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कहां गए गायों के शुभचिंतक बालक नचिकेता

a.nसियाराम पांडेय ‘शांत’.
नचिकेता को इस बात का कष्ट था कि उसके पिता अपने यज्ञ में ब्राह्मणों को अशक्य, निर्बल, बूढ़ी गायों को दान क्यों कर रहे हैं। क्या ये गायें ब्राह्मणों के यहां सुरक्षित रहेंगी। जब उनके पिता इन गायों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो ये ब्राह्मण इन अनुपयुक्त गायों को क्यों पालेंगे। इसी अंतद्र्ंद्व में नचिकेता ने अपने पिता से बार-बार यह जानने की कोशिश की कि वह बीमार अशक्य और वृद्ध गायों का दान क्यों कर रहे हैं। जब उचित जवाब न मिला तो उसने अपने पिता से पूछना शुरू किया कि वह उसे किसे दान करेंगे। पिता ने पहले तो महटियाया लेकिन जब बेटा जिद पर अड़ गया तो उसने कहा कि मैं तुम्हें मृत्यु अर्थात यमराज को दूंगा। ‘मृत्यवे त्वां दास्यामि।’ बेटा भी जिद्दी निकला। पहुंच गया यमराज के पास और नचिकेता और यमराज के संवाद से निकला कठोपनिषद। तो क्या आज देश में गायों की पीड़ा को समझने वाले नचिकेताओं की कमी पड़ गई है। गायों के काटे जाने पर पूरी देश में चिंता है लेकिन गायें गौतस्करों तक कैसे पहुंचती हैं। इसके लिए कौन जिम्मेदार हैं। केवल बूढ़ी ही नहीं,नौजवान और गाभिन गाएं भी, उनकी बछिया और बछड़े भी गोकशी के शिकार हो रहे हैं लेकिन इस देश का एक भी बच्चा बूढ़ी गाय को दरवाजे से हटाने के अपने पिता के निर्णय पर सवाल खड़ा नहीं करता। यहीं पड़ती है गौवध की दागबेल और यहीं बनती है उसकी पृष्ठभूमि। सच तो यह है कि इस देश में नचिकेताओं का अभाव हो गया है। पहले लोगों को गौवध के पाप लगा करते थे लेकिन अब वह बात नहीं रही। गौतम ऋषि एक दुर्बल गाय को दूब से मारकर अपने बगीचे से बाहर खदेड़ने की चेष्टा कर रहे थे। इस क्रम में गाय मर गई। तत्कालीन ब्राह्मणों और ऋषियों ने व्यवस्था दी कि गौहत्या के पाप से बचने के लिए वे कामदगिरि की सात परिक्रमा करें। फिर यज्ञ करें। ब्राह्मण भोज करें। गौतम ऋषि के इतना सब करने के बाद ब्राह्मणों ने कहा कि गौतम अभी तुम शुद्ध नहीं हुए हो जब तक मां गंगा तुम्हें शुद्ध नहीं करेंगी तब तक हम तुम्हें शुद्ध नहीं मानेंगे। गौतम की तपस्या के प्रभाव से आकाश में गंगा प्रकट हुई। उनके जल में स्नान कर गौतम पवित्र हो गए और वह आज भी गौतमी अर्थात नर्मदा नदी के रूप में भारत भूमि में बह रही हैं। नर्मदा गंगा से भी पुरानी नदी हैं। मतलब नर्मदा जैसी नदी को जन्म देने में छोटी ही सही, मगर गाय की अपनी भूमिका है। लेकिन अब तो लोगों को गौहत्या का भी भय नहीं रहा। नहीं तो लोग गौ तस्करों के हाथ में बूढ़ी और अनुपयोगी गायें बेचते ही क्यों?
