नीलगाय फसल Archives - Vishwavarta | Hindi News Paper & E-Paper https://vishwavarta.com/tag/नीलगाय-फसल National Hindi News Paper, E-Paper & News Portal Wed, 25 Dec 2024 13:21:55 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.1 https://vishwavarta.com/wp-content/uploads/2023/08/Vishwavarta-Logo-150x150.png नीलगाय फसल Archives - Vishwavarta | Hindi News Paper & E-Paper https://vishwavarta.com/tag/नीलगाय-फसल 32 32 विशेष : कड़ाके की ठंड में किसानों का संघर्ष https://vishwavarta.com/farmers-struggle-in-severe-cold-farmers-engaged-in-protecting-crops-all-night-on-scaffolding/116243 Wed, 25 Dec 2024 13:20:25 +0000 https://vishwavarta.com/?p=116243 मचान पर रातभर फसल की रक्षा में जुटे अन्नदाता “मुंशी प्रेमचंद की पूस की रात के हलकू की तरह आज भी किसान कड़ाके की ठंड में फसलों की रखवाली कर रहे हैं। तमकुहीराज के किसान आवारा पशुओं और नीलगाय से अपनी फसल बचाने के लिए रातभर जागने को मजबूर हैं। उनका यह संघर्ष आधुनिक समय …

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मचान पर रातभर फसल की रक्षा में जुटे अन्नदाता

कुशीनगर। प्रसिद्ध साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘पूस की रात’ का पात्र हलकू आज भी हमारे ग्रामीण इलाकों में जीवित है। ठिठुरती सर्द रातों में अपने खेतों की रखवाली करने वाले किसान, कड़ाके की ठंड और सर्द हवाओं के बीच भी अपने अन्न को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

मुंशी प्रेमचंद ने पूस की रात कहानी 1921 में लिखी थी, जो किसानों की स्थिति और उनके संघर्ष का दस्तावेज मानी जाती है। कहानी का हलकू ठंड में अपनी फसल की रक्षा के लिए रातभर मचान पर बैठा रहता था। उसकी जिंदगी का यह संघर्ष आजादी के सौ साल बाद भी वैसा ही है। तमकुहीराज क्षेत्र में भी किसान आज हलकू की तरह ठंड और आवारा पशुओं से जूझते नजर आते हैं।

तमकुहीराज के गांवों में सर्द हवाओं के बीच किसान अपने खेतों की रखवाली के लिए मचान या अस्थायी झोपड़ियों में रात बिताते हैं। संवाददाता द्वारा जब क्षेत्र का दौरा किया गया तो देखा गया कि किसान नीलगाय और आवारा पशुओं से अपनी फसलों को बचाने के लिए जागते रहते हैं।

एक किसान, रामलाल यादव ने बताया,

किसान अपने शरीर को ठंड से बचाने के लिए सिर पर पगड़ी और शरीर पर कम्बल ओढ़कर अपनी फसलों की रखवाली करते हैं। उनके पास न तो उचित साधन हैं और न ही कोई सुविधा। वे झोपड़ी के पास जलते अलाव के सहारे ठंड को सहन करते हुए फसल की निगरानी करते हैं।

क्षेत्र के किसानों के लिए आवारा पशु सबसे बड़ी मुसीबत बन गए हैं। आलू, सरसों, मटर, गेंहू और गोभी जैसी फसलें तैयार होने के करीब हैं। लेकिन नीलगायों और छुट्टा जानवरों के कारण हर समय फसल को खतरा बना रहता है।

फसल को बचाने के लिए हमें पूरी रात जागना पड़ता है। सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिलती। ठंड की चिंता छोड़कर हम सिर्फ अपनी मेहनत को बचाने के लिए यहां हैं।”

किसानों का यह संघर्ष मौजूदा दौर के कृषि संकट को उजागर करता है। मुंशी प्रेमचंद के समय से लेकर आज तक, किसानों के हालात में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है। जहां एक ओर किसान रातभर ठंड में जागकर अपनी फसल बचा रहा है, वहीं दूसरी ओर उनके पास नीलगायों और ठंड से निपटने के लिए कोई सरकारी सहायता उपलब्ध नहीं है।

किसानों की यह मेहनत केवल उनकी आजीविका नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है। इन ठिठुरती रातों में, हलकू की तरह आज भी हमारे किसान, देश के अन्नदाता, अपने संघर्ष और जुझारूपन से हमें सिखा रहे हैं कि मेहनत और समर्पण के बिना जीवन अधूरा है।

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