“महाकुंभ-2025 प्रयागराज में 15 हजार से अधिक ग्रामीण महिलाओं के लिए आजीविका का नया जरिया बना। गोबर के उपले और मिट्टी के चूल्हों की बढ़ती मांग ने गांवों की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया।”
महाकुंभनगर। महाकुंभ-2025, जो जनवरी से फरवरी के बीच प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर आयोजित होने वाला है, न केवल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि हजारों ग्रामीण परिवारों के लिए आजीविका का जरिया भी बन गया है। इस बार गोबर के उपलों और मिट्टी के चूल्हों की बढ़ती मांग ने स्थानीय महिलाओं के लिए आर्थिक अवसर पैदा किए हैं।
ग्रामीण महिलाओं की बदली जिंदगी
महाकुंभ नगर के अंतर्गत आने वाले 67 गांवों की 15 हजार से अधिक महिलाएं गोबर के उपले और मिट्टी के चूल्हे बनाने में जुटी हुई हैं। हेतापट्टी गांव की सावित्री बताती हैं,
“पिछले एक महीने से महाकुंभ में शिविर लगाने वाली संस्थाओं से उपलों के ऑर्डर मिल रहे हैं।”
वहीं, सीमा नामक महिला ने बताया कि उनके पास 7 हजार मिट्टी के चूल्हों का ऑर्डर पहले ही आ चुका है। ये चूल्हे खासतौर पर कल्पवासियों और साधु-संतों के भोजन पकाने के लिए बनाए जा रहे हैं।
मेला प्रशासन के नए नियम और बढ़ती मांग
मेला प्रशासन ने हीटर और छोटे एलपीजी सिलेंडरों के उपयोग पर रोक लगा दी है। इससे पारंपरिक ईंधन जैसे उपले और मिट्टी के चूल्हों की मांग तेजी से बढ़ी है। तीर्थ पुरोहित संकटा तिवारी कहते हैं,
“कल्पवासियों की प्राथमिकता पवित्रता और परंपरा होती है। उपलों पर बना भोजन धार्मिक दृष्टि से अधिक उपयुक्त माना जाता है।”
मेला क्षेत्र में 10 हजार से अधिक संस्थाओं और 7 लाख कल्पवासियों के आने की उम्मीद है।
स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ
महाकुंभ के कारण गंगा-यमुना किनारे बसे गांवों में पारंपरिक ईंधन बाजार पनप रहा है। यह न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी वरदान साबित हो रहा है।
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