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संविधान बनाने में वो 15 महिलाएं जिन्होंने दिया योगदान, जानिए इनकी कहानी

26 जनवरी को भारत अपना 70वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. दिन जब देश को अपना संविधान मिला व गणतंत्र बना. गणतंत्र दिवस पर कई सारे वीर योद्धाओं का जिक्र किया जाता है. युद्ध में शहीद हुए वीर जवानों को हर कोई सलाम करता है, लेकिन कुछ खास ही मौके होते हैं जब एक स्त्री की कहानी को याद किया जाता है. संविधान का दिन यानि की गणतंत्र दिवस भी उन्हीं खास दिनों में से एक है. जब-जब संविधान का नाम आता है, तो बाबा साहेब आंबेडकर का जिक्र किया जाता है, लेकिन उन 15 महिलाओं को लोग कभी याद नहीं करते हैं, जिन्होंने इस किताब में कई अध्याय लिखे हैं.

कम ही लोग जानते हैं कि 15 महिलाएं भारत की संविधान सभा की सदस्‍य थीं. जिन्‍होंने संविधान निर्माण में अहम भूमिका निभाई. इनका योगदान देश भले ही याद रखेगा लेकिन ज्‍यादातर लोगों को उनका नाम भी नहीं पता है. आइए उन महिलाओं व उनके योगदान को याद करते हैं.

महिलाएं जो भारत की संविधान सभा की सदस्‍य रहीं 
दुर्गाबाई देशमुख, राजकुमारी अमृत कौर, हंसा मेहता, बेगम ऐजाज रसूल, अम्मू स्वामीनाथन, सुचेता कृपलानी, दकश्यानी वेलयुद्धन, रेनुका रे, पुर्निमा बनर्जी, एनी मसकैरिनी, कमला चौधरी, लीला रॉय, मालती चौधरी, सरोजिनी नायडू व विजयलक्ष्‍मी पंडित. आइये इनमें में से कुछ के भारत के स्‍वतंत्रता आंदोलन व उसके बाद दिए गए योगदान के बारे में जानते हैं. 

राजकुमारी अमृत कौर 
राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी 1889 में तत्‍कालीन संयुक्‍त प्रांत व वर्तमान उत्तर प्रदेश के शहर लखनऊ में हुआ था. स्वतंत्रता की लडा़ई में इनका अहम योगदान रहा है. आजादी के बाद ये प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की कैबीनेट में देश की पहली महिला कैबिनेट मिनिस्टर बनीं. उन्‍हें हेल्‍थ मिनिस्‍टर बनाया गया. वह संविधान सभा की सलाहकार समिति व मौलिक अधिकारों की उप समिति की सदस्‍य थीं. सभा में वह सेंट्रल प्राविंस व बेरार की प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुई थीं. 

दुर्गाबाई देशमुख 
दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई 1909 को आन्ध्र प्रदेश के राजमुंदरी में हुआ था. उन्‍होंने न सिर्फ देश को आजाद कराने बल्कि समाज में महिलाओं की स्थिति बदलने के लिए भी लडा़ई लडी़. भारत के दक्षिणी इलाकों में शिक्षा को बढा़वा देने के लिए इन्होंने ‘बालिका हिन्दी पाठशाला’ भी शुरू की. 12 साल की छोटी सी उम्र में वह असहयोग आंदोलन का हिस्‍सा बनीं. उन पर महात्मा गांधी का प्रभाव था. वकील होने के नाते उन्‍होंने संविधान के कानूनी पहलुओं में योगदान दिया. 

हंसा मेहता 
हंसा मेहता समाज सेविका व स्‍वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही कवयित्री व लेखिका भी थीं. वह 1946 में ऑल इंडिया वुमन कांफ्रेंस की अध्यक्ष भी रहीं थीं. वह संविधान सभा की मौलिक अधिकारों की उप समिति की सदस्य थीं. उन्‍हें संयुक्‍त राष्‍ट्र मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा में ‘ऑल मेन आर बॉर्न फ्री एंड इक्‍वल’ को बदलकर ‘ऑल ह्यूमन बीइंग आर बॉर्न फ्री एंड इक्‍वल’ करवाने के अभियान के लिए भी जाना जाता है. संविधान सभा में वह मुंबई के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुई थीं. 

बेगम ऐजाज रसूल 
इनका जन्म 1908 में पंजाब के संगरूर जिले में हुआ था. वह अपने पति के साथ अल्‍पसंख्‍यक समुदाय की महत्‍वपूर्ण राजनीतिज्ञ बनकर उभरीं व मुस्लिम लीग की सदस्‍य थीं.  वह उत्‍तर प्रदेश विधानसभा की भी सदस्‍य रहीं. वह संविधान सभा की अकेली मुस्लिम महिला सदस्‍य थीं. वह सभा की मौलिक अधिकारों की सलाहकार समिति व अल्‍पसंख्‍यक उप समिति की सदस्‍य थीं. मौलाना अबुल कलाम आजाद व उन्‍होंने धार्मिक आधार पर पृथक निर्वाचन की मांग का विरोध किया था. लीग की भारतीय शाखा भंग होने के बाद वे 1950 में कांग्रेस पार्टी से जुड़ गईं.   

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