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भारत ने मसूद अजहर के प्रतिबंध पर UNSC को सुनाई खरी-खोटी

maनई दिल्ली।संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) द्वारा आंतकियों पर प्रतिबंध लगाने में देरी को लेकर भारतीय उच्चायोग ने काउंसिल को खरी-खोटी सुनाई है।

भारत द्वारा आतंकी संगठन करार दिए गए समूहों के नेताओं पर प्रतिबंध लगाने की मांग कई दिनों से की जा रही थी। लेकिन अभी तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा इस मुद्दे पर कोई ठोस फैसला न लिए जाने का भारत ने कड़ा विरोध किया है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने सोमवार को यह कहते हुए आतंकवादी संगठनों के नेताओं पर प्रतिबंध लगाने में विफलता पर परिषद को लताड़ते हुए कहा कि सुरक्षा परिषद अपने ही समय के जाल और सियासत में फंस गई है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद पर भड़के भारतीय राजनयिक 

सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि सुरक्षा परिषद अपने ही समय के जाल और सियासत में फंस गई है। उन्होंने कहा कि जहां हर दिन इस या उस क्षेत्र में आतंकवादी हमारी सामूहिक अंतरात्मा आहत करते हैं, सुरक्षा परिषद ने इसपर विचार करने में नौ माह लगाए कि क्या अपने ही हाथों आतंकवादी इकाई करार दिए गए संगठनों के नेताओं पर प्रतिबंध लगाया जाए या नहीं। अकबरुद्दीन सुरक्षा परिषद के समतामूलक प्रतिनिधित्व और सदस्यता में वृद्धि पर आयोजित एक सत्र को संबोधित करते हुए यह वक्तव्य दिया

भारतीय राजनयिक ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की धीमी प्रतिक्रिया पर निराशा जताते हुए कहा कि मौजूदा वैश्विक हालात के प्रति बेरुख विश्व निकाय में तुरंत सुधार के लिए गतिरोध भंग करने का यह वक्त है।

उन्होंने रेखांकित किया कि इस साल मानवीय स्थितियों, आतंकवादी खतरों और शांतिरक्षण की समस्याओं के प्रति कदम उठाने में अक्षमता अहम मामलों में प्रगति करने में विश्व समुदाय की कमी की कीमत का हिस्सा हैं जिसे चुकाया जा रहा है। उन्होंने कहा, सीरिया जैसे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अहम मुद्दों और दक्षिण सूडान जैसे शांतिरक्षण संकट जैसे अन्य हालात से निबटने में हमने खंडित कार्रवाई देखी जिन्हें सहमति के महीनों बाद भी लागू नहीं किया गया।

सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि ऐसा कहा जा सकता है कि समय और सियासत के अपने ही जाल में उलझी सुरक्षा परिषद तदर्थवाद और राजनीतिक पंगुता के आधार पर जैसे तैसे काम कर रही है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधार पर चर्चाओं का अंतहीन सिलसिले से अंतरराष्ट्रीय समुदाय अचंभित है क्योंकि इसके महत्व और तात्कालिकता के बावजूद सुरक्षा परिषद के अहम सुधार में देर की जा रही है।

अकबरुद्दीन ने कहा, सत्तर साल पहले तय की गई इसकी सदस्यता, खास कर स्थाई श्रेणी में प्रतिनिधित्व की कमी इसकी वैधता और साख की कमी में इजाफा करती है। उन्होंने उम्मीद जताई कि मौजूदा संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष पीटर थामसन के कार्यकाल में सुधार को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया होगी।

आपको बता दें कि अभी हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र के समक्ष पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने की आवाज उठाई थी।

हालांकि, भारत की इस कोशिश पर तकनीकी आधार में खटाई पड़ गई थी। चीन ने भारत की इस मांग पर तकनीकी रूप से स्थगन लगा दिया था। छह महीने का यह स्थगन सितम्बर माह में ही ख़त्म हो गया था। हालांकि इसके बाद से चीन भारत की इस मांग कपर तीन महीने का फिर स्थगन चाह रहा है। वहीं संयुक्त राष्ट्र भी भारत की इस मांग पर कछुए की चाल से चलता नजर आ रहा है।

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