लोमश ऋषि - भगवान शिव का वरदान जिनके लिए श्राप बन गया Archives - Vishwavarta | Hindi News Paper & E-Paper https://vishwavarta.com/tag/लोमश-ऋषि-भगवान-शिव-का-वरदा National Hindi News Paper, E-Paper & News Portal Thu, 13 Dec 2018 06:26:07 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.1 https://vishwavarta.com/wp-content/uploads/2023/08/Vishwavarta-Logo-150x150.png लोमश ऋषि - भगवान शिव का वरदान जिनके लिए श्राप बन गया Archives - Vishwavarta | Hindi News Paper & E-Paper https://vishwavarta.com/tag/लोमश-ऋषि-भगवान-शिव-का-वरदा 32 32 लोमश ऋषि : भगवान शिव का वरदान जिनके लिए श्राप बन गया https://vishwavarta.com/%e0%a4%b2%e0%a5%8b%e0%a4%ae%e0%a4%b6-%e0%a4%8b%e0%a4%b7%e0%a4%bf-%e0%a4%ad%e0%a4%97%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b5%e0%a4%b0%e0%a4%a6%e0%a4%be-2/101289 Thu, 13 Dec 2018 06:26:07 +0000 http://vishwavarta.com/?p=101289 लोमश ऋषि परम तपस्वी तथा विद्वान थे। वे बड़े-बड़े रोमों या रोओं वाले थे इसीकारण इनका नाम लोमश पड़ा। सप्त चिरंजीवियों के बारे में तो हम सबने सुना है लेकिन उसके अतिरिक्त भी कुछ ऐसे लोग है जिनके बारे में मान्यता है कि वे अमर हैं। उनमे से एक लोमश ऋषि भी हैं। अमरता का अर्थ …

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लोमश ऋषि परम तपस्वी तथा विद्वान थे। वे बड़े-बड़े रोमों या रोओं वाले थे इसीकारण इनका नाम लोमश पड़ा। सप्त चिरंजीवियों के बारे में तो हम सबने सुना है लेकिन उसके अतिरिक्त भी कुछ ऐसे लोग है जिनके बारे में मान्यता है कि वे अमर हैं। उनमे से एक लोमश ऋषि भी हैं। अमरता का अर्थ यहाँ चिरंजीवी होना नहीं है बल्कि उनकी अत्यधिक लम्बी आयु से है। लोमश ऋषि ने युधिष्ठिर को ज्ञान की गूढ़ बातें बताई थी जिससे वे एक योग्य राजा बने। एक बार लोमश ऋषि भगवत कथा कर रहे थे। उसी भीड़ में बैठा एक व्यक्ति उन्हें बार-बार टोक रहा था। वो कभी एक प्रश्न पूछता तो कभी दूसरा। अंत में इससे क्रोधित होकर लोमश जी ने कहा – “रे मुर्ख! तू क्यों कौवे की तरह काँव-काँव कर रहा है? जा अगले जन्म में तू कौवा ही बन।” उनके इस वचन के कारण उस व्यक्ति को श्राप लग गया किन्तु उसने विनम्रता से उसे स्वीकार कर लिया। क्रोध शांत होने के पश्चात लोमश ऋषि को अत्यंत खेद हुआ और उस व्यक्ति की विनम्रता देख कर उन्होंने उसे वरदान दिया कि अगले जन्म में वो कौवा जरूर बनेगा लेकिन वो इतना पवित्र होगा कि जहाँ भी वो रहेगा वहाँ कलियुग का प्रभाव नहीं पड़ेगा। ऋषि के श्राप के कारण वो व्यक्ति अगले जन्म में महान “काकभशुण्डि” के रूप में जन्मा। उन्होंने ही गरुड़ को भगवान शिव द्वारा कहा गया रामायण कथा सुनाया जिससे गरुड़ की अज्ञानता जाती रही।
इनके अमर होने के बारे में एक कथा है कि बचपन में लोमश मुनि को मृत्यु से बड़ा भय लगता था। इससे बचने के लिए उन्होंने भगवान शंकर की घोर तपस्या की। जब भगवान आशुतोष प्रसन्न हुए और उनसे वर मांगने को कहा तो उन्होंने कहा – “देवाधिदेव! यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो मेरा यह नर तन अजर-अमर कर दीजिऐ क्योंकि मुझे मृत्यु से बड़ा भय लगता है। तब भगवान शंकर ने कहा – “लोमश! यह नहीं हो सकता। इस मृत्युलोक की सारी चीजें नश्वर हैं और आज नहीं तो कल सभी विनाश को प्राप्त होंगी। यह अटूट ईश्वरीय विधान है जिसको कोई भी नहीं बदल सकता। अतः