प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट के चर्चित जज जस्टिस शेखर यादव की बेंच बदलने की खबर ने न्यायपालिका और राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।
हाईकोर्ट प्रशासन ने देर शाम जारी किए गए नए रोस्टर में जस्टिस शेखर यादव को मौजूदा आपराधिक मामलों की सुनवाई से हटाकर सिविल मामलों की फर्स्ट अपील, वह भी 2010 तक के प्रकरणों की जिम्मेदारी सौंपी है।
यह बदलाव ऐसे समय में हुआ है जब जस्टिस यादव अपने बयानों और कार्यशैली को लेकर विवादों में घिरे हुए हैं। हाल ही में उन्होंने एक बयान में कहा था कि न्याय और देश बहुसंख्यकों की मर्जी पर चलना चाहिए, जिससे उन्हें कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा।
इसके अलावा, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के एक कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति ने भी राजनीतिक और सामाजिक हलकों में विवाद को जन्म दिया।
जस्टिस यादव अब तक रेप और यौन उत्पीड़न जैसे बड़े आपराधिक मामलों की बेल याचिकाओं की सुनवाई करते थे। उनके सख्त और विवादास्पद फैसलों के चलते वह अक्सर सुर्खियों में रहते थे।
लेकिन अब उन्हें सिविल मामलों की सुनवाई तक सीमित कर दिया गया है, जो उनके आलोचकों के अनुसार, उनके बयानों के कारण हुआ है।
विपक्ष की नाराजगी और महाभियोग की तैयारी
विपक्षी दलों ने जस्टिस यादव के बयानों को संविधान के खिलाफ बताते हुए उन पर महाभियोग लाने की तैयारी शुरू कर दी है।
विपक्षी नेताओं का कहना है कि एक जज का इस तरह का बयान न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ भी है।
मुख्य न्यायाधीश की भूमिका पर भी सवाल
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव दबाव में किया गया है। हालांकि, हाईकोर्ट प्रशासन की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
कानूनी मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि जस्टिस यादव की बेंच बदलने का फैसला उनके बयानों के कारण लिया गया है। इससे न केवल न्यायपालिका की निष्पक्षता पर असर पड़ सकता है, बल्कि इसका संदेश भी गलत जा सकता है।