gouगाय राजनीति के केंद्र में है। गाय को लेकर केंद्र सरकार और विपक्ष आमने-सामने है। गौवध अब निंदा का विषय नहीं रहा। राजनीतिक दलों के व्यवहार से तो कमोवेश यही संकेत मिलता है। गौरक्षा से जुड़े लोग भी सवालों के कठघरे में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कुछ गौरक्षकों को नकली और दुकान चलाने वाला कह दिया है। पंजाब में तो कुछ नकली गौरक्षकों पर कार्रवाई भी हुई है। प्रधानमंत्री ने तो सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को यहां तक कह दिया है कि वे गौरक्षा का दंभ भरने वालों का डोजियर बनाएं और उनके खिलाफ कार्रवाई करें। मतलब प्रधानमंत्री की ओर से नकली गौरक्षकों के खिलाफ कार्रवाई की हरी झंडी मिल चुकी है। अब सवाल असली और नकली की पहचान का है। ऐसे में कविवर रहीम अपने एक दोहे के रूप में याद आते हैं। ‘अंतर अंगुरी चार कौं सांच झूठ में होय। सच मानी देखी कहै सुनी न मानै कोय।’ असली और नकली को पहचानना पुलिस का काम है। सच तो यह है कि जीटी रोड पर पड़ने वाले अधिकांश थानों में पशुतस्करों की ओर से बड़ा चढ़ावा चढ़ता है। प्रति ट्रक सुविधाशुल्क तय है। ऐसे में पुलिस की सुविधा में दखल किसका है? गौरक्षकों का और वे क्यों चाहेंगे कि गौरक्षक निर्द्वद्व घूमें और उसके लिए परेशानी का सबब बनें। ऐसे में नकली गौ रक्षकों पर तो कार्रवाई होने से रही। फंसेंगे बेचारे असली। जो गाय को माता समझकर उनकी रक्षा करते हैं। विडंबना इस बात की है कि गाय की रक्षा करना भी इस देश के नेताओं को नहीं सुहाता। गौरक्षक होने का तो सभी दावा करते हैं। लालू प्रसाद यादव उनमें अग्रणी हैं लेकिन ये वही महानुभाव हैं जो गौमांस खाने का दावा करने में भी पीछे नहीं रहते। जो पशुओं का चारा तक खा ले, उसके द्वारा पशुओं का मांस खाना कोई बड़ी बात नहीं है। लालू प्रसाद यादव का एक संस्मरण याद आता है। लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को बिहार में लालू प्रसाद यादव ने रुकवा लिया और उन्हें जेल भेज दिया। दंभोक्ति की- राम वीपी सिंह के पूर्वज हैं और कृष्ण हमारे। यह दाल भात में मूसलचंद आडवाणी कहां से पधारे। इस पर वाराणसी के एक हास्य कवि ने व्यंग्य किया था कि कृष्ण हमारे पूर्वज थे बांसुरी बजाते थे। हम उनके कुलदीपक हैं, बांस बजाएंगे। गौहत्या के मुद्दे पर भी लालू प्रसाद यादव सरीखे नेता बांस ही बजा रहे हैं। गौहत्या की इन नेताओं को कोई चिंता नहीं, उन्हें चिंता है गौहत्यारों की। वे उन्हें बचाना चाहते हैं। अगर इस देश के नेताओं को गौहत्या की रंच मात्र भी फिक्र होती तो वे समूचे भारत में गाय का कटना बंद करते। एक गौहत्या निषेध कानून बनाते लेकिन ऐसा नहीं है। कभी भी किसी राजनीतिक दल ने पूरे देश में गौहत्या बंद कराने की बात नहीं की और कदाचित की भी तो इतने अस्फुट स्वर में कि बोल भी दिया और पता भी नहीं चला। गौहत्या का यह सिलसिला बहुत पुराना है। हिंदुओं ने गाय को बचाने के लिए बहुत कुर्बानियां दी हैं। पांचाल नरेश द्रुपद की गायें द्रोण के शिष्यों ने बलात छीन ली थी। मुगल हिंदू शासकों पर विजय पाने के लिए अक्सर गाय का सहारा लेते थे। शक और हूण जातियों की उत्पत्ति वशिष्ठ ऋषि की गाय नंदिनी से हुई बताई जाती है। राजा विश्वरथ का स्वागत नंदिनी ने ही किया था और उसे जीतने के चक्कर में ही विश्वरथ को यह आभास हुआ कि“धिग्बलं क्षत्रिय बलं ब्रह्मतेजो बलं बलम्ा। एकेन ब्रह्मदंडेन सर्वास्त्राणि हतानि में। यही वह घटना थी जिसने विश्वरथ को ब्रह्मर्षि विश्वामित्र बनने को मजबूर किया। रघु के पुत्र दिलीप को भी पुत्ररत्न की प्राप्ति के लिए नंदिनी गाय की वर्षों सेवा करनी पड़ी थी। जमदग्नि ऋषि की चमत्कारी गाय को लूटने के चक्कर में ही सहस्त्रार्जुन भगवान परशुराम को अपना शत्रु बना बैठा था।
