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मायावती और कोंग्रेस प्रमुख जोगी का गठजोड़ मध्यप्रदेश -छत्तीसगढ़ ही नहीं, 2019 में भी बिगाड़ेगा कांग्रेस का खेल

मायावती और कोंग्रेस प्रमुख जोगी का गठजोड़ मध्यप्रदेश -छत्तीसगढ़ ही नहीं, 2019 में भी बिगाड़ेगा कांग्रेस का खेल

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की विपक्षी एकता को बसपा अध्यक्ष मायावती ने तगड़ा झटका दिया है. बसपा ने कांग्रेस के बजाय अजीत जोगी के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ने का फैसला किया है. वहीं, मध्य प्रदेश में अकेले उतरने का निर्णय किया है. ऐसे में कांग्रेस के साथ गठबंधन पर पूर्णविराम लगा दिया है.मायावती और कोंग्रेस प्रमुख जोगी का गठजोड़ मध्यप्रदेश -छत्तीसगढ़ ही नहीं, 2019 में भी बिगाड़ेगा कांग्रेस का खेल

लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मात देने का सपना संजोय रही थी, उसी समय बसपा अध्यक्ष मायावती ने राहुल गांधी को तगड़ा झटका दिया है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से बगावत कर अलग पार्टी बनाने वालेअजीत जोगी के साथ बसपा ने हाथ मिला लिया है. वहीं, मध्य प्रदेश में अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है.

बसपा के तेवर से साफ है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन की सारी उम्मीदें खत्म हो गई हैं. बसपा के कांग्रेस संग न आने से बीजेपी को एक बार फिर सत्ता को बचाए रखने की आस नजर आ रही है. वहीं, तीन राज्यों के चुनाव के साथ-साथ 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का बनता राजनीतिक समीकरण अब बिगड़ता दिख रहा है.

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इसी साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं. इन तीनों राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं. एमपी और छत्तीसगढ़ की सत्ता में बीजेपी 15 साल से काबिज है. इन दोनों राज्यों कांग्रेस नेता बसपा के साथ गठबंधन की कोशिशें कर रहे थे, लेकिन मायावती ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया है.

छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के नेतृत्व में बीजेपी तीन बार से सत्ता पर काबिज है. लेकिन कांग्रेस और बीजेपी के बीच महज एक फीसदी का अंतर है. जबकि बसपा को पिछले चुनाव में 4.5 फीसदी वोट मिले थे. 2013 के चुनाव में राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 49 सीटें जीती थीं. जबकि कांग्रेस को 39 और बसपा को एक सीट मिली थी.

बसपा-कांग्रेस एक साथ मिलकर चुनावी जंग में उतरते तो राज्य की राजनीतिक तस्वीर बदल जाने की संभावना थी. 2013 में बसपा और कांग्रेस एक साथ मिलकर उतरते तो नतीजे अलग होते. बीजेपी को 11 सीटों का नुकसान उठाना पड़ता और 38 सीटें मिलतीं. जबकि कांग्रेस-बसपा गठबंधन 51 सीटों के साथ सत्ता पर काबिज हो जाता. यही वजह थी कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष लगातार बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात रह थे, लेकिन बाजी कांग्रेस से बगावत कर अलग पार्टी बनाने वाले अजीत जोगी के हाथ लगी है.

मायावती और जोगी के बीच हुए गठबंधन में 35 सीटें बसपा के खाते में आई हैं और 55 सीटों पर जोगी जनता कांग्रेस को मिली है. जोगी के पास जहां आदिवासी वोट है वहीं बसपा के पास दलित मतदाताओं पर अच्छी पकड़ है. कांग्रेस नेता भी मानते हैं कि राज्य में दो दर्जन सीटें ऐसी हैं जहां बसपा के चलते नुकसान उठाना पड़ सकता है.

2013 में मध्यप्रदेश में बीएसपी ने 230 सीटों में से 227 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. बसपा यहां 6.42 फीसदी वोट के साथ चार सीटें जीतने में सफल रही थी. राज्य 75 से 80 सीटों पर बसपा प्रत्याशियों ने 10 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए थे. जबकि बीजेपी और कांग्रेस के बीच 8.4 फीसदी वोट शेयर का अंतर था. बीजेपी को 165 सीटें और कांग्रेस को 58 सीटें मिली थीं.

चित्रकूट विधानसभा सीट पर उपचुनाव में बसपा के न लड़ने का फायदा कांग्रेस को मिला था. इसी मद्देनजर कांग्रेस बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जैसे पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की कोशिश कर रही थी. थी. लेकिन मायावती ने गुरुवार को अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करके कांग्रेस के साथ गठबंधन के कयासों पर पूर्णविराम लगा दिया है.

मध्य प्रदेश में बसपा का आधार यूपी से सटे इलाकों में अच्छा खासा है. चंबल, बुंदेलखंड और बघेलखंड के क्षेत्र में बसपा की अच्छी खासी पकड़ है. कांग्रेस के साथ बसपा का न उतरना शिवराज के लिए अच्छे संकेत माने जा रहे हैं.

बसपा का कांग्रेस के साथ न आना राहुल गांधी के विपक्षी एकता को झटका माना जा रहा है. इसके चलते कांग्रेस को जहां मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसके अलावा आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ बसपा रहे, ये कहना मुश्किल है. बसपा 2019 में भी इसी तरह से अलग होकर लड़ती है तो कांग्रेस को कई राज्यों में दलित मतों का नुकसान झेलना पड़ सकता है. बीजेपी और कांग्रेस के बाद बसपा एकलौती पार्टी है जिसका आधार राष्ट्रीय स्तर पर है.

बसपा ऐसा ही रुख उत्तर प्रदेश में भी दिखा सकती है. मायावती हाल ही में कहा कि सम्मानजनक सीटें मिलेंगी तभी वो महागठबंधन का हिस्सा बनेगी वरना अकेले चुनाव लड़ेगी. ऐसा होने पर कांग्रेस की विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कमजोर पड़ सकती है.

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