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कांग्रेस एलसी भाई जगताप

ED को बताया पालतू कुत्ता ,कांग्रेस MLC के विवादित बयान से मचा हंगामा

महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधान परिषद में उपनेता भाई जगताप ने चुनाव आयोग (ECI) को लेकर विवादित बयान देकर सियासी तूफान खड़ा कर दिया है।

उन्होंने चुनाव आयोग की तुलना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पालतू कुत्ते से की, जिससे राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। अपने बयान पर कायम रहते हुए उन्होंने माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया है।

ईवीएम पर गंभीर आरोप

भाई जगताप ने हाल ही में हुए विधानसभा उपचुनावों के नतीजों पर सवाल उठाते हुए ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) में गड़बड़ी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “महाराष्ट्र की जनता महायुति सरकार के खिलाफ थी, लेकिन ईवीएम हैकिंग के कारण नतीजे सरकार के पक्ष में चले गए।” उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशों का हवाला देते हुए कहा कि वीवीपैट स्लिप्स की जांच सुनिश्चित की जानी चाहिए।

“टीएन शेषन जैसा चुनाव आयोग चाहिए”

जगताप ने चुनाव आयोग पर निष्पक्षता में कमी का आरोप लगाते हुए इसे पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन से सीखने की सलाह दी। उन्होंने कहा, “चुनाव आयोग प्रधानमंत्री और मंत्रियों के दबाव में काम कर रहा है। इसे निष्पक्षता से काम करना चाहिए।”

माफी से इनकार

जब उनसे विवादित बयान पर माफी मांगने के लिए कहा गया, तो उन्होंने दो टूक कहा, “मैं माफी नहीं मांगूंगा। जो मैंने कहा, वह सही है।”

सत्ता पक्ष का पलटवार

भाई जगताप के बयान पर भाजपा और शिवसेना ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। शिवसेना के नेता दीपक केसरकर ने चुनाव आयोग से कार्रवाई की मांग करते हुए कहा, “चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है। इस तरह की भाषा पूरी तरह से अनुचित है, और जगताप को माफी मांगनी चाहिए।”

वहीं, भाजपा के वरिष्ठ नेता विजेंद्र गुप्ता ने इस बयान को शर्मनाक बताते हुए कहा, “कांग्रेस हार से घबराकर लोकतांत्रिक संस्थाओं पर सवाल खड़े कर रही है। यह भारतीय चुनाव प्रणाली का अपमान है।”

कांग्रेस का चुनाव आयोग को ज्ञापन

इस बीच, कांग्रेस ने राज्य चुनाव आयोग को ज्ञापन सौंपते हुए हालिया चुनावों में धांधली का आरोप लगाया है। पार्टी ने बैलट पेपर की वापसी और चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता की मांग की है।

सियासी गलियारों में गरमाई बहस

भाई जगताप का बयान महाराष्ट्र की राजनीति में चर्चा का विषय बन गया है। जहां एक ओर विपक्ष उनके समर्थन में खड़ा है, वहीं सत्तारूढ़ दलों ने इसे लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला बताया है। अब देखना यह है कि चुनाव आयोग और सरकार इस मामले में क्या कदम उठाते हैं।

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