Saturday , April 27 2024

श्रेष्ठ है भगवान शिव का पञ्चाक्षरी मन्त्र – “ॐ नमः शिवाय”

वेदों और पुराणों में वर्णित जो सर्वाधिक प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण मन्त्र हैं, उनमे से श्रेष्ठ है भगवान शिव का पञ्चाक्षरी मन्त्र – “ॐ नमः शिवाय”। इसे कई सभ्यताओं में महामंत्र भी माना गया है। ये पंचाक्षरी मन्त्र, जिसमे पाँच अक्षरों का मेल है, संसार के पाँच तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है जिसके बिना जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं है। ॐ नमः शिवाय का मूल अर्थ है “भगवान शिव को नमस्कार”, तो अगर एक प्रकार से देखें तो इस मन्त्र का अर्थ बहुत ही सरल है, ठीक उसी तरह जिस प्रकार भोलेनाथ को समझना बहुत सरल है। साथ ही साथ ये मन्त्र उतना ही महत्वपूर्ण और शक्तिशाली है जितने महादेव। इसे पञ्चाक्षरी मन्त्र इसी लिए कहते हैं क्यूंकि श्री रुद्रम चमकम (कृष्ण यजुर्वेद) एवं रुद्राष्टाध्यी (शुक्ल यजुर्वेद) के अनुसार ये पाँच अक्षरों से मिलकर बना है:
  1. न – पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करने वाला (ईश्वर के गुप्त रखने की शक्ति)
  2. मः – जल का प्रतिनिधित्व करने वाला (संसार के दूसरा रूप)
  3. शि – अग्नि का प्रतिनिधित्व करने वाला (स्वयं शिव का अंश)
  4. वा – वायु का प्रतिनिधित्व करने वाला (ईश्वरीय अनुग्रह की शक्ति)
  5. य – आकाश का प्रतिनिधित्व करने वाला (आत्मा का अनन्य रूप)
अन्य मन्त्रों की तरह इसके जाप का कोई विशेष विधान नहीं है, हालाँकि अगर इसका जाप १०८ बार किया जाये तो अति शुभ होता है। शिव पुराण में कहा गया है कि इस मन्त्र की उत्पत्ति स्वयं महादेव ने प्राणिमात्र के सभी दुखों का नाश करने के लिए किया था। इस मन्त्र को सभी मन्त्रों का बीज भी कहा गया है। स्वयं परमपिता ब्रह्मा ने कहा है कि “सात करोड़ महामन्त्रों और असंख्य उपमंत्रों से ये मन्त्र उसी प्रकार भिन्न है जिस प्रकार वृत्ति से सूत्र।” स्कन्द पुराण में कहा गया है कि:
किं तस्य बहुभिर्मन्त्रै: किं तीर्थै: किं तपोऽध्वरै:।
यस्यो नम: शिवायेति मन्त्रो हृदयगोचर:।।
अर्थात्: “जिसके हृदय में ‘ॐ नम: शिवाय’ मन्त्र निवास करता है, उसके लिए बहुत-से मन्त्र, तीर्थ, तप और यज्ञों की क्या आवश्यकता है!”
शास्त्रों में ये भी कहा गया है कि महिलाओं को ॐ नमः शिवाय की जगह “ॐ शिवाय नमः” मन्त्र का जाप करना चाहिए। इसे भी पंचाक्षरी मन्त्र ही माना गया है। अगर इस मन्त्र का जाप रुद्राक्ष की माला के साथ किया जाये तो ये अत्यंत फलदायी होता है क्यूंकि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भी महारुद्र के आँखों से ही हुई है। शैव संप्रदाय के अनुसार ॐ नमः शिवाय केवल एक महामंत्र नहीं बल्कि ये एक पूरा पंथ है। कई जगह इसमें मतभेद है कि ॐ नमः शिवाय पञ्च अक्षरों का नहीं बल्कि ॐ के साथ मिला कर छः अक्षरों का बन जाता है लेकिन विद्वानों का ये कहना है कि “ॐ” स्वयं में सम्पूर्ण है जो परमात्मा का रूप है इसी लिए इसे केवल एक अक्षर के रूप में नहीं देखा जा सकता। इस मन्त्र की सबसे बड़ी बात ये है कि इसका जाप ब्राह्मण अथवा शूद्र कोई भी कर सकता है। कहा जाता है कि जो कोई भी पीपल के वृक्ष को छूकर पंचाक्षरी मन्त्र का जाप करता है उसकी कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती है। साथ ही भोजन से पहले ११ बार पंचाक्षरी मन्त्र के जाप से भोजन भी अमृत बन जाता है। 
जब सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा और नारायण का प्राकट्य हुआ तब अपने आप को जानने के लिए उन्होंने प्रश्न करना आरम्भ किया। तब महादेव एक अग्निलिंग के रूप में प्रकट हुए और उन्हें तप करने के लिए कहा। तब महादेव की स्तुति करते हुए ब्रह्मदेव और विष्णुदेव ने प्रथम “ॐ नमः शिवाय” इस पंचाक्षरी मन्त्र का उद्घोष किया। यही कारण है कि इसे आदिमन्त्र भी माना जाता है। आदि शंकराचार्य ने पञ्चाक्षरी मन्त्र के विवरण स्वरुप “श्री शिव पञ्चाक्षर स्त्रोत्र” की रचना की, जिसे स्वयं शिवस्वरूप माना जाता है। इस स्त्रोत्र के बारे में पूरी जानकारी अन्य लेख में दी जाएगी। ॐ नमः शिवाय।।
E-Paper

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com