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एक तो करेला दूसरे नीम चढ़ा। पहले से ही आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक मोर्चे पर खस्ताहाल पाकिस्तान की अपने कर्मों के चलते दुश्वारियां बढ़ गई हैं। मनी लांडरिंग और आतंकी संगठनों के वित्त पोषण जैसी गतिविधियों पर लगाम लगाने में असमर्थ रहने के चलते इसे फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे सूची में डाल दिया गया है। इससे पाकिस्तान में गंभीर वित्तीय संकट खड़ा हो सकता है। अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है। दूसरों से कर्ज लेकर घी पीने वाले इस पड़ोसी को ऋण मिलना कठिन हो सकता है। देश में कारोबार करना महंगा हो सकता है। मुश्किलों की फेहरिस्त लंबी है। चंद महीने बाद होने जा रहे आम चुनावों से ठीक पहले उठने वाला यह कठोर वैश्विक कदम पाकिस्तान के लिए ठीक संकेत नहीं है। पाक मीडिया ने कोसा पाकिस्तान को खुद अपने ही देश की मीडिया की आलोचना झेलनी पड़ रही है। पाकिस्तानी अखबारों में छपे संपादकीयों में कहा गया है कि संदिग्धों की सूची में जाने के लिए कोई और नहीं बल्कि खुद पाकिस्तान ही जिम्मेदार है। इन लेखों में कहा गया है कि अगर देश में आतंकी खुलेआम घूमे, संगठित हों, फंड जुटाएं और चुनावी प्रक्रिया में शामिल हो जाएं तो ग्रे लिस्ट में शामिल होने की ही आशा रहती है। पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार डॉन के संपदाकीय में इसके पीछे भारत को एक बड़ी वजह बनाया गया है। इसके अलावा द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के संपादकीय में कहा गया है, 'यह भारत या अमेरिका का कोई छिपा प्लान नहीं है बल्कि बड़ी संख्या में दुनियाभर के देश यही मानते हैं...FATF के सदस्यों देशों के पास सूचना का अपना स्रोत है और वे पाकिस्तान को अपने लिए भरोसेमंद नहीं मानते हैं। इसके अलावा द नेशन का कहना है कि यह पूरी तरह से पाकिस्‍तान की ही गलती है। इसके अलावा अखबार ने पाक सरकार को जिम्‍मेदार ठहराया है।

पाकिस्‍तान की चरमराई अर्थव्‍यवस्‍था की कमर तोड़ सकता है FATF का फैसला

एक तो करेला दूसरे नीम चढ़ा। पहले से ही आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक मोर्चे पर खस्ताहाल पाकिस्तान की अपने कर्मों के चलते दुश्वारियां बढ़ गई हैं। मनी लांडरिंग और आतंकी संगठनों के वित्त पोषण जैसी गतिविधियों पर लगाम लगाने में असमर्थ रहने के चलते इसे फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे सूची में डाल दिया गया है। इससे पाकिस्तान में गंभीर वित्तीय संकट खड़ा हो सकता है। अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है। दूसरों से कर्ज लेकर घी पीने वाले इस पड़ोसी को ऋण मिलना कठिन हो सकता है। देश में कारोबार करना महंगा हो सकता है। मुश्किलों की फेहरिस्त लंबी है। चंद महीने बाद होने जा रहे आम चुनावों से ठीक पहले उठने वाला यह कठोर वैश्विक कदम पाकिस्तान के लिए ठीक संकेत नहीं है।एक तो करेला दूसरे नीम चढ़ा। पहले से ही आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक मोर्चे पर खस्ताहाल पाकिस्तान की अपने कर्मों के चलते दुश्वारियां बढ़ गई हैं। मनी लांडरिंग और आतंकी संगठनों के वित्त पोषण जैसी गतिविधियों पर लगाम लगाने में असमर्थ रहने के चलते इसे फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे सूची में डाल दिया गया है। इससे पाकिस्तान में गंभीर वित्तीय संकट खड़ा हो सकता है। अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है। दूसरों से कर्ज लेकर घी पीने वाले इस पड़ोसी को ऋण मिलना कठिन हो सकता है। देश में कारोबार करना महंगा हो सकता है। मुश्किलों की फेहरिस्त लंबी है। चंद महीने बाद होने जा रहे आम चुनावों से ठीक पहले उठने वाला यह कठोर वैश्विक कदम पाकिस्तान के लिए ठीक संकेत नहीं है।  पाक मीडिया ने कोसा  पाकिस्तान को खुद अपने ही देश की मीडिया की आलोचना झेलनी पड़ रही है। पाकिस्तानी अखबारों में छपे संपादकीयों में कहा गया है कि संदिग्धों की सूची में जाने के लिए कोई और नहीं बल्कि खुद पाकिस्तान ही जिम्मेदार है। इन लेखों में कहा गया है कि अगर देश में आतंकी खुलेआम घूमे, संगठित हों, फंड जुटाएं और चुनावी प्रक्रिया में शामिल हो जाएं तो ग्रे लिस्ट में शामिल होने की ही आशा रहती है। पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार डॉन के संपदाकीय में इसके पीछे भारत को एक बड़ी वजह बनाया गया है। इसके अलावा द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के संपादकीय में कहा गया है, 'यह भारत या अमेरिका का कोई छिपा प्लान नहीं है बल्कि बड़ी संख्या में दुनियाभर के देश यही मानते हैं...FATF के सदस्यों देशों के पास सूचना का अपना स्रोत है और वे पाकिस्तान को अपने लिए भरोसेमंद नहीं मानते हैं। इसके अलावा द नेशन का कहना है कि यह पूरी तरह से पाकिस्‍तान की ही गलती है। इसके अलावा अखबार ने पाक सरकार को जिम्‍मेदार ठहराया है।

पाक मीडिया ने कोसा 
पाकिस्तान को खुद अपने ही देश की मीडिया की आलोचना झेलनी पड़ रही है। पाकिस्तानी अखबारों में छपे संपादकीयों में कहा गया है कि संदिग्धों की सूची में जाने के लिए कोई और नहीं बल्कि खुद पाकिस्तान ही जिम्मेदार है। इन लेखों में कहा गया है कि अगर देश में आतंकी खुलेआम घूमे, संगठित हों, फंड जुटाएं और चुनावी प्रक्रिया में शामिल हो जाएं तो ग्रे लिस्ट में शामिल होने की ही आशा रहती है। पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार डॉन के संपदाकीय में इसके पीछे भारत को एक बड़ी वजह बनाया गया है। इसके अलावा द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के संपादकीय में कहा गया है, ‘यह भारत या अमेरिका का कोई छिपा प्लान नहीं है बल्कि बड़ी संख्या में दुनियाभर के देश यही मानते हैं…FATF के सदस्यों देशों के पास सूचना का अपना स्रोत है और वे पाकिस्तान को अपने लिए भरोसेमंद नहीं मानते हैं। इसके अलावा द नेशन का कहना है कि यह पूरी तरह से पाकिस्‍तान की ही गलती है। इसके अलावा अखबार ने पाक सरकार को जिम्‍मेदार ठहराया है।

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