cowहिंदुओं के लिए गाय मां है। हिंदू धर्म में गंगा, गौ और गायत्री को प्रमुखता दी जाती है। ‘मातर: सर्वभूतानां गाव: सर्व सुखप्रदा:।’ जो गाय सभी प्राणियों की माता है। जो सभी को सुख प्रदान करने वाली है, उस गाय और उसके वंश की हत्या की बात किसी के भी गले नहीं उतरती लेकिन अपने स्वार्थों के वशीभूत इंसान इतना गिर गया है कि वह सर्वकल्याणमयी गाय का भी पूरी निर्ममता से वध कर देता है और कोई इसका विरोध भी नहीं करता। कुछ मुट्ठी भर लोग इसका विरोध करते हैं तो उन पर भी राजनीतिज्ञों की भृकुटि टेढ़ी है। मतलब साफ है कि गाय का अब भगवान ही मालिक है। नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के मूल में गाय के संरक्षण का वादा भी प्रमुख था लेकिन अब तो वे भी असली और नकली गौरक्षक का राग अलापने लगे हैं। उनकी नजर दरअसल दलित और मुस्लिम मतों पर है। वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। गुजरात के ऊना में मरी गाय का चमड़ा उतार रहे दलितों की पिटाई का मामला संसद में प्रमुखता से गूंजा है। दलित नाराज न हो जाएं, इस भय से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यहां तक कहना पड़ा है कि दलित भाइयों को नहीं, मुझे मारो। गौरक्षकों की दुकान वाली बात हिंदू महासभा, बजरंगदल और विहिप को रास नहीं आई है और इसका विरोध भी शुरू हो गया है।
मतलब साफ है कि नरेंद्र मोदी चले तो थे छब्बे बनने लेकिन लौटे दूबे बनकर। यह वही नरेंद्र मोदी हैं जो चुनाव पूर्व गाय के फायदे गिनाया करते थे। उसके दूध, दही ही नहीं, गोबर और मूत्र को भी लोककल्याणकारी बताया करते थे। आयुर्वेद में तो शरीर शुद्धि की पंचगव्य चिकित्सा का कोई तोड़ नहीं है। पंचगव्य गाय के दूध,दही,घृत, गोबर और गौमूत्र को मिलाकर बनता है। गाय के बछड़े हमारे खेतों में काम आते थे लेकिन कृषि जगत में आए ट्रैक्टर जैसी क्रांति ने बैलों की उपयोगिता छीन ली। अगर यह कहें कि ट्रैक्टर बैलों का हत्यारा है तो कदाचित गलत नहीं होगा। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में खुद को कामधेनु कहा है। गाय उन्हें सबसे प्रिय है। शास्त्र कहते हैं कि जहां गाय है, वहां श्रीकृष्ण हैं। जहां श्रीकृष्ण हैं, वहीं धर्म है और जहां धर्म है, वहीं सुख है लेकिन भारत में जहां गाय को माता का दर्जा प्राप्त है, वहां धड़ल्ले से गायें काटी जा रही हैं। सभी बूचड़खाने विधर्मियों के ही हों, ऐसा भी नहीं है। कुछ हिंदुओं के भी अपने बूचड़खाने हैं। पैसे की चमक में अंधे ये लोग गाय को मारकर देश का भविष्य चौपट कर रहे हैं। जिस गाय के शरीर में सभी तीर्थों और तैंतीस करोड़ देवताओं का निवास माना जाता है, उसी गाय का वध समझ से परे है। नीति कहती है कि गाय रूपी तीर्थ में गंगा का निवास होता है। हृष्टि-पुष्टि का निवास होता है। उसके खुरों से उड़ने वाली धूल में लक्ष्मी का निवास होता है, ऐसी परम पवित्र गाय का वध क्यों किया जाना चाहिए, इसका जवाब किसी के भी पास नहीं है। ‘गवां हि तीर्थे वसतीह गंगा पुष्टिस्तथातद्रजसि प्रबृद्धा। लक्ष्मी करीषे प्रणतौ च धर्मस्तासां प्रणामं सततं च कुर्यात्ा।’ जब धरती पर दानवी अत्याचार बढ़ता है तो धरती की रक्षा के लिए गाय ही भगवान विष्णु के यहां सर्वप्रथम गुहार लगाती है क्योंकि धरती की पीड़ा को पूर्ण संवेदना में वही समझती है। पहले गौवध गलती से भी हो जाता था तो उसके लिए बड़ा प्रायश्चित करना पड़ता था लेकिन अब तो कुछ तथाकथित हिंदू गौमांस तक खाने का दावा करने लगे हैं। इसमें पढ़े-लिखे लोग शामिल हैं जो खुद तो गाय भैंस पालते हैं ताकि उन्हें दूध मिलता रहे लेकिन गायों के विनाश पर उफ तक नहीं करते। अलबत्ते गौहत्यारों का संरक्षण करते हैं। यह स्थिति किसी भी लिहाज से मुफीद नहीं है।
सभी राजनीतिक दलों को सोचना होगा कि अगर गाय नहीं रहीं तो पौष्टिक दूध, दही और घृत कहां से मिलेगा? क्या हम सिंथेटिक दूध पर आश्रित होकर रह जाएंगे या फिर दूध का भी विदेशों से आयात करेंगे। िकसान आत्महत्या कर रहे हैं इसकी एक वजह यह भी है िक उनके पास खेती-िकसानी के अलावा आय का कोई जरिया नहीं है। गौ पालन से उन्हें होने वाली बड़ी आय पर पशु तस्करी का ग्रहण लग गया है। सरकार को इस पर भी विचार करना चाहिए।

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