लच्छू महाराज मतलब तबले की बेजोड़ थाप Archives - Vishwavarta | Hindi News Paper & E-Paper https://vishwavarta.com/tag/लच्छू-महाराज-मतलब-तबले-की National Hindi News Paper, E-Paper & News Portal Thu, 28 Jul 2016 16:29:54 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.1 https://vishwavarta.com/wp-content/uploads/2023/08/Vishwavarta-Logo-150x150.png लच्छू महाराज मतलब तबले की बेजोड़ थाप Archives - Vishwavarta | Hindi News Paper & E-Paper https://vishwavarta.com/tag/लच्छू-महाराज-मतलब-तबले-की 32 32 लच्छू महाराज मतलब तबले की बेजोड़ थाप https://vishwavarta.com/%e0%a4%b2%e0%a4%9a%e0%a5%8d%e0%a4%9b%e0%a5%82-%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%9c-%e0%a4%ae%e0%a4%a4%e0%a4%b2%e0%a4%ac-%e0%a4%a4%e0%a4%ac%e0%a4%b2%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a5%80/55644 Thu, 28 Jul 2016 16:29:04 +0000 http://www.vishwavarta.com/?p=55644 वाराणसी । संगीत की दुनिया में जब बनारस घराने की चर्चा होती है तो लच्छू महाराज का चेहरा सहज ही आंखों के सामने आ जाता है। तबला वादन के क्षेत्र में एक बेजोड़ नाम था लच्छू महाराज का। उनका असल नाम तो लक्ष्मी नारायण सिंह था लेकिन पूरा बनारस उन्हें लच्छू महाराज के ही नाम से …

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lachuuवाराणसी । संगीत की दुनिया में जब बनारस घराने की चर्चा होती है तो लच्छू महाराज का चेहरा सहज ही आंखों के सामने आ जाता है। तबला वादन के क्षेत्र में एक बेजोड़ नाम था लच्छू महाराज का। उनका असल नाम तो लक्ष्मी नारायण सिंह था लेकिन पूरा बनारस उन्हें लच्छू महाराज के ही नाम से जानता था। उनके पिता और वासुदेव नारायण सिंह के साथ भी यही बात रही। बनारस क्या पूरे देश में उनकी पहचान किशन महाराज के नाम से ही रही। हंसमुख मिजाज के लच्छू महाराज बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। जो भी एक बार उनके सान्निध्य में आता, उनका होकर रह जाता। बनारस और गंगा दोनों ही उन्हें बेहद प्रिय थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब उनसे अपने लिए कुछ मांगने को कहा तो उन्हें कबीर का एक पद याद आया। का मांगू कछु थिर न रहाई। देखत नैन चला जग जाई। कलाकार भावनाओं में जीता है और भावना का प्रवाह होता है। उसकी सहजता और सरलता होती है बिल्कुल गंगा जल की तरह। एक ङ्क्षकवदंती है कि कबीरदास और गुरु गोरखनाथ के बीच लुकाछिपी का खेल शुरू हुआ था जिसमें कबीर ने हर बार योगी गोरखनाथ को पहचान लिया लेकिन कबीरदास तो गंगा जल ही बन गए और गुरु गोरखनाथ को उन्हें तलाशने में पसीने छूट गए। वह तो कबीर के पुत्र कमाल ने हिकमत बता दी। वर्ना गोरखनाथ तो उन्हें खोजते ही रह जाते। तभी कबीर ने एक दोहा कहा था कि बूड़ा बंस कबीर का उपजा पूत कमाल। इस किंवदंती को काशी के माहात्म्य प्रसंग में लच्छू महाराज अक्सर कहा करते थे। यूं तो वे सूरदास और तुलसीदास से ज्यादा प्रभावित थे, लेकिन कबीर का अलमस्त फक्कड़पना तो जैसे उनके दिल पर ही राजता था। कबीर के लिए कमाल में कहा था कि बूंद समाना समद में सो कत हेरी जाय लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आग्रह पर लक्ष्मीनारायण सिंह उर्फ लच्छू महाराज ने जो कुछ मांगा उससे स्वच्छता पसंद किसी भी भारतीय का मन बाग-बाग हो उठेगा। उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा कि अगर वे उन्हें कुछ देना ही चाहते हैं तो काशी में गंगा को पूरी तरह निर्मल करा दें। उनकी इस मांग में काशी का गौरव और काशी के प्रति असीम प्रेम के दीदार होते हैं। काशी में गंगा की सफाई का अभियान जारी है। गंगा कब तक साफ होगी, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन संगीत के इस साधक का मन साफ था। गंगा का यह सेवक काशी को अलविदा कह गया। उनकी कमी काशी को हमेशा खलेगी। उनके दालमंडी स्थित आवास पर अक्सर संगीत मंडली जमा करती थी। भारत सरकार की ओर से लच्छू महाराज ने दुनिया के 27 देशों का भ्रमण किया था। तबदला वादन में उनकी तिरकिट और घिरकिट शैली का कोई सानी नहीं था। उनके अनेक शिष्य आज भी पूरी दुनिया में बनारस घराने के संगीत को जिंदा किए हुए हैं।

