दादा Archives - Vishwavarta | Hindi News Paper & E-Paper https://vishwavarta.com/tag/दादा National Hindi News Paper, E-Paper & News Portal Tue, 20 Nov 2018 05:30:04 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.1 https://vishwavarta.com/wp-content/uploads/2023/08/Vishwavarta-Logo-150x150.png दादा Archives - Vishwavarta | Hindi News Paper & E-Paper https://vishwavarta.com/tag/दादा 32 32 मध्प्रदेश : ‘मामा’ तो पहले से मैदान में, ‘दादा’, ‘दीदी’, ‘भाभी’ और ‘बाबा’ भी चुनाव में कूदे पड़े  https://vishwavarta.com/%e0%a4%ae%e0%a4%a7%e0%a5%8d%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%be-%e0%a4%a4%e0%a5%8b-%e0%a4%aa%e0%a4%b9%e0%a4%b2%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a5%87/99744 Tue, 20 Nov 2018 05:30:04 +0000 http://vishwavarta.com/?p=99744 “वॉट्स इन ए नेम?” यानी नाम में क्या रखा है-विलियम शेक्सपियर की रूमानी, लेकिन दुखांत कृति “रोमियो एंड जूलियट” के एक मशहूर उद्धरण की शुरुआत इन्हीं शब्दों से होती है. लेकिन मध्य प्रदेश में 28 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के जारी घमासान में नाम का किस्सा काफी अलग है. इन चुनावों के दौरान …

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“वॉट्स इन ए नेम?” यानी नाम में क्या रखा है-विलियम शेक्सपियर की रूमानी, लेकिन दुखांत कृति “रोमियो एंड जूलियट” के एक मशहूर उद्धरण की शुरुआत इन्हीं शब्दों से होती है. लेकिन मध्य प्रदेश में 28 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के जारी घमासान में नाम का किस्सा काफी अलग है. इन चुनावों के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत कई उम्मीदवार आम जनमानस में प्रचलित अपने उपनामों को जमकर भुनाने की कोशिश कर रहे हैं.

शिवराज यानी मामा
लगातार चौथी बार सूबे की सत्ता में आने के लिये एड़ी-चोटी का जोर लगा रही भाजपा के चुनावी चेहरे शिवराज (59) जनता में “मामा” के रूप में मशहूर हैं. अपनी परंपरागत बुधनी सीट से मैदान में उतरे मुख्यमंत्री चुनावी सभाओं के दौरान भी खुद को इसी उपनाम से संबोधित कर रहे हैं.

राहुल भैया
विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह (63) ने “अजय अर्जुन सिंह” के रूप में चुनावी पर्चा भरा है. हालांकि, सियासी हलकों में उन्हें ज्यादातर लोग “राहुल भैया” के नाम से जानते हैं. वह अपने परिवार की परंपरागत चुरहट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.

छोटे बाबा साहब
सूबे के एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह भी अपने परिवार की परंपरागत राघौगढ़ सीट से फिर चुनावी मैदान में हैं. 32 वर्षीय कांग्रेस विधायक को क्षेत्रीय लोग और उनके परिचित “छोटे बाबा साहब”, “जेवी” या “बाबा” पुकारते हैं.

बाबाजी
कई उम्मीदवारों ने चुनावी दस्तावेजों में अपने मूल नाम के साथ प्रचलित उपनाम का भी इस्तेमाल किया है. इनमें प्रदेश के पूर्व कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया (75) शामिल हैं. चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर उम्मीदवारों की सूची में उनका नाम “डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया बाबाजी” के रूप में उभरता है.

दाढ़ी रखने वाले कुसमरिया को लोग “बाबाजी” के नाम से भी पुकारते हैं. इस बार भाजपा से टिकट कट जाने के कारण “बाबाजी” बागी तेवर दिखाते हुए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में दो सीटों-दमोह और पथरिया से किस्मत आजमा रहे हैं.

पारस दादा
उज्जैन (उत्तर) सीट से बतौर भाजपा उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे प्रदेश के ऊर्जा मंत्री का वास्तविक नाम पारसचंद्र जैन (68) है. कुश्ती का शौक रखने वाले इस राजनेता को क्षेत्रीय लोग “पारस दादा” या “पहलवान” के नाम से पुकारते हैं.

इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार और जन संचार विशेषज्ञ प्रकाश हिन्दुस्तानी ने कहा, “आमफहम पहचान के स्थानीय समीकरणों के चलते उम्मीदवार चुनावों में अपने उपनाम का खूब सहारा ले रहे हैं. उनको लगता है कि चुनाव प्रचार के दौरान उनके उपनाम के इस्तेमाल से मतदाता उनसे अपेक्षाकृत अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं.”

उन्होंने कहा, “कई बार ऐसा भी होता है कि चुनावों में किसी उम्मीदवार को नुकसान पहुंचाने के लिये उससे मिलते-जुलते नाम वाले प्रत्याशियों को मैदान में उतार दिया जाता है. ऐसे में संबंधित उम्मीदवार का उपनाम उसके लिये बड़ा मददगार साबित होता है. उसके नाम के साथ उपनाम जुड़ा होने के कारण इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर बटन दबाते वक्त मतदाताओं को उसकी पहचान के बारे में भ्रम नहीं होता.”

चुनावों के दौरान सूबे के हर अंचल में नये-पुराने उम्मीदवारों द्वारा अपने उपनाम का इस्तेमाल किया जा रहा है. मालवा क्षेत्र के इंदौर जिले की अलग-अलग सीटों से चुनावी मैदान में उतरे कई प्रत्याशी स्थानीय बाशिदों में अपने असली नाम से कम और अपने उपनाम से ज्यादा पहचाने जाते हैं.

प्रदेश के पूर्व मंत्री व मौजूदा भाजपा विधायक महेंद्र हार्डिया “बाबा” (65), इंदौर की महापौर व भाजपा विधायक मालिनी लक्ष्मणसिंह गौड़ “भाभी” (57), भाजपा विधायक रमेश मैन्दोला “दादा दयालु” (58), भाजपा विधायक ऊषा ठाकुर “दीदी” (52), प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और कांग्रेस विधायक जितेंद्र पटवारी “जीतू” (45), पूर्व विधायक और कांग्रेस उम्मीदवार सत्यनारायण पटेल “सत्तू” (51) और इंदौर विकास प्राधिकरण के पूर्व चेयरमैन महादेव वर्मा “मधु” (66) के नाम से जाने जाते हैं.

वैसे “दीदी” उपनाम पर ऊषा ठाकुर के साथ प्रदेश की महिला और बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस (54) का भी अधिकार है. निमाड़ अंचल की वरिष्ठ भाजपा नेता चिटनीस अपनी परंपरागत बुरहानपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं.

नाती राजा
बुंदेलखंड के छतरपुर जिले की राजनगर सीट से फिर ताल ठोक रहे कांग्रेस विधायक विक्रम सिंह “नाती राजा” (47) के रूप में मशहूर हैं, तो इसी विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में किस्मत आजमा रहे नितिन चतुर्वेदी (44) “बंटी भैया” के रूप में जाने जाते हैं. “बंटी भैया” वरिष्ठ नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी के बेटे हैं.
(इनपुट: भाषा)

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नज़रिया: यूपी में अमित शाह के लिए बजने लगी है ख़तरे की घंटी? https://vishwavarta.com/%e0%a4%a8%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%af%e0%a5%82%e0%a4%aa%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%85%e0%a4%ae%e0%a4%bf%e0%a4%a4-%e0%a4%b6%e0%a4%be%e0%a4%b9/83233 Sun, 05 Feb 2017 09:10:16 +0000 http://www.vishwavarta.com/?p=83233 समाजवादी कुनबे में कलह और मायावती के ख़िलाफ़ बसपा में बगावत के बाद ऐसा लगने लगा था कि भाजपा यूपी का मैदान मार लेगी लेकिन होने कुछ और जा रहा है.पिछले लोकसभा चुनाव के सूपड़ा साफ नतीजों से मिथ बना था कि प्रधानमंत्री मोदी जो सोचते हैं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह उसे कर दिखाते हैं …

