Social Worker Archives - Vishwavarta | Hindi News Paper & E-Paper https://vishwavarta.com/tag/social-worker National Hindi News Paper, E-Paper & News Portal Sun, 13 Oct 2024 11:48:32 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.1 https://vishwavarta.com/wp-content/uploads/2023/08/Vishwavarta-Logo-150x150.png Social Worker Archives - Vishwavarta | Hindi News Paper & E-Paper https://vishwavarta.com/tag/social-worker 32 32 पुलिस ने 5 घंटे में 46 अभियुक्तों को किया गिरफ्तार…जानें पूरी खबर ? https://vishwavarta.com/police-arrested-46-accused-in-5-hours-know-the-full-news/108265 Sun, 13 Oct 2024 11:48:32 +0000 https://vishwavarta.com/?p=108265 फिरोजाबाद। 13 अक्टूबर: जनपद पुलिस ने शनिवार की रात एक विशेष अभियान चलाकर 46 वांछित अभियुक्तों को गिरफ्तार किया। यह अभियान 12:00 बजे रात से शुरू होकर सुबह 5:00 बजे तक चला। गिरफ्तार अभियुक्त विभिन्न मुकदमों में फरार चल रहे थे। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सौरभ दीक्षित के निर्देश पर यह धरपकड़ अभियान चलाया गया। पुलिस …

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फिरोजाबाद। 13 अक्टूबर: जनपद पुलिस ने शनिवार की रात एक विशेष अभियान चलाकर 46 वांछित अभियुक्तों को गिरफ्तार किया। यह अभियान 12:00 बजे रात से शुरू होकर सुबह 5:00 बजे तक चला। गिरफ्तार अभियुक्त विभिन्न मुकदमों में फरार चल रहे थे।

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सौरभ दीक्षित के निर्देश पर यह धरपकड़ अभियान चलाया गया। पुलिस ने एनबीडब्ल्यू और एसआर केसों में वांछित अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई की। इस दौरान, विभिन्न थानों की पुलिस ने संयुक्त रूप से कार्रवाई की:

  • थाना उत्तर: 2
  • थाना दक्षिण: 4
  • थाना पचोखरा: 2
  • थाना रजावली: 1
  • थाना नारखी: 1
  • थाना नगला सिंघी: 2
  • सिरसागंज: 6
  • थाना नगला खंगर: 1
  • थाना नसीरपुर: 1
  • थाना शिकोहाबाद: 4
  • थाना खैरगढ़: 1
  • थाना मक्खनपुर: 1
  • थाना जसराना: 6
  • थाना एका: 1
  • थाना फरिहा: 1
  • थाना मटसेना: 3
  • थाना लाइनपार: 1
  • थाना बसई मौहम्मदपुर: 8

गिरफ्तार अभियुक्तों को न्यायालय के समक्ष पेश किया गया है, जहां उनके खिलाफ विधिक कार्रवाई की जा रही है। पुलिस ने बताया कि यह अभियान निरंतर जारी रहेगा ताकि फरार अभियुक्तों को समय-समय पर पकड़ा जा सके।

यह कार्रवाई दर्शाती है कि पुलिस स्थानीय अपराधियों के खिलाफ सक्रिय है और समाज में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। पुलिस ने स्थानीय नागरिकों से अपील की है कि वे किसी भी संदिग्ध गतिविधि की जानकारी साझा करें, ताकि सुरक्षा बढ़ाई जा सके।

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सोहराबुद्दीन मामले में अमित शाह को उच्चतम न्यायालय से मिली राहत https://vishwavarta.com/%e0%a4%b8%e0%a5%8b%e0%a4%b9%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a5%81%e0%a4%a6%e0%a5%8d%e0%a4%a6%e0%a5%80%e0%a4%a8-%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%b2%e0%a5%87-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%85/56167 Mon, 01 Aug 2016 12:11:12 +0000 http://www.vishwavarta.com/?p=56167 नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बरी होने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि शाह की भूमिका को लेकर दोबारा जांच नहीं होगी।  सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व नौकरशाह हर्ष मंदर ने मुंबई की अदालत के उस आदेश …

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download (3)नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बरी होने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि शाह की भूमिका को लेकर दोबारा जांच नहीं होगी। 

सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व नौकरशाह हर्ष मंदर ने मुंबई की अदालत के उस आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसमें भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को क्लीन चिट दी गई थी। वर्ष 2005 में गुजरात पुलिस की आतंकवाद निरोधी दस्ते ने सोहराबुद्दीन शेख और उनकी पत्नी की मुठभेड़ में हत्या कर दी थी। अमित शाह पर इस फर्जी मुठभेड़ में हत्या कराने और सबूत मिटाने और आपराधिक षड़यंत्र रचने जैसे कई आरोप लगे थे। सीबीआई ने इस मामले पर 2010 में जब अमित शाह के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी, जिसमें अमित शाह को गुजरात के गृह राज्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि 2014 में मुंबई की अदालत ने अमित शाह को सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर मामले में क्लीन चिट दी थी।

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‘महाश्वेता देवी’ उपन्यास की सेंंचुरी https://vishwavarta.com/%e0%a4%ae%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a5%87%e0%a4%a4%e0%a4%be-%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b5%e0%a5%80-%e0%a4%89%e0%a4%aa%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%b8-%e0%a4%95/55648 Thu, 28 Jul 2016 16:36:12 +0000 http://www.vishwavarta.com/?p=55648 महाश्वेता देवी ने जब से होश संभाला, कलमजीवी रहीं। उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में जितना काम किया, उतना कुछ कर पाना एक अकेले व्यक्तित्व के बूते की बात नहीं है। उनका पार्थिव अवसान हिंदी और बांग्ला साहित्य से जुड़े लोगों के लिए एक दुखद घटना है। इस खबर को सुनकर साहित्य जगत स्तब्ध है। उन्होंने …

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mahasweta-devi_650x400_81469703248महाश्वेता देवी ने जब से होश संभाला, कलमजीवी रहीं। उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में जितना काम किया, उतना कुछ कर पाना एक अकेले व्यक्तित्व के बूते की बात नहीं है। उनका पार्थिव अवसान हिंदी और बांग्ला साहित्य से जुड़े लोगों के लिए एक दुखद घटना है। इस खबर को सुनकर साहित्य जगत स्तब्ध है। उन्होंने साहित्यकार के रूप में तो देश की सेवा की ही, सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी उनके अवदान को नकारा नहीं जा सकता। उनका नाम लेते ही उनके तीन रूप सहज ही नजरों के सामने आ जाते हैं। पत्रकार, साहित्यकार और आंदोलनकर्ता के रूप में उनका व्यक्तित्व हमेशा आकर्षक रहा। उन्हें जो कुछ भी मिला, अपनी प्रतिभा और लगन की बदौलत मिला। जिंदगी में उन्होंने कभी भी शार्टकट नहीं अपनाया।

1996 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित महाश्वेता देवी का जन्म 14 जनवरी 1926 को अविभाजित भारत के ढाका में हुआ था। साहित्य के प्रति प्रेम उन्हें विरासत में मिला। उनके पिता मनीष घटक अच्छे कवि और उपन्यासकार थे तो उनकी माता धारीत्री देवी भी लेखिका और समाज सेवी महिला थी। जाहिर सी बात है कि उनके अंदर लेखन और समाजसेवा का गुण उन्हें अपने माता-पिता से ही मिला। भारत विभाजन के समय किशोरावस्था में ही उनका परिवार पश्चिम बंगाल में आकर बस गया। बाद में उन्होंने विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन से बी.ए.(ऑनर्स) अंग्रेजी में किया और फिर कोलकाता विश्वविद्यालय में एम.ए. अंग्रेजी में किया। कोलकाता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर डिग्री प्राप्त करने के बाद एक शिक्षक और पत्रकार के रूप में उन्होंने अपने कॅरिअर की शुरुआत की। कलकत्ता विश्वविद्यालय में अंग्रेजी व्याख्याता के रूप में नौकरी भी की। 1984 में सेवानिवृत्ति लेकर उन्होंने खुद को लेखन के प्रति केंद्रित कर लिया। भले ही उन्होंने कम उम्र में लिखना शुरू किया लेकिन कभी भी कम महत्व का कुछ भी नहीं लिखा। जो भी लिखा बेजोड़ और बेमिसाल लिखा। अपने लेखन में उन्होंने आम आदमी के मनोविज्ञान और जरूरत को सबसे ऊपर रखा। विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए लघु कथाओं का उनका योगदान न केवल अहम है बल्कि मननीय और विचारणीय भी है। उनका पहला उपन्यास नाती सन् 1957 में प्रकाशित हुआ। झाँसी की रानी महाश्वेता देवी की प्रथम रचना है जो 1956 में छपी। यह वह रचना है जिसने उन्हें यह अहसास कराया कि वे कथाकार बन सकती है। महाश्वेता जी ने अपने श्रीमुख से यह बात स्वीकार की है। स्वयं उन्हीं के शब्दों में, झांसी की रानी को लिखने के बाद मैं समझ पाई कि मैं एक कथाकार बनूंगी।

