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इस क्रिसमस बच्चों को प्लास्टिक के खिलौने दिलाने में बरतें सावधानी

इस क्रिसमस अपने बच्चों को खिलौने दिलाते समय थोड़े से सावधान रहें. प्लास्टिक के खिलौनों से परहेज करें. इनको लेकर हालिया रिपोर्ट आई है वो आपको चौंका देगी. इस रिपोर्ट में डायोक्सिन नाम के एक नए टॉक्सिक का खुलासा हुआ है, जो प्लास्टिक के खिलौने में पाया गया है. दरअसल, पहले लेड और थाइलेड नाम के खतरनाक टॉक्सिक प्लास्टिक के खिलौने में मिले थे. ये नया टॉक्सिक इलेक्ट्रॉनिक सामान में पाया जाता है.

इस रिपोर्ट के बारे में जब जी बिजनेस ने कंज्यूमर मिनिस्ट्री से बात की तो पता चला कि मंत्रालय ने बीआईएस के साथ मिलकर खिलौने के मानकों को अनिवार्य करने का फैसला लिया है और कॉमर्स मिनिस्ट्री को एक खत भी लिख दिया गया है. कामर्स मंत्रालय इस पर काम शुरू कर चुका है और साल 2019 के अप्रैल तक सभी कंपनियों के ये माणक अनिवार्य हो जाएंगे. इसका मतलब ये होगा कि प्लास्टिक के खिलौने में जो भी एलिमेंट इस्तेमाल हो रहे हैं, कितना प्लास्टिक इस्तेमाल हो रहा है, ये सब तय मात्रा में होंगे. इससे सुरक्षित और बच्चों के लिए सेफ खिलौने बनेंगे.

रिपोर्ट में क्य़ा है

30 नवबंर को रिलीज हुई इस रिपोर्ट में साफ है कि आजकल भारत में जो भी खिलौने बाहर से आ रहे हैं या भारत में बन रहे हैं सब में एक नए तरह का टॉक्सिक मिल रहा है उसका नाम है डायक्सिन. ये वैसे ही बहुत खरतनाक है. बच्चे खिलौने मुंह से लगा लेते हैं, ऐसे में ये उनके पेट के अंदर जाता है तो उनके दिमाग पर इसका असर होता है. ये केवल बच्चे नहीं बल्कि बड़ों के लिए भी हानिकारक टॉक्सिक है. पूरे विश्व में इसे बैन करने की मुहिम शुरू हो गई है, लेकिन WHO में इसपर कोई गाइडलाइंस नहीं है.

इनका कहना

टॉक्सिक लिंक के प्रोग्राम कॉर्डिनेटर पियूष महापात्र का कहना है कि ये टॉक्सिक इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स में होता है, रिसाइक्लिंग वाले प्लास्टिक का इस्तेमाल खिलौनों में होने लगा है. 9 देशों पर ये स्टडी हुई थी, लेकिन जापान चीन के बाद भारत का स्थान चौथे नंबर पर है. रिसाइक्लिंग अच्छी चीज है, लेकिन खाने की चीजें या जो बच्चों के मुंह और हाथ के आस-पास आती है. उसमें रिसाइक्लिंग प्लास्टिक का इस्तेमाल कम हो इसका ध्यान देना जरूरी है. प्लास्टिक के खिलौनों से बच्चे खेलते कम हैं मुंह में ज्यादा लेते हैं.

मैक्स अस्पताल में बच्चों की डॉक्टर तपीशा जी. कुमार कहती हैं कि डायक्सिन सबके लिए बहुत खतरनाक है. ये केवल शारीरिक विकास में बाधा नहीं है बल्कि मानसिक विकास भी रुक जाता है. बच्चों का इम्यून भी कमजोर होता है, उनके दिमाग पर इसका गहरा असर होता है लेकिन धीरे-धीरे उन्हें कैंसर का खतरा भी हो सकता है.

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