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लुटाय देब खटिया छपने के वास्ते

rr1कांग्रेस की खाट खड़ी है। उत्तर प्रदेश में तो कई सालों से बिछी ही नहीं। कांग्रेस खाट बिछा रही है लेकिन वह बिछने के कुछ देर बाद ही लुट जा रही है। प्रदेश के कई जिलों में ऐसा हो चुका है और नहीं लगता कि यह सिलसिला जल्द थमने वाला है लेकिन कांग्रेस को भी चिंता नहीं। तुम लूटे जाओ, हम बिछाए जाएंगे? खाट आती ही कितने की है। लुट भी गई तो क्या? प्रचार का मौका तो मिल ही रहा है। यही क्या कम है? मीडिया वाले अभी यह बात समझ नहीं पाए हैं, अन्यथा वह कांग्रेस की इस चाल का कोई तोड़ जरूर निकालते। बिना हर्र फिटकरी लगाए कांग्रेस की पब्लिसिटी थोड़े ही होने देते। खाट भी चुनावी हथकंडा बन सकती है, कांग्रेस ने यह जता तो दिया है। जिस तरह पूरे देश में कांग्रेस की खाट लुटने की खबरें वायरल हो रही हैं। उसने कांग्रेस की मरी बछिया में जान डाल दी है। वह पगुराने लगी है। सींगे हिलाने लगी हैं। वैसे भी खाट बिछाने में स्वागत का भाव होता है। बिछी खाट को खड़ी करने में सुविधा के संतुलन का भाव होता है। मुहावरों की भाषा में यह परेशानी पैदा करने का भी भाव है और खाट उठ जाए तो प्रतिष्ठा ही दांव पर लग जाती है। उत्तर प्रदेश में आजकल राहुल गांधी की खाट पंचायतें हो रही हैं और वे खाप पंचायतों की तरह की लोकप्रिय हो रही हैं । इसकी वजह यह है कि वे आजकल किसानों को खाट पर बैठाकर अपनी बात कह रहे हैं। सम्मान देना तो राहुल जानते ही हैं। लेकिन वे इतने सीधे और सरल हैं कि किसानों और कांग्रेसियों में फर्क नहीं कर पा रहे। उन्हें पता ही नहीं चलता कि खाट पर बैठे लोग किसान हैं या जमीन पर बैठे लोग किसान हैं। एसी कारों से बैठकर आया नेता तो जमीन पर बैठने से रहा। वह तो खाट पर ही बैठेगा। संप्रति राहुल गांधी की खाट पंचायत चर्चा में है। इसलिए कि पंचायत के बाद तुरंत खाटें गायब हो जाती हैं। पता ही नहीं चलता कि यहां कोई खाट बिछी भी थी। खाटें बिछाई जाती हैं किसानों के लिए लेकिन कोई किसान उस पर बैठता नहीं। बैठे तो तब न जब उस पर जगह हो। खटिए पर तो कांग्रेसी ही बैठे रहते हैं। राहुल के जाते ही वे भी सरक लेते हैं और खटिया लावारिस हो जाती है।

जो लंबे समय से खटिए के अभाव में जमीन पर बैठा रहा हो या खड़ा रहा हो, खटिया खाली हुई तो उस पर बैठना उसका हक है लेकिन राहुल के जाने के बाद खटिया पर बैठना बुद्धिमानी तो नहीं, वह उसे अपने साथ ले जाता है। फिर उसका अपने हिसाब से इस्तेमाल करता है। कांग्रेस को इस बहाने लगे हाथ काफी प्रचार मिल जाता है। कम खर्च में ज्यादा पब्लिसिटी। पूरे देश में छप रहा है कि कांग्रेस की खटिया लुट गई। विपक्ष चटकारे ले रहा है कि जो अपनी खाट नहीं संभाल पा रहा, वह देश क्या संभालेगा? राहुल गांधी वैसे भी जिम्मेदारी संभालने से भागते रहे हैं। कांग्रेसी उन्हें अध्यक्ष बताने को बेताब हैं लेकिन वे हैं कि पार्टी के लिए माहौल बनाने में जुटे हैं। विपक्ष के चटकारों से तिलमिलाए राहुल गांधी कह रहे हैं कि पूंजीपतियों के कर्ज माफ करने वाली सरकार को किसानों की कोई चिंता नहीं लेकिन वे किसानों को खटिया चोर जरूर कह रहे हैं। नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी को घेरने का इससे बेहतर अन्य कोई मौका तो कांग्रेस के पास था भी नहीं। खटिया ने उसकी मुराद पूरी कर दी। वह चोरी न जाती तो नरेंद्र मोदी पर दोषारोपण का एक अदद मौका हाथ से निकल जाता। नरेंद्र मोदी ने तो लोकसभा चुनाव से ही कांग्रेस की खटिया खड़ी कर रखी है। उनकी खटिया खड़ी करने के लिए अपनी खटिया तो उठवानी ही पड़ेगी।

