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सीतापुर: श्रमिकों की मेहनत पर गहरी चोट, नए आदेश से बेरोज़गारी की आशंका

सीतापुर: उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के सिधौली तहसील क्षेत्र स्थित राजकीय कृषि प्रक्षेत्र में काम करने वाले लगभग 80 से 90 दैनिक श्रमिकों के लिए 15 नवम्बर एक नया संकट लेकर आया। यह घटना पशुपालन विभाग द्वारा संचालित राजकीय कृषि प्रक्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों के लिए किसी बड़े धक्के से कम नहीं है। श्रमिकों ने 14 नवम्बर को लखनऊ स्थित पशुपालन निदेशक कार्यालय में अपनी मांगों को लेकर धरना दिया था, लेकिन अधिकारियों के आश्वासन पर धरना समाप्त कर दिया था।

लेकिन जब ये श्रमिक 15 नवम्बर को काम पर लौटे, तो उन्हें यह जानकर सदमा लगा कि प्रक्षेत्र प्रबंधक सुनील कुमार ने उन्हें अब काम पर रखने से इनकार कर दिया। इस निर्णय का कारण यह बताया गया कि अब कृषि प्रक्षेत्र में काम की उपलब्धता ही नहीं है। हालांकि, प्रक्षेत्र प्रबंधक ने काम पर रखने के लिए एक शर्त भी रखी है कि अब श्रमिकों को महीने में केवल 18 दिन ही काम दिया जाएगा, जबकि पहले ये श्रमिक 26 दिन तक काम करते थे।

यह नया आदेश उन श्रमिकों के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है, जो पहले से 2009 से पहले से इस प्रक्षेत्र में काम कर रहे हैं। सुनील कुमार ने स्पष्ट किया है कि केवल पुराने श्रमिकों को ही काम दिया जाएगा और अन्य श्रमिकों को काम से बाहर रखा जाएगा। इससे बड़ी संख्या में श्रमिकों के सामने रोजगार की कठिनाई आ गई है।

वेतन में बड़ी कमी:

अब जब श्रमिकों को महीने में केवल 18 दिन काम मिलेगा, तो उनके मासिक वेतन में भी भारी कटौती हो जाएगी। पहले, वे प्रत्येक दिन 237 रुपये की दर से काम करते थे और महीने में 6,162 रुपये की कमाई करते थे। लेकिन नए आदेश के बाद, वे केवल 18 दिन काम करने पर 4,266 रुपये ही प्राप्त कर पाएंगे। इस कटौती से उनकी जीवन यापन की स्थिति पर गहरा असर पड़ेगा, क्योंकि उनकी आय में 1,896 रुपये की कमी हो गई है।

श्रमिकों का आक्रोश:

श्रमिकों का कहना है कि जब उन्होंने धरने पर जाने का फैसला लिया था, तो उन्होंने प्रक्षेत्र प्रबंधक सुनील कुमार को इस बारे में लिखित सूचना दी थी कि वे अपनी मांगों के लिए धरने पर जा रहे हैं। उन्होंने उम्मीद की थी कि धरने के बाद उनकी समस्याओं का समाधान होगा, लेकिन अब जब वे काम पर लौटे तो उन्हें यह शर्तें दी जा रही हैं।

श्रमिक नेता इस बदलाव को एक तरह से श्रमिकों के हक को छीनने के रूप में देख रहे हैं। उनका कहना है कि प्रशासन ने इस मामले में श्रमिकों की जायज़ मांगों की अनदेखी की है और अब उनके लिए काम की संख्या घटाकर उनकी स्थिति को और भी बदतर बना दिया गया है।

नई मुसीबत मोल ली:

श्रमिकों का कहना है कि वे संवैधानिक तरीके से अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर थे, ताकि उन्हें बेहतर वेतन, दुर्घटना बीमा और भविष्य निधि जैसी सुविधाएं मिल सकें। लेकिन अब उन्हें न केवल इन सुविधाओं से वंचित किया गया है, बल्कि उनके काम के दिन भी घटा दिए गए हैं। यह स्थिति उनके लिए बड़ी निराशा का कारण बन गई है, क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि प्रशासन उनके हक में कोई कदम उठाएगा, लेकिन इसके बजाय उन्हें एक और नई मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है।

प्रशासन की भूमिका:

इस पूरे घटनाक्रम में प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। श्रमिकों ने अपनी जायज़ मांगों को लेकर धरना दिया था और अधिकारियों से मदद की उम्मीद की थी। लेकिन धरना समाप्त होने के बाद, श्रमिकों को केवल काम के घटने की खबर मिली। इस स्थिति ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या प्रशासन ने इन श्रमिकों के अधिकारों की पूरी तरह से रक्षा की है या फिर उन्हें सिर्फ आश्वासन देकर छोड़ दिया है?

क्या होगा भविष्य?

इस वक्त श्रमिकों के सामने एक बड़ा सवाल यह है कि अब उनका भविष्य क्या होगा। उनके सामने केवल 18 दिन काम की स्थिति है, जो उनके जीवन और उनके परिवार की भरण-पोषण की मुश्किलें बढ़ा देगा। क्या प्रशासन अपनी नीति में बदलाव करेगा, या श्रमिकों को इसी स्थिति में छोड़ दिया जाएगा, यह समय बताएगा।

इस घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि श्रमिकों की आवाज को सिर्फ आश्वासन देकर दबाया नहीं जा सकता। अब श्रमिक नेताओं और सरकारी अधिकारियों के बीच की बातचीत यह तय करेगी कि इस स्थिति का समाधान कब और कैसे होगा।

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