Friday , April 26 2024

पाकिस्तान पर भारत का एक और वार

mmmसियाराम पांडेय ‘शांत’
मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है। यह सामान्य सी बात पाकिस्तान की समझ में क्यों नहीं आती? अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी आलोचना हो रही है। अमेरिका ने  तो पाकिस्तान को अपने सभी आतंकी समूहों पर कार्रवाई करने को कहा है। भले और बुरे आतंकियों में फर्क की गुंजाइश भी नहीं छोड़ी है। सच तो यह है कि पाकिस्तान को बेनकाब करने की भारत की मुहिम रंग ला रही है। सार्क सम्मेलन को लेकर पाकिस्तान पहले ही मुंह की खा चुका है और  अब ब्रिक्स सम्मेलन में भी उसके खिलाफ माहौल बनता नजर  आ रहा है। भारत से एक बार फिर वार्ता के लिए उसका सशर्त तैयार होना  इस बात का संकेत है कि पाकिस्तान के अंदर से भी आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग  उठ  रही है।  
कूटनीति के आधुनिक चाणक्य और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो पाकिस्तान को विकास की राह पर लाने और उसकी अकल ठिकाने लगाने के लिए कृतसंकल्प हैं ही।  वैसे भी नरेंद्र मोदी के बारे में यह आम धारणा रही है कि वे अपने मन में अगर कुछ ठान लेते हैं तो उस कार्य को अंजाम तक पहुंचा कर ही दम लेते हैं। उरी में सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले के बाद उन्होंने केरल की धरती से पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि वे उसे पूरी दुनिया से अलग-थलग करने के बाद ही चैन की सांस लेंगे और अपने इस वचन पर वे कायम भी हैं। ब्रिक्स सम्मेलन इसका साक्षी है। प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स देशों के राष्ट्राध्यक्षों से आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने और आतंकियों के समर्थक देश के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। मोदी की मानें तो  वैश्विक समृद्धि के लिए जरूरी है कि आतंकवाद का सफाया हो। उन्होंने मध्य पूर्व, पश्चिम एशिया,यूरोप और दक्षिण एशियाई देशों समेत पूरी दुनिया के लिए आतंकवाद को सबसे बड़ा खतरा बताया है। यहां तक कहा है कि विकास और उद्योग की बातें तो बाद में भी की जा सकती है लेकिन आतंकवाद के सफाए की बात पहले होनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस बात में दम भी है। आतंकवाद की वजह से एशियाई देशों को धन-जन की कितनी हानि हो रही है, यह किसी से छिपा नहीं है। जरूरत इस बात की है कि आतंकवाद की फैक्ट्री बंद की जाए। हमारी समृद्धि के लिए आतंकवाद सबसे गंभीर खतरा है, यह बात ब्रिक्स देश भी बेहतर समझते हैं। यह अलग बात है कि चीन और रूस की अपनी मजबूरियां हैं। वे पाकिस्तान को ब्रिक्स  देशों के बीच अलग-थलग पड़ता नहीं देखना चाहते। वे हरगिज नहीं चाहते कि नरेंद्र मोदी  पाकिस्तान को आईना दिखाने की अपनी कोशिश में सफल हों।  इन दोनों ही देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने हालांकि नरेंद्र मोदी  से हाथ मिलाया है और आतंकवाद के सफाये के लिए भारत का साथ देने की बात कही है जबकि उन्हें यह हरगिज पसंद नहीं कि पाकिस्तान का नाम लिया जाए। नरेंद्र मोदी इस बात को बेहतर समझते हैं। इसलिए उन्होंने पाकिस्तान का नाम तो नहीं लिया लेकिन  उसे कहीं का छोड़ा भी नहीं। प्रकारांतर से पाकिस्तान को आतंकवाद की जन्मभूमि बता दिया। यह तो कह ही दिया  कि भारत के पड़ोस में आतंकवाद की जन्मभूमि है। दुनिया भर के टेरर माड्यूल्स इस देश से संचालित होते हैं। यह देश आतंकियों को संरक्षण भी देता है और आतंकी मंशा भी रखता है। आतंकवादी और उनके समर्थक सजा के हकदार हैं न कि इनाम के। मोदी पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेना ,भूटान के पीएम शेरिंग तोबगे, नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना से भी इस बावत बात कर चुके हैं। आतंकवाद पर चुनिंदा रवैया घातक है। ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका भी  इस राय के हैं कि आतंकवाद पर प्रतिबंध लगना चाहिए।
 बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टरल टेक्निकल एवं इकोनॉमिक कोऑपरेशन  के देश भारत, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, म्यांमार, थाईलैंड ओर श्रीलंका  भी चाहते हैं कि  आतंकवाद का कारोबार बंद हो लेकिन चीन और रूस भारत से सहयोग का वादा  करने के बाद भी पाकिस्तान का साथ छोड़ने को तैयार नहीं हैं। अलबत्ते आतंकवाद विरोधी साझा घोषणापत्र उम्मीद तो जगाता ही है।  रूस को भले ही यह लगता  हो कि पाकिस्तान पर थोड़ी कृपादृष्टि बनाए रखकर वह भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाए रख सकेगा तो यह उसकी भूल है। रूस दरअसल भारत- अमेरिकी संबंधों की संतुलित सीमा तय करना चाहता है। भारत और अमेरिका के बीच जिस तरह नजदीकियां बढ़ी हैं। आलम यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति  बराक ओबामा ने अपने भावी उत्तराधिकारी को सलाह दे दी है कि वह पद भार ग्रहण करने के बाद ही भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलें और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने तो यूएस में मोदी नीति लागू करने तक की बात कह दी हो। इसके पीछे मंतव्य जो भी हो लेकिन उसने रूस के दिन का चैन और रात की नींद जरूर छीन ली है। हालांकि गोवा में पुतिन और मोदी के बीच  हुए 16 समझौतों के बाद रूस की मानसिकता बदली है लेकिन उसके अभिकथन  पर आंख मूंदकर यकीन नहीं किया जा सकता। देखा जाए तो पाकिस्तान भी बड़ी तादाद में रूस से हथियार खरीदता है,ऐसे में रूस पाकिस्तान को किसी भी सूरत में अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहेगा। व्यापारी दिल से नहीं दिमाग से सोचता है। रूस को व्यापार करना है। ऐसे में वह भारत या पाक में से किसी एक देश की एक्जाई तरफदारी नहीं कर सकते। उन्हें यह भी पता है कि अगर ये दोनों देश शांत हो जाएं और विकास को तरजीह देने लगें तो उनके असलहों की बिक्री रुक जाएगी। चीन अगर आतंकवाद के नाम पर पाकिस्तान को अलग-थलग नहीं पड़ने देना चाहता तो उसके पीछे भी उसके अपने व्यापारिक और सामरिक हित है। बलूचिस्तान में बनने जा रहा उसका आर्थिक कारिडोर खटाई में पड़ सकता है। यह तो एक पक्ष है लेकिन दूसरा पक्ष यह है कि एशियाई देशों में जिस तरह भारत की पकड़ मजबूत हो रही है, उससे भी चीन डरा हुआ है। इसलिए भी वह पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध जाकर भी समर्थन देता रहता है। अमेरिका, फ्रांस और जापान से भारत की दोस्ती भी उसे रास नहीं आती। इसलिए वह भारत को चौतरफा घेरने में जुटा है। उसने बांग्लादेश में भारत से अधिक निवेश की घोषणा की है और भारत से कहा है कि वह चीन और बांग्लादेश की दोस्ती पर चिढ़े नहीं।  आतंकवाद तो एक दिन में खत्म हो जाए लेकिन हथियारों के सौदागर देश ऐसा चाहते नहीं। । प्रत्यक्ष तो वे आतंकवाद के खात्मे की बात करते हैं लेकिन  जब उन्हें लगता है कि इससे उनके अपने वजूद को कहीं कोई खतरा है, तभी वे कार्रवाई की बावत सोचते हैं।  चीन नहीं चाहता कि भारत अमेरिका के साथ जाए और रूस भी नहीं चाहता कि भारत अमेरिका का दोस्त बन जाए। अगर नरेंद्र मोदी ने यह कहा कि एक पुराना दोस्त दो नए दोस्तों से अधिक विश्वसनीय होता है तो इसके कूटनीतिक निहितार्थ सहज ही निकाले जा सकते हैं। अगर रूस संतुलन का खेल खेल रहा है तो भारत ने भी कच्ची कौड़ियां नहीं खेली हैं। वह भी नहले पर दहला रखना जानता है। पाकिस्तान का भरोसा इस समय चीन और रूस ही थे और रूस अगर भारत के पक्ष में बोल रहा है तो चीन  और पाक की परेशानी स्वाभाविक है। रूसी एस-400 मिसाइल को लेकर हुए करार के बाद रूस की कथित दोस्ती पर इतरा रहे पाकिस्तान को झटका लगा है। भारत सही मुकीम पर है। उसे अपने लोगों की सुरक्षा व्यक्तिगत  और सामूहिक स्तर पर लड़ते रहना चाहिए। वह दिन दूर नहीं, जब पाकिस्तान अपनी ही नजरों में गिर जाएगा और दुनिया के देशों से आंखें मिला पाना उसके लिए कठिन हो जाएगा। अभी तो यह आगाज है, अंजाम के लिए इंतजार तो करना ही चाहिए।
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