भी तरह की कोताही, अहम् या टकराव की स्थिति निर्मित होनी ही नहीं चाहिये। लेकिन बिहार में नीतीश कुमार को चुनाव जिताने का श्रेय ले चुके पीके शायद यूपी में कांग्रेस पार्टी के राजनीतिक मिशन को लेकर आवश्यकता से कुछ ज्यादा ही आत्मविश्वासी हो गये हैं। इस आत्मविश्वास में एक विशेष तरह का अहंकार भी झलक रहा है, जो कांग्रेस नेताओं, पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को बिलकुल ही रास नहीं आ रहा है।कांग्रेस पार्टी यूपी चुनाव को लेकर पूरी ताकत झोंकने की तैयारी में है तथा पार्टी की ओर से जो संगठनात्मक जमावट व आवश्यक परिवर्तन किये गये हैं, उनका मकसद राज्य का आगामी विधानसभा चुनाव जीतना ही है। लेकिन मौजूदा समय में जिस तरह से घमासान की स्थिति दिखाई दे रही है तथा राज्य के नेताओं को पीके की कार्यप्रणाली खटक रही है, यह स्थिति कांग्रेस पार्टी के राजनीतिक हितों की दृष्टि से ठीक नहीं है। वैसे भी राज्य के पार्टी के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं की योग्यता, विद्वता एवं उनके सुदीर्घ राजनीतिक अनुभव का लाभ तो चुनाव में पार्टी को लेना ही चाहिये। राजनीति के लिये वैसे भी प्रोफेशनल लोग उपयुक्त नहीं होते बल्कि सेवाभाव व कर्मठता की भावना से लबरेज राजनीतिक लोग ही राजनीतिक मिशन को सफलता के मुकाम तक पहुंचा सकते हैं। यूपी के कांग्रेस नेताओं व पीके में यही बुनियादी फर्क है। पीके एक प्रोफेशनल व्यक्ति हैं जबकि पार्टी के राज्य के नेता पार्टी के एजेंडे एवं उद्देश्यों के ध्वजवाहक हैं।

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