तुम्हारे इस भौतिक शरीर को मैं अजर-अमर नहीं कर सकता किन्तु तुमने मुझे प्रसन्न किया है इसीलिए लम्बी आयु का वरदान माँग लो। तब लोमश ऋषि ने चालाँकि से कहा – “अच्छा! तो मैं यह मांगता हूँ कि एक कल्प के बाद मेरा एक रोम गिरे और इस प्रकार जब मेरे शरीर के सारे के सारे रोम गिर जाऐं तभी मेरी मृत्यु हो।” भगवान शंकर मुस्कुराये और ‘एवमस्तु’ कहकर तुरन्त अंर्त्ध्यान हो गऐ। आरम्भ में तो वे बड़े प्रसन्न हुए किन्तु जल्द ही अपने इस जीवन को जीते-जीते वे थक गए। उन्होंने मृत्यु की कामना भी की किन्तु वो संभव नहीं था क्यूंकि महादेव के वरदान के कारण उनके रोम की संख्या तक कल्प बीतने के बाद ही उनकी मृत्यु संभव थी। 
अपनी इसी वेदना को ऋषि लोमश श्रीराम के पिता महाराज दशरथ को कहते हैं। एक बार वे अयोध्या पहुँचे और देखा कि महाराज दशरथ अपने किले की मरम्मत करा रहे हैं। तब उन्होंने दशरथ से पूछा – “हे राजन! इतनी सुरक्षा की क्या आवश्यकता? क्या तुम भी चिरकाल तक जीना चाहते हो? अरे अधिक से अधिक तुम कई हजार साल जी लोगे लेकिन यहाँ देखो कि मैं मरना भी चाहूँ तो मर नहीं सकता।” तब उन्होंने दशरथ को महादेव द्वारा दिये गए वरदान की बात बताई और कहा – “हे राजन! आज अगर कोई मुझे मृत्यु दे सके तो मैं उसे अपनी सारी आयु और अपना समस्त पुण्य दे दूँ। लेकिन अभी तो मेरे बाएं पैर के घुटने तक ही रोम झड़े हैं। अभी पता नहीं मुझे और कितना जीना पड़े। मैंने महारुद्र को छलना चाहा और उसी का ये परिणाम है कि उनके ये वरदान भी मेरे लिए श्राप बन गया। इसीलिए हे राजन! ये जान लो कि किसी को भी ईश्वर से अपनी शक्ति के बाहर कुछ माँगना नहीं चाहिए।”
बिहार में गया के पास जहानाबाद में लोमश ऋषि की मानव निर्मित गुफा है जिसका निर्माण मौर्य काल में अशोक के शासनकाल में बनाया गया था। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थित रेवाल्सर शहर में लोमश ऋषि का मंदिर स्थित है। 

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लोमश ऋषि – भगवान शिव का वरदान जिनके लिए श्राप बन गया https://vishwavarta.com/%e0%a4%b2%e0%a5%8b%e0%a4%ae%e0%a4%b6-%e0%a4%8b%e0%a4%b7%e0%a4%bf-%e0%a4%ad%e0%a4%97%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%b6%e0%a4%bf%e0%a4%b5-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b5%e0%a4%b0%e0%a4%a6%e0%a4%be/100743 Thu, 06 Dec 2018 05:41:18 +0000 http://vishwavarta.com/?p=100743 लोमश ऋषि परम तपस्वी तथा विद्वान थे। वे बड़े-बड़े रोमों या रोओं वाले थे इसीकारण इनका नाम लोमश पड़ा। सप्त चिरंजीवियों के बारे में तो हम सबने सुना है लेकिन उसके अतिरिक्त भी कुछ ऐसे लोग है जिनके बारे में मान्यता है कि वे अमर हैं। उनमे से एक लोमश ऋषि भी हैं। अमरता का अर्थ …

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लोमश ऋषि परम तपस्वी तथा विद्वान थे। वे बड़े-बड़े रोमों या रोओं वाले थे इसीकारण इनका नाम लोमश पड़ा। सप्त चिरंजीवियों के बारे में तो हम सबने सुना है लेकिन उसके अतिरिक्त भी कुछ ऐसे लोग है जिनके बारे में मान्यता है कि वे अमर हैं। उनमे से एक लोमश ऋषि भी हैं। अमरता का अर्थ यहाँ चिरंजीवी होना नहीं है बल्कि उनकी अत्यधिक लम्बी आयु से है। लोमश ऋषि ने युधिष्ठिर को ज्ञान की गूढ़ बातें बताई थी जिससे वे एक योग्य राजा बने। एक बार लोमश ऋषि भगवत कथा कर रहे थे। उसी भीड़ में बैठा एक व्यक्ति उन्हें बार-बार टोक