एक पुस्तक को लिखने की तैयारी के क्रम में लेखक को यायावरी करनी पड़ती है, यह सच महाश्वेता जी से छिपा नहीं था। वे चाहतीं तो कलकत्ता में बैठकर भी झांसी की रानी पर पुस्तक लिख सकती थीं लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इस पुस्तक को उन्होंने सागर, जबलपुर, पूना, इंदौर, ललितपुर के जंगलों, झाँसी ग्वालियर, कालपी में लिखा। ये वे स्थान हैं जिनसे किसी न किसी रूप में रानी लक्ष्मीबाई का 1857-58 के युद्ध में साबका पड़ा। कलकत्ता में बैठकर रानी लक्ष्मीबाई के जीवनवृत्त पर लिखा तो जा सकता था लेकिन उसे सच्चाई के धरातल पर कसा नहीं जा सकता। अपनी नायिका के अलावा लेखिका ने क्रांति के तमाम अग्रदूतों और यहां तक कि अंग्रेज अफसर तक के साथ न्याय करने का प्रयास किया है।

कविता से श्रीगणेश कर कहानी और उपन्यास तक का सफर करने वाली महाश्वेता देवी ने बाद के वर्षों में गद्य विधा को अपनी सामान्यचर्या में शामिल कर लिया। अग्निगर्भ, जंगल के दावेदार और 1084 की मां, माहेश्वर और ग्राम बांग्ला उनकी महत्वपूर्ण कृतियां हैं। चार दशक तक चली उनकी कलम ने छोटी-छोटी कहानियों के बीस संग्रह दिए। बांग्ला भाषा में उनके सौ उपन्यास प्रकाशित हुए। बांग्ला भाषा से हिंदी में अनूदित अक्लांत कौरव, अग्निगर्भ, अमृत संचय, आदिवासी कथा, ईंट के ऊपर ईंट, उन्तीसवीं धारा का आरोपी, उम्रकैद, कृष्ण द्वादशी, ग्राम बांग्ला, घहराती घटाएं, चोट्टि मुंडा और उसका तीर, जंगल के दावेदार, जकडऩ, जली थी अग्निशिखा, झाँसी की रानी, टेरोडैक्टिल, दौलति, नटी, बनिया बहू, मर्डरर की माँ, मातृछवि, मास्टर साब, मीलू के लिए, रिपोर्टर, श्री श्री गणेश महिमा, स्त्री पर्व, स्वाहा और हीरो-एक ब्लू प्रिंट आदि कई बेमिसाल उपन्यासों का सृजन किया। जिस तरह उन्होंने उपन्यासों का शतक बनाया उसी तरह अपनी प्रतिभा की बदौलत पुरस्कारों की भी झड़ी लगा दी। उनका द्रौपदी उपन्यास तो एक तरह से नारी मन का विज्ञान ही है। द्रौपदी के अंतद्र्वंद्व, उसके संघर्ष पर कलम तो बहुतों की चली है लेकिन जो पैनापन महाश्वेता देवी ने पैदा किया है, उसकी अनुभूति करना भी अपने आप में बेहद विलक्षण है। उनकी लेखनी का ही प्रताप कहेंगे कि कि उन्हें 1979 में साहित्य अकादमी अवार्ड मिला। 1986 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। 1996 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1997 में रमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला। 2006 में पद्मविभूषण,2010 में यशवंत राव चह्वाण राष्ट्रीय पुरस्कार, 2011 में बंग विभूषण,2012 में साहित्यब्रह्म पुरस्कार हासिल कर उन्होंने साहित्य के बड़े पुरोधाओं को अपनी सारस्वत प्रतिभा का लोहा मनवाया। उनकी कृतियों पर वर्ष 1968 में संघर्ष, 1993 में रुदाली, हजार चौरासी की मां माटी माय और गनगोर जैसी फिल्में भी बनीं। महाश्वेता देवी का पूरा जीवन ही अध्ययन-अध्यापन और लेखन को समर्पित रहा। उनके पार्थिव देह का अवसान दुखी अवश्य करता है लेकिन उनका कृतित्व उन्हें न केवल सदियों तक जिंदा रखेगा बल्कि देशवासियों का मार्गदर्शन भी करता रहेगा। इस सुधीचेता साहित्य मनीषी और महान आंदोलन धर्मी, आदिवासियों के लिए अनवरत काम करने वाली सहृदय साहित्यकार,उदार मानव आत्मा के संदर्भ में जितना कुछ भी कहा जाए, कम है, उन्हें भावभीनी विनम्र श्रद्धांजलि।

                                                                                                                                                                  – सियाराम पांडेय ‘शांत’

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