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महाकुम्भ में शैव, वैष्णव और उदासीन अखाड़ों का संगम, विविधता में एकता का संदेश

महाकुम्भ 2025: पौष पूर्णिमा से शुरू हुआ सनातन के एकता का महापर्व

महाकुम्भ नगर। महाकुम्भ 2025 की शुरुआत भारत की सनातन परंपरा के अद्वितीय उद्घोष के रूप में हुई, जिसने विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक समागम का शंखनाद किया। महाकुम्भ का संदेश “अनेकता में एकता” को लेकर पूरी दुनिया में प्रसारित हो रहा है।;;;

महाकुम्भ केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आस्था और अध्यात्म का मिलाजुला दृश्य है, जिसमें शैव, वैष्णव और उदासीन अखाड़ों का संगम होता है।

महाकुम्भ में शैव परंपरा के अंतर्गत सात अखाड़े, वैष्णव परंपरा से जुड़े तीन अखाड़े और उदासीन सम्प्रदाय की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाले श्री पंचायती अखाड़े और नया उदासीन अखाड़ा निर्वाण शामिल हैं। यहां के आचार्य और गुरु सभी अखाड़ों को एक साथ लेकर विविधता में एकता का संदेश देते हैं।

महाकुम्भ में पौष पूर्णिमा से शुरू हुई कल्पवास की परंपरा ने असमानता और जातिगत भेदभाव को खत्म किया है।

स्वामी सहजानंद सरस्वती के अनुसार, महाकुम्भ एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि एक संस्कृतिपरक महापर्व है जो वसुधैव कुटुंबकम् के विचार के साथ सभी जातियों, वर्गों और धर्मों को एकता की ओर ले जाता है। इस महाकुम्भ में जातीय भेदभाव पूरी तरह से अप्रासंगिक हो गए हैं और यहां सभी जातियों के लोग एक साथ पुण्य की डुबकी लगाने आते हैं।

महाकुम्भ में जातीय भेदभाव की समाप्ति का उदाहरण देखा जा सकता है जहां तंबुओं में रहने वाले कल्पवासी और अभिजात्य वर्ग के लोग एक साथ पुण्य अर्जित करने के लिए आते हैं। महाकुम्भ का संदेश यह है कि व्यक्ति नहीं, समष्टि का पर्व है और यही संदेश एकता और समन्वय का प्रतीक बनता है।

महाकुम्भ में हर शिविर और आयोजन में ‘विश्व का कल्याण हो’ और ‘प्राणियों में सद्भावना हो’ का उद्घोष किया जाता है। आचार्य स्वामी अरुण गिरी के अनुसार, महाकुम्भ का हर आयोजन न केवल पूजा या प्रार्थना का अवसर है, बल्कि यह सामाजिक सरोकारों, पर्यावरण और समाज के कल्याण के लिए भी एक मंच है। पहली बार अखाड़ों ने पर्यावरण प्रदूषण पर भी चिंता जताई और इसे अपनी बैठकों और यात्रा में शामिल किया।

महाकुम्भ 2025 एक ऐसा अद्भुत आयोजन बन गया है, जो दुनिया को एकता, शांति और मानवता का संदेश दे रहा है।

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