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वोट के खातिर नेपालियों को बना दिया भारत का मतदाता

सिद्धार्थनगर।सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा की घोर अनदेखी संविधान के निर्माण में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे में हुई।त्राशदी और अत्यधिक विस्थापितों की दयनीय दशा को देखकर उन्हें बहुत सी रियायतें प्रदान की गई ।

पाकिस्तान से आये लोगो को भारत की नागरिकता प्रदान की गई।  भारत की नागरिकता रखने वालों को उपहार स्वरूप जो एक हथियार प्रदान किया गया वह था मौलिक अधिकार।

भारत के हर नागरिकों को यह अधिकार दिया हया था कि वह अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा सकता है। परन्तु नागरिकों से कुछ अपेक्षा भी रखी गई कि वह संविधान में वर्णित अपने मौलिक कर्तव्यों का भी पूरी ईमानदारी से पालन करें।

भारत के संविधान में नागरिकों के लिए एकल नागरिकता की व्यवस्था की गई।जिसका अर्थ यह है कि कोई व्यक्ति यदि भारत की नागरिकता रखता है तो वह किसी अन्य देश की नागरिकता स्वीकार नही कर सकता।यदि वह किसी अन्य देश की नागरिकता स्वीकार करता है तो उसकी भारत की नागरिकता स्वतः ही समाप्त हो जायेगी।

परंतु उस समय जो एक कमी रह गई। वह था कि किसी ऐसे संस्थान या विकास की व्यवस्था नही की गई जो समय समय पर इसका जाँच कर सकें।

वर्तमान में इसका परिणाम यह है कि आज बहुत से ऐसे लोग है जो नेपाली नागरिक हो कर भी यंहा के नेताओ एवं अधिकारियो के रहमो करम पर यंहा को नागरिकता भी हाशिल कर ले रहे हैं।

यंहा पर बहुत से ऐसे राजनितिक तत्व है जो अपने वोट के लाभ लेने के लिए सारे नियम कानून को तक पर रख कर अपनी वोट बढाने के चक्कर में नेपाली नागरिकों को भारत की नागरिकता दिलाने में पूरी मदद करते है।यही कारण है कि वर्तमान में सीमाई क्षेत्रो में बहुत से ऐसे लोग मिल जायेंगे जो दोहरी नागरिकता (भारत-नेपाल) रखते हैं।

यदि प्रशाशन इसी तरह खामोश रहा तो भविष्य में यह असंभव नही लगता है कि अन्य देशों के लोग नेपाल के रास्ते भारत आकर अपनी गतिविधियां संचालित कर सकें जो इस देश की सुरक्षा पर बहुत बड़ा कुठाराघात होगा।जिस तरह से नेपाल के खुली सीमा का प्रयोग अपराधी और आतंकवादी कर रहे है वह देश की सुरक्षा के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।

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