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समाजवादी कुनबे में कलह और मायावती के ख़िलाफ़ बसपा में बगावत के बाद ऐसा लगने लगा था कि भाजपा यूपी का मैदान मार लेगी लेकिन होने कुछ और जा रहा है.पिछले लोकसभा चुनाव के सूपड़ा साफ नतीजों से मिथ बना था कि प्रधानमंत्री मोदी जो सोचते हैं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह उसे कर दिखाते हैं लेकिन भाजपा की सारी पुरानी बीमारियां अचानक उभर आई हैं.सबसे बड़ा सूबा यूपी प्रधानमंत्री के दाहिने हाथ के लिए खतरे की घंटी बजाने लगा है. इसे कहीं बाहर नहीं, खुद भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के भीतर सुना जा सकता है

1. यूपी विधानसभा चुनाव के टिकट बांटने का एकाधिकार चुनाव समिति की दो बैठकों के बाद अमित शाह को दिया गया था. टिकट ऐसे बंटे कि पार्टी में उनकी धमक ही खत्म हो गई. नाराज कार्यकर्ता एयरपोर्ट तक पीछा करने लगे.

प्रधानमंत्री के चुनाव क्षेत्र बनारस में लगातार सात बार के विधायक श्यामदेव रायचौधरी “दादा” का टिकट कटने के बाद से प्रदर्शन हो रहे हैं. मनमाने टिकट बंटवारे पर आरएसएस के यूपी में सक्रिय छह में से चार क्षेत्रीय प्रचारकों ने नाराजगी जताई है.

यह पहला मौका है जब पार्टी कार्यकर्ता इतनी तादाद में टिकट बंटवारे के ख़िलाफ़ नेताओं की गाड़ियों के आगे लेटकर रास्ता रोक रहे हैं, अमित शाह समेत प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य और प्रदेश प्रभारी ओम माथुर के पुतले फूंके जा रहे हैं.

दलबदलुओं और पार्टी के बड़े नेताओं के बेटे-बेटियों को टिकट देना मुद्दा बन रहा है. भाजपा में जातिवादी रंग की गुटबाजी पुरानी है जिसके सूत्रधार एक बात पर एकमत हैं कि स्थानीय नेताओं की नहीं सुनने वाले अमित शाह का हद से अधिक दखल बंद होना चाहिए.

2. भाजपा के पास कोई ऐसा दमदार नेता नहीं था जिसे भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया जा सके लिहाजा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे ही आमने-सामने हैं.

इस स्थिति का फ़ायदा उठाते हुए सांसद, गोरखनाथ पीठ के महंत आदित्यनाथ की हिंदू युवा वाहिनी ने “देश में मोदी यूपी में योगी” के नारे के साथ पार्टी के समांतर उम्मीदवार तक उतार दिए हैं.

प्रत्यक्ष तौर आदित्यनाथ खुद मुख्यमंत्री पद की दावेदारी करने से झेंप रहे हैं लेकिन पक्का है कि उनकी नाराजगी पूर्वांचल में भाजपा का खेल बिगाड़ेगी. अगर भाजपा के पास कोई मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरा होता तो नाकामी का ठीकरा उसके सिर फूटता लेकिन अब नतीजों के जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ अमित शाह होंगे.

3. पहले पार्टी ने पाकिस्तान के अंदर घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी के जरिए कालेधन के खात्मे को मुद्दा बनाया था लेकिन अब दोनों एजेंडे से ग़ायब हो रहे हैं. सभाओं में भाजपा नेता जब नोटबंदी के फ़ायदों का जिक्र करते हैं तब चुप्पी छाई रहती है.

इसके बजाय अब पुराने आजमाए नुस्खे यानी धार्मिक ध्रुवीकरण पर ज़ोर है. मुज़फ्फ़रनगर के कैराना से हिंदुओं के तथाकथित पलायन और भाजपा की सरकार बनने पर माफिया मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद और आज़म ख़ान को जेल भेजने को मुद्दा बनाया जा रहा है.

भाजपा ने इस बार एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया है और इससे भी हैरत की बात यह है कि धार्मिक ध्रुवीकरण के बयानों पर मुसलमानों की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही है.

4. भाजपा पांच साल से अखिलेश यादव की सरकार द्वारा छात्रों को लैपटॉप बांटने को दिल बहलाने वाला झुनझुना बता रही थी.

लेकिन मुद्दों के बेअसर होने के कारण लैपटॉप और फ्री डेटा बांटना भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में सबसे ऊपर आ गया है. इसे समाजवादी पार्टी की नकल के रूप में देखा जा रहा है.

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