“नोएडा अथॉरिटी के डीजीएम बीके रावल पर एनओसी रोकने, रिश्वत लेने और ठेकेदारों से मिलीभगत कर बड़े ठेके देने के गंभीर आरोप। भ्रष्टाचार की शिकायत मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंची।”
मनोज शुक्ल (सत्ता के गलियारे से)
लखनऊ /नोएडा। नोएडा अथॉरिटी में भ्रष्टाचार के मामलों ने एक बार फिर से हलचल मचा दी है। इस बार निशाने पर हैं डीजीएम बीके रावल, जिन पर करोड़ों के घोटाले और ठेकेदारों के साथ मिलीभगत के आरोप हैं। रावल पर आरोप है कि उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग कर न केवल मनचाहे ठेके दिए, बल्कि एनओसी के नाम पर रिश्वत लेकर उद्यमियों को परेशान किया।
यादव सिंह से बड़ा भ्रष्टाचार?
नोएडा अथॉरिटी का नाम पहले भी भ्रष्टाचार के मामलों में बदनाम रहा है। यादव सिंह जैसे अधिकारियों ने पहले बड़े घोटालों को अंजाम दिया था। लेकिन बीके रावल पर लगे आरोप यादव सिंह को भी पीछे छोड़ते नजर आ रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, रावल ने ठेकेदारों के साथ सांठगांठ कर मनचाहे ठेके देकर अथॉरिटी को भारी नुकसान पहुंचाया।
मुख्य तथ्य:
- मनचाहे ठेके: रावल पर आरोप है कि उन्होंने ठेकेदारों से मोटी रकम लेकर ठेके दिए।
- अवैध संपत्तियां: नोएडा में रावल के नाम से जुड़े कई बड़े प्लांट और आलीशान मकान हैं।
- एनओसी में रिश्वतखोरी: उद्यमियों और निवेशकों ने आरोप लगाया है कि एनओसी देने के बदले लाखों रुपये की रिश्वत ली गई।
स्थानांतरण के बावजूद पद पर काबिज
चौंकाने वाली बात यह है कि बीके रावल का स्थानांतरण करीब एक साल पहले हो चुका है। इसके बावजूद वह रिलीव नहीं किए गए और अब भी डीजीएम के पद पर काम कर रहे हैं।
विभागीय जांच: रावल के खिलाफ चल रही विभागीय जांच भी इस मामले को और गंभीर बनाती है।
सीईओ से नजदीकियां: रावल को नोएडा अथॉरिटी के सीईओ एम. लोकेश का करीबी बताया जा रहा है। यह उनके खिलाफ कार्रवाई में देरी का एक प्रमुख कारण हो सकता है।
एनओसी का खेल
- नोएडा अथॉरिटी के निवेशकों और उद्यमियों की एनओसी फाइलें महीनों से अटकी हुई हैं।
- मुख्यमंत्री कार्यालय में शिकायतें: उद्यमियों ने मुख्यमंत्री कार्यालय को इस बारे में कई बार शिकायत की है।
- रिश्वतखोरी के सबूत: उद्यमियों ने आरोप लगाया कि रावल एनओसी देने के बदले लाखों रुपये की मांग करते हैं।
रावल की अवैध संपत्तियां
सूत्रों के अनुसार, रावल के नाम पर या उनके करीबियों के नाम पर कई अवैध संपत्तियां हैं। इनमें बड़े प्लांट और नोएडा में आलीशान मकान शामिल हैं।
शान-शौकत का जीवन: रावल के रहन-सहन और संपत्तियों का स्तर उनकी आय से मेल नहीं खाता।
ठेकेदारों के साथ सांठगांठ: कई ठेकेदारों ने रावल को ठेकों में भागीदारी दी है।
मुख्यमंत्री कार्यालय की भूमिका
इस पूरे मामले ने राजनीतिक स्तर पर भी हलचल मचाई है। मुख्यमंत्री कार्यालय को दी गई शिकायतों में रावल के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है।
कठोर कदम की मांग: निवेशकों और उद्यमियों का कहना है कि अगर रावल के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह भ्रष्टाचार और बढ़ेगा।
जांच की मांग: लोगों ने मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।
नोएडा अथॉरिटी का यह मामला केवल भ्रष्टाचार का एक उदाहरण नहीं, बल्कि सिस्टम में व्याप्त अनियमितताओं की ओर भी इशारा करता है। डीजीएम बीके रावल के खिलाफ आरोपों की निष्पक्ष जांच कर, दोषियों पर सख्त कार्रवाई जरूरी है।
यह मामला नोएडा अथॉरिटी की साख और प्रदेश सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति की परीक्षा है।
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विशेष संवाददाता – मनोज शुक्ल