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  यूपीः त्रिशंकु रही विधानसभा तो इन 5 विकल्पों से ही बन पाएगी सरकार

लखनऊ। यूपी में एग्जिट पोल के नतीजों ने असली नतीजों को लेकर बेचैनी बढ़ा दी है। एग्जिट पोल से जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं उससे सभी दलों की धुकधुकी बढ़ गई है, जिसकी बड़ी वजह है किसी भी गठबंधन या पार्टी को पूर्ण बहुमत न मिलना।

एग्जिट पोल के नतीजों को ही अगर आने वाले परिणामों का संकेत मानें तो साफ है कि यूपी में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी तो हो सकती है लेकिन बहुमत की दहलीज पार करना उसके लिए भी मुश्किल नजर आ रहा है। ऐसे में यूपी में त्रिशंकु विधानसभा के साफ संकेत दिखाई दे रहे हैं।

इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि सपा-कांग्रेस गठबंधन दूसरे नंबर पर रहकर भी भाजपा को कड़ी टक्कर देता दिख रहा है। इसके अलावा बसपा तीसरे नंबर पर होने के बावजूद भी बहुत ज्यादा घाटे में जाती नहीं दिख रही है।

अगर ये कयास सही साबित हुए तो साफ है कि दशकभर बाद एक बार फिर राज्य में त्रिशंकु विधानसभा के आसार बनते दिख रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि अगर ऐसा हुआ तो राज्य में सरकार बनने के क्या विकल्प हो सकते हैं, आइए तो एक बार उन विकल्‍पों पर भी निगाह डाल लेते हैं।

भाजपा संग रालोद 
एग्जिट पोल के ज्यादातर नतीजों में भाजपा को 180-190 सीटें मिलने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में भाजपा को बहुमत के लिए 10-20 सीटों की ही जरूरत पड़ेगी। इस स्थिति में भाजपा की पहली पसंद रालोद ही हो सकता है जिसे पोल में दस के आसपास सीटें मिलने की उम्‍मीद जताई जा रही है।

कुछ कम रहने पर भाजपा निर्दलीयों का भी सहयोग ले सकती है। भाजपा रालोद गठबंधन इसलिए भी आसान दिखाई दे रहा है कि पूर्व में भी अजित सिंह भाजपा के साथ साझेदारी कर चुके हैं। हालांकि इसके लिए वह राज्यसभा सीट और केंद्र में मंत्री पद जैसी डिमांड कर सकते हैं।

भाजपा संग बसपा 
अगर बहुमत का आंकडा ज्यादा दूर रहता है और भाजपा 160 के आसपास सीटें लेकर भी सबसे बड़ी पार्टी बनती है तो उसके लिए अंतिम सहारा मायावती की बसपा ही होगी। पूर्व में भी भाजपा और बसपा का गठबंधन रह चुका है। भाजपा के सहयोग से मायावती दो बार मुख्यमंत्री बनी हैं ऐसे में यह गठबंधन भी मुश्किल नहीं दिखाई देता।

हालांकि मायावती इस तरह के किसी भी गठबंधन से पूरी तरह इंकार कर चुकी हैं, लेकिन राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है ये भी सबसे बड़ी हकीकत है। हालांकि इस गठबंधन में एक शर्त ये भी हो सकती है कि मायावती सरकार से बाहर रहकर ही भाजपा को समर्थन करे। जिससे उसके पास मोलभाव और सरकार को दबाव में लेने के ज्यादा मौके रहेंगे।

सपा-कांग्रेस संग बसपा

नतीजे आने से पहले ही इस गठबंधन के संकेत मिलने लगे हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने एग्जिट पोल के नतीजे आते ही इस बात के संकेत दिए थे। बकौल अखिलेश वो भाजपा को रोकने के लिए किसी से भी हाथ मिला सकते हैं बसपा से भी। खास बात ये है कि अखिलेश के इस प्रस्ताव पर मायावती ने भी इंकार नहीं किया है, माना जा रहा है कि वो सारे रास्ते खुले रखना चाहती हैं। पूर्व में भी सपा-बसपा का यह गठबंधन प्रदेश में सरकार बना चुका है, हालांकि गेस्ट हाउस कांड के बाद दोनों दलों की राहें जुदा हो गई थीं। वहीं इस गठबंधन के लिए नितीश कुमार और अन्य नेताओं ने अभी से प्रयास शुरू कर दिए हैं।

सपा कांग्रेस प्लस रालोद बसपा 
सपा कांग्रेस गठबंधन सीटों के गणित में सबसे आगे रहकर भी अगर बहुमत से चूक जाता है तो वह रालोद और निर्दलीयों के साथ मिलकर भी सरकार बना सकती है। हालांकि ऐसा उसी स्थिति में हो सकता है जब बहुमत के लिए बहुमत ज्यादा सीटों की जरूरत न हो। क्योंकि एग्जिट पोल के संकेतों से भी साफ है कि रालोद सीटों के गणित में बहुत आगे नहीं निकल पाएगी। ऐसे में थोड़ा थोड़ा करके भी सपा कांग्रेस गठबंधन बहुमत की दहलीज पार करने का प्रयास कर सकता है।

राष्ट्रपति शासन 
‌त्रिशंकु विधानसभा रहने की स्थिति में पांचवा और सबसे अंतिम विकल्प है राष्ट्रपति शासन। भाजपा अगर सरकार बनाने में असफल रहती है तो वो पूरा प्रयास करेगी कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। केंद्र में भाजपा की सरकार होने के कारण राष्ट्रपति शासन लगने पर राज्य में भी अपरोक्ष रूप से उसका शासन रहेगा। हालांकि इस बात की उम्‍मीद कम ही की जा रही है। उसकी बड़ी वजह ये है कि अन्य दल भी हर हाल में राज्य को इस स्थिति से रोकने के लिए पूरा प्रयास करेंगे।

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