कवि रामकृष्ण तिवारी ‘मधुप’ की एक कविता है- ‘अंगार सजाता है कोई, इतबार किसी का होता है। घर-बार बनाता है कोई सत्कार किसी का होता है।’ खाट पंचायत पर भी कमोवेश यही बात लागू हो रही है। भाजपा पर आरोप लगाने के लिए खटिया चोरी के हालात पैदा करो और फिर आरोप लगाओ कि किसानों को खटिया चोर क्यों कहा जा रहा है? एक जगह जब इस तरह के हालात बने और सतर्क हो जाना चाहिए था। कांग्रेस की खटिया चोरी न हो। इसके लिए खटिया बिछाने वाले कांग्रेस के हाथों को उसे उठाने का भी दायित्व निभाना चाहिए। खटिया बिछाना और उठाना सम्मान का भाव प्रकट करता है लेकिन खटिया बिछाकर छोड़ देना तो संपूर्ण निरादर है। ऐसे निरादर का वजूद क्यों बना रहना चाहिए? सत्ता के साठ से अधिक वर्षों में अगर कांग्रेस ने किसानों के बारे में सोचा भी होता तो आज देश का किसान तरक्की के शीर्ष पर होता लेकिन किसान हमेशा उसके लिए वोट का जरिया रहा। किसानों के लिए खटिया बिछाना, उस पर खुद बैठना और जाते वक्त खटिया को न उठाना किसानों का इससे बड़ा अपमान तो कुछ और नहीं हो सकता। इतने से भी पेट नहीं भरा तो मोदी और भाजपा के बहाने किसानों को चोर भी कह दिया।

राहुल गांधी की बातों को वैसे भी कोई गंभीरता से नहीं लेता। वे कह रहे हैं कि किसानों को उपज का पूरा पैसा मिले। जब कांग्रेस की देश में सरकार थी और जहां कहीं, जिस प्रदेश में भी कांग्रेस की सरकारें इस समय हैं, वहां किसानों को क्या पूरा पैसा मिल रहा है , इस सवाल का जवाब कांग्रेस के पास नहीं है। राहुल सुर्खियों में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। वे दलितों के घर भोजन कर सकते हैं। सड़क पर खड़े होकर समोसे खा सकते हैं लेकिन जिन दलितों के खून-पसीने की रोटी खाते हैं, उनके विकास की कोई योजना उनके पास नहीं है। जिसकी खटिया लंबे समय से प्रदेश में खड़ी हो,वह खटिया बिछाना और उठाना क्या जाने? राहुल गांधी जहां-जहां खाट पंचायत कर रहे हैं, वहां खटिया इसलिए छोड़ देते हैं कि लोग उठा ले जाएं ताकि वे भाजपा पर आरोप आयद कर सकें। उन्हें किसानों के खिलाफ भड़का सकें। किसानों ने भी दुनिया देखी है। कांग्रेस उन्हें बरगला नहीं सकती। खटिया के बहाने प्रचार भले मिल जाए लेकिन वह प्रदेश में सत्ता की खटिया बिछा नहीं सकती।

                                                                                                              ————– सियाराम पांडेय ‘शांत

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