रीवा। डभौरा बैंक घोटाले की जांच में जुटी सीआईडी के भी कान खड़े हो गए हैं। नित रोज जांच में आने वाले तथ्य सीआईडी के अफसरों को भी झकझोर कर रख दिया है। नया मामला तब प्रकाश में आया जब एक मुखबिर की सूचना पर सीआईडी के डीएसपी एमएल दामले व टीआई दिलीप मरकाम डभौरा पहुंचे। बयान में जो बातें उभरकर सामने आई वह चौका देने वाली थी।घोटाले के मुख्य आरोपी रामकृष्ण मिश्रा ने क्षेत्र में यह अफवाह फैला रखा था कि उसे घर के पीछे लगे खेत में सोने की सिल्लियां मिली है। उन पैसे से वह अनाथ बच्चियों का विवाह, बेरोजगारों को रोजगार, दीन-दुखियों की मदद कर वोट बैंक तैयार कर रहा था। इतना ही नहीं वह इस फिराक में भी था कि किसी राष्ट्रीय दल से डोनेशन पर टिकट प्राप्त कर सिरमौर विधानसभा से चुनाव लड़ता और 5 से 10 करोड़ रुपए देकर मंत्री बन जाता। चुनाव तो हुए लेकिन उससे पूर्व ही केन्द्रीय मर्यादित सेवा सहकारी बैंक की शाखा डभौरा के सेंड्रीज एकाउंट से पार किए गए 24 करोड़ 50 लाख का खुलासा हो गया और उसके विरुद्ध डभौरा थाने में अपराध पंजीबद्ध भी हो गया। इसके बाद से वह लगातार फरार चल रहा था।डभौरा बैंक घोटाले के ही एक मामले में 10 अगस्त को सुनवाई करते हुए माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर ने न केवल मामले के फरार आरोपी बृजेश उरमलिया, संदीप सिंह व राजेश सिंह के जमानत निरस्त की है वहीं डीजे कोर्ट रीवा के न्यायालय में लगी रामकृष्ण मिश्रा की जमानत भी निरस्त हुई है। सीआईडी ने फरार आरोपियों की चल-अचल सम्पत्ति कुर्क करने की कार्रवाई को आगे बढ़ा दिया है। गत दिनों डिस्ट्रिक कोर्ट भोपाल में सरेंडर करने वाले तत्कालीन डभौरा एसडीओपी सुजीत सिंह बरकड़े व तत्कालीन थाना प्रभारी अरूण सिंह द्वारा दिए गए बयान को ऑन रिकार्ड नहीं लिया गया है। उक्त बयान रिकार्ड में आने के बाद सत्तारूढ़ दल के 3 कबीना मंत्रियों के चेहरे से नकाब हट सकता था।मुखबिरों से सीआईडी के अफसरों को सूचना मिली थी कि रामकृष्ण मिश्रा ने नेपाल में गबन के पैसे को लगाया है। जिसके सूत्र को खोजने के लिए सीआईडी के अफसर डभौरा गए थे। जहां उन्हें सटीक जानकारी तो नहीं मिली बल्कि उनके हाथ रामकृष्ण की वह ख्वाहिश लग गई जिसके जरिए वह मंत्री बनने का सपना देख रहा था। कारण साफ था कि गबन के पैसे से वह राजनीति में आना चाह रहा था। उसका मानना था कि एक बार विधायक बना तो यह घोटाला उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता।
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