“RSS के मुखपत्र “Organiser” ने हालिया मंदिर-मस्जिद विवादों पर इसे सभ्यतागत न्याय और ऐतिहासिक सच जानने की लड़ाई बताया। RSS प्रमुख मोहन भागवत ने नई विवादों से बचने की सलाह दी थी। धर्माचार्यों ने भी भागवत के बयान पर असहमति जताई।”
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मुखपत्र “Organiser” और संघ प्रमुख मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर दिए गए बयानों में मतभेद सामने आया है। जहां एक ओर मोहन भागवत ने 19 दिसंबर को पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि “नए विवादों को जन्म देना सही नहीं है,” वहीं RSS के मुखपत्र ने इसे “सभ्यतागत न्याय” की लड़ाई बताया है।
भागवत का बयान:
RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, “राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोग नए मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं। हर दिन एक नया विवाद खड़ा करना ठीक नहीं है। भारत को यह दिखाना होगा कि हम सभी समुदायों के साथ एकजुट होकर रह सकते हैं।”
भागवत ने यह भी कहा कि धर्म की सही शिक्षा और समझ बहुत महत्वपूर्ण है। धर्म का अधूरा ज्ञान लोगों को गलत मार्ग पर ले जाता है और यह अधर्म का कारण बनता है। उन्होंने धर्म को सत्य और समाज को जोड़ने वाला बताया।
RSS मुखपत्र का विरोधाभासी संपादकीय:
RSS के अंग्रेजी मुखपत्र “Organiser” ने हालिया मंदिर-मस्जिद विवादों को ऐतिहासिक सच जानने और सभ्यतागत न्याय की लड़ाई करार दिया। संपादकीय में लिखा गया कि,
“सोमनाथ से संभल और उससे आगे का संघर्ष केवल धार्मिक वर्चस्व का नहीं है। यह हमारी राष्ट्रीय पहचान की पुनःस्थापना और ऐतिहासिक सत्य को उजागर करने की प्रक्रिया है।”
मुखपत्र ने कहा कि भारतीय मुसलमानों को यह समझने की जरूरत है कि वे हमलावर आक्रमणकारियों के वंशज नहीं, बल्कि उनके पूर्वज हिंदू थे। इस तरह की सोच से धार्मिक कटुता कम हो सकती है और समाज में शांति और सामंजस्य बढ़ सकता है।
मुसलमानों को लेकर टिप्पणी:
“Organiser” ने लिखा कि कांग्रेस और वामपंथी इतिहासकारों ने आक्रमणकारियों के पाप छिपाने की कोशिश की। उन्होंने गलत धारणा बनाई कि भारतीय मुसलमान पूर्व के शासकों के उत्तराधिकारी हैं। इसने न केवल ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा, बल्कि सांप्रदायिक तनाव भी बढ़ाया।
संपादकीय में यह भी कहा गया कि,
“भारतीय मुसलमानों को अपने अतीत से जुड़ी सच्चाई को समझकर आक्रमणकारियों से खुद को अलग करना चाहिए। यह समझ सामंजस्यपूर्ण भविष्य का मार्ग प्रशस्त करेगी।”
धर्माचार्यों का असहमति भरा रुख:
RSS प्रमुख के बयानों पर कई धार्मिक नेताओं ने असहमति जताई।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य:”
जहां भी मंदिर के अवशेष मिल रहे हैं, उन्हें पुनः संरक्षित किया जाएगा। मोहन भागवत संघ प्रमुख हैं, लेकिन वे हमारे मार्गदर्शक नहीं हैं। धर्म के मुद्दों पर धर्माचार्यों की बात मानी जानी चाहिए।”
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद:
उन्होंने भागवत के बयानों को “राजनीतिक सुविधा के अनुसार दिए गए बयान” करार दिया। उन्होंने कहा कि सत्ता प्राप्ति के समय मंदिरों की बात होती थी और अब सत्ता मिलने के बाद इस पर नए विवाद खड़े करने से बचने की सलाह दी जा रही है।
स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती:
“मंदिर विवाद पर अंतिम निर्णय धार्मिक गुरुओं का होना चाहिए। धर्म का मसला केवल धार्मिक नेताओं द्वारा सुलझाया जा सकता है।”
नए विवाद और भविष्य की चुनौती:
उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर संभल में श्री हरिहर मंदिर के अवशेष मिलने के बाद जामा मस्जिद में सर्वे की मांग ने नए विवाद को जन्म दिया। इसे लेकर संविधान, धर्मनिरपेक्षता, और ऐतिहासिक तथ्यों पर बहस छिड़ गई है।
Organiser ने इसे एक “सभ्यतागत न्याय” की जरूरत बताया और कहा कि समाज को धर्मनिरपेक्षता की “झूठी बहस” से बचाकर सच्चाई स्वीकारनी चाहिए।
समाप्ति पर विचार:
मंदिर-मस्जिद विवाद केवल धार्मिक और राजनीतिक विषय नहीं, बल्कि सभ्यता, इतिहास और न्याय की जटिलताओं को दर्शाता है। भागवत और Organiser के विचारों में मतभेद इस मुद्दे की गहराई और संभावित सामाजिक प्रभाव को दर्शाते हैं।
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विशेष संवाददाता – मनोज शुक्ल