लच्छू महाराज ने अपने पिता वासुदेव नारायण सिंह से ही तबला वादन की शिक्षा ली थी। लच्छू महाराज ने टीना नामक फ्रांसीसी महिला से शादी की थी। लच्छू महाराज ने तबला वादन पांच वर्ष की छोटी उम्र से ही शुरू कर दिया था। तबला वादन के प्रति समर्पण भाव के चलते 1962 में उन्हें दिल्ली में ऑल इंडिया रेडियो में प्रस्तुति का मौका मिल गया। इसके बाद से प. लच्छू महाराज ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उंगलियों के इस जादूगर को वल्र्ड तबला सम्राट की उपाधि मिली। गुरुपुर्णिमा पर्व पर गंडा बंधन के साथ ही संगीत साधना के लिए पं. लच्छू महाराज के दालमंडी स्थित आवास पर शिष्यों का जमावड़ा लग जाता था।

लच्छू महाराज चाहते तो मुंबई जा सकते थे। उनके भान्जे प्रसिद्ध अभिनेता गोविन्दा ऐसा ही चाहते थे। इसके बावजूद वे मुम्बई नहीं गये। उनका मन बनारस में ही लगता था। बाबा विश्वनाथ और मां गंगा के प्रति असीम श्रद्धा ही थी कि लच्छू महाराज ने पूरी जिंदगी बनारस की सेवा की। उनके निधन से संगीत जगत में शून्यता की स्थिति हो गयी है।
16 अक्टूबर 1944 को उनका जन्म हुआ था। बहुत कम लोग जानते हैं कि गोविंदा को तबला बजाना लच्छू महाराज ने ही सिखाया था। वह जब यहां आते थे साथ मिलकर ही तबला बजाया करते थे। लच्छू महाराज को गोविंदा ने बचपन में ही अपना गुरु मान लिया था। जब लच्छू महाराज मुंबई जाते तो वे गोविंदा के घर में ही रुकते थे।
जाने-माने तबला वादक लच्छू महाराज ने बनारस घराने की तबला वादन परंपरा को आगे बढ़ाया। लच्छू महाराज बेहद सादगी पसंद शख्स थे। इसी कारण उन्होंने कोई सम्मान नहीं लिया। उनके अजीज दोस्त राम अवतार सिंह ने बताया कि वह इतने साधारण थे कि 2002-03 में यूपी सरकार की ओर से उन्हें पद्श्री दिया जा रहा था, लेकिन उन्होंने नहीं लिया। बाद में ये सम्मान उनके शिष्य पंडित छन्नू लाल मिश्र को मिला।

उनके भाई पीएन सिंह बताते हैं कि जब आठ साल की उम्र में वे मुंबई में एक प्रोग्राम के दौरान तबला बजा रहे थे तो जाने-माने तबला वादक अहमद जान ने कहा था कि काश लच्छू मेरा बेटा होता।
पूरी दुनिया में अपनी पेशेवर प्रस्तुति के अलावा, उन्होंने कई बॉलीवुड फिल्मों के लिए भी तबला बजाया था। व्यक्ति चला जाता है लेकिन उसका व्यक्तित्व और कृतित्व हमेशा याद रहता है। लच्छू महाराज जैसी शख्सियत युगों की तपस्या के बाद अवतरित होती है। उनका नाम और काम दोनों ही स्मरण योग्य हैं। वे अक्सर कहा करते थे कि शब्द की चोट सबसे बर्दाश्त नहीं होती। संगीत को वे ईश्वरीय ज्ञान कहा करते थे और नाद को ब्रह्म। भगवान शंकर को वे संगीत का आदि आविष्कारक मानते थे। उनका मानना था कि संगीत साधक के लिए मन की शांति जरूरी है। भगवान शंकर अपने मस्तक पर मां गंगा को इसीलिए धारण करते हैं कि उनका मस्तिष्क शांत रहे। संसार के कल्याण की भावना तो इसमें निहित है ही।

यूं तो वादक गायक का ताबेदार होता है लेकिन वादक कभी कभी गायकों को घनचक्कर में डाल दिया करता है। वादन में टुकड़ी शैली का प्रयोग कर जहां वादन में चमत्कार पैदा करता है वहीं गायक को भी सोचने पर मजबूर कर देता है। उसे बस गायक के साथ पर ही सम पर आना होता है। यह उसके बुद्धि कौशल, प्रत्युत्पन्नमति और अतिसक्रिय हस्त लाघवता की बदौलत ही मुमकिन हो पाता है। कहना न होगा कि पं. लच्छू महाराज इस विधा के धीरोदात्त नायक थे। प्रख्यात ठुमरी गायक गिरिजा देवी के साथ भी उन्होंने कई मौकों पर तबले पर संगत की और उन्हें अपनी विलक्षण तबदला वादन क्षमता से चमत्कृत और भ्रमित भी किया। पंडित जी को जिस किसी ने भी सुना है, वह उन्हें दाद दिए बिना नहीं रहा। पं. लच्छू महाराज का जाना सांगीतिक जगत की अपरिमित क्षति है। इसकी भरपाई कथमपि संभव नहीं है। योग्य पिता के इस योग्य पुत्र का जाना सही मायने में राष्ट्रीय क्षति है।

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