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इस भगवान के आंसुओं से हुई थी आंवला की उत्पत्ति

आप सभी जानते ही हैं कि कार्तिक मास में कई त्यौहार होते हैं. ऐसे में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी यानी अक्षय नवमी मनाई जाती है. आप सभी को बता दें कि इस साल यह 17 नवंबर को मनाई जाने वाली है. कहते हैं इस दिन महिलाएं आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर संतान प्राप्ति और उनकी सलामती के लिए पूजा करती हैं और सब बहुत ही विधि विधान से किया जाता है. कहते हैं इस दिन आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने का भी चलन माना जाता है और इससे कई लाभ होते हैं. अब आज हम आपको बताते हैं कि आंवला की उत्पत्ति कैसे हुई है जो बहुत कम लोग जानते हैं.

आइए जानते हैं कैसे उत्पन्न हुआ आंवला – कहा जाता है जब पूरी पृथ्वी जलमग्न थी और पृथ्वी पर जिंदगी नहीं थी, तब ब्रम्हा जी कमल पुष्प में बैठकर निराकार परब्रम्हा की तपस्या कर रहे थे. उस दौरान ब्रम्हा जी की आंखों से ईश-प्रेम के अनुराग के आंसू टपकने लगे थे और ब्रम्हा जी के इन्हीं आंसूओं से आंवला का पेड़ उत्पन्न हुआ था और उस पेड़ से चमत्कारी औषधीय फल की प्राप्ति हुई थी. कहते हैं उस दौरान ही उसे चमत्कारी करार दिया गया था.

आइए जानते हैं आयुर्वेद और विज्ञान के अनुसार आंवला का महत्व – कहा जाता है आचार्य चरक ने बताया था आंवला एक अमृत फल है, जो कई रोगों का नाश करने में सफल होता है और साथ ही विज्ञान के मुताबिक भी आंवला में विटामिन सी की बहुतायता होती है. कहा जाता है इसे उबालने के बाद भी खाया जाता है क्योंकि तब भी इसे अमृत फल कहा जा सकता है. कहते हैं आंवला शरीर में कोषाणुओं के निर्माण को बढ़ाता है, जिससे शरीर स्वस्थ रहता है.

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