रहा था। वो कभी एक प्रश्न पूछता तो कभी दूसरा। अंत में इससे क्रोधित होकर लोमश जी ने कहा – “रे मुर्ख! तू क्यों कौवे की तरह काँव-काँव कर रहा है? जा अगले जन्म में तू कौवा ही बन।” उनके इस वचन के कारण उस व्यक्ति को श्राप लग गया किन्तु उसने विनम्रता से उसे स्वीकार कर लिया। क्रोध शांत होने के पश्चात लोमश ऋषि को अत्यंत खेद हुआ और उस व्यक्ति की विनम्रता देख कर उन्होंने उसे वरदान दिया कि अगले जन्म में वो कौवा जरूर बनेगा लेकिन वो इतना पवित्र होगा कि जहाँ भी वो रहेगा वहाँ कलियुग का प्रभाव नहीं पड़ेगा। ऋषि के श्राप के कारण वो व्यक्ति अगले जन्म में महान “काकभशुण्डि” के रूप में जन्मा। उन्होंने ही गरुड़ को भगवान शिव द्वारा कहा गया रामायण कथा सुनाया जिससे गरुड़ की अज्ञानता जाती रही।
इनके अमर होने के बारे में एक कथा है कि बचपन में लोमश मुनि को मृत्यु से बड़ा भय लगता था। इससे बचने के लिए उन्होंने भगवान शंकर की घोर तपस्या की। जब भगवान आशुतोष प्रसन्न हुए और उनसे वर मांगने को कहा तो उन्होंने कहा – “देवाधिदेव! यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो मेरा यह नर तन अजर-अमर कर दीजिऐ क्योंकि मुझे मृत्यु से बड़ा भय लगता है। तब भगवान शंकर ने कहा – “लोमश! यह नहीं हो सकता। इस मृत्युलोक की सारी चीजें नश्वर हैं और आज नहीं तो कल सभी विनाश को प्राप्त होंगी। यह अटूट ईश्वरीय विधान है जिसको कोई भी नहीं बदल सकता। अतः तुम्हारे इस भौतिक शरीर को मैं अजर-अमर नहीं कर सकता किन्तु तुमने मुझे प्रसन्न किया है इसीलिए लम्बी आयु का वरदान माँग लो। तब लोमश ऋषि ने चालाँकि से कहा – “अच्छा! तो मैं यह मांगता हूँ कि एक कल्प के बाद मेरा एक रोम गिरे और इस प्रकार जब मेरे शरीर के सारे के सारे रोम गिर जाऐं तभी मेरी मृत्यु हो।” भगवान शंकर मुस्कुराये और ‘एवमस्तु’ कहकर तुरन्त अंर्त्ध्यान हो गऐ। आरम्भ में तो वे बड़े प्रसन्न हुए किन्तु जल्द ही अपने इस जीवन को जीते-जीते वे थक गए। उन्होंने मृत्यु की कामना भी की किन्तु वो संभव नहीं था क्यूंकि महादेव के वरदान के कारण उनके रोम की संख्या तक कल्प बीतने के बाद ही उनकी मृत्यु संभव थी। 
अपनी इसी वेदना को ऋषि लोमश श्रीराम के पिता महाराज दशरथ को कहते हैं। एक बार वे अयोध्या पहुँचे और देखा कि महाराज दशरथ अपने किले की मरम्मत करा रहे हैं। तब उन्होंने दशरथ से पूछा – “हे राजन! इतनी सुरक्षा की क्या आवश्यकता? क्या तुम भी चिरकाल तक जीना चाहते हो? अरे अधिक से अधिक तुम कई हजार साल जी लोगे लेकिन यहाँ देखो कि मैं मरना भी चाहूँ तो मर नहीं सकता।” तब उन्होंने दशरथ को महादेव द्वारा दिये गए वरदान की बात बताई और कहा – “हे राजन! आज अगर कोई मुझे मृत्यु दे सके तो मैं उसे अपनी सारी आयु और अपना समस्त पुण्य दे दूँ। लेकिन अभी तो मेरे बाएं पैर के घुटने तक ही रोम झड़े हैं। अभी पता नहीं मुझे और कितना जीना पड़े। मैंने महारुद्र को छलना चाहा और उसी का ये परिणाम है कि उनके ये वरदान भी मेरे लिए श्राप बन गया। इसीलिए हे राजन! ये जान लो कि किसी को भी ईश्वर से अपनी शक्ति के बाहर कुछ माँगना नहीं चाहिए।”
बिहार में गया के पास जहानाबाद में लोमश ऋषि की मानव निर्मित गुफा है जिसका निर्माण मौर्य काल में अशोक के शासनकाल में बनाया गया था। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थित रेवाल्सर शहर में लोमश ऋषि का मंदिर स्थित है। 

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