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‘क्रीमि लेयर’ को SC/ST आरक्षण से बाहर करने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट का अहम कदम

नई दिल्ली। भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में कहा कि SC/ST आरक्षण में ‘क्रीमि लेयर’ की अवधारणा को लागू करना और इस वर्ग से संबंधित गरीबों को आरक्षण के लाभ से बाहर रखना एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर अंतिम निर्णय सरकार और विधानमंडल को लेना चाहिए। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह मुद्दा केवल न्यायपालिका का नहीं है, बल्कि इसका समाधान सरकार और संसद को मिलकर करना होगा।

यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ द्वारा दी गई, जिसमें न्यायमूर्ति गवई के साथ न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसिह भी शामिल थे। कोर्ट ने इस मुद्दे पर सुनवाई के दौरान कहा कि जिन SC/ST वर्ग के लोगों ने आरक्षण के लाभ को पहले ही प्राप्त किया है और वे अब समाज में अन्य लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हैं, उन्हें आरक्षण के लाभ से बाहर रखा जा सकता है।

इससे पहले, अगस्त 2024 में एक संविधान बेंच ने इस मामले पर चर्चा की थी और न्यायमूर्ति गवई ने अपने अलग विचार में कहा था कि SC/ST वर्ग के लिए ‘क्रीमि लेयर’ की अवधारणा लागू की जानी चाहिए। उनका मानना था कि यदि क्रीमि लेयर को आरक्षण से बाहर किया जाता है, तो यह समाज में वास्तविक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

इस महत्वपूर्ण मामले की शुरुआत एक जनहित याचिका से हुई थी, जिसे संतोष मालविया ने दायर किया था। याचिका में मांग की गई थी कि SC/ST वर्ग के क्रीमि लेयर को आरक्षण के लाभ से बाहर किया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि सिर्फ वास्तविक गरीबों को ही इसका लाभ मिले। कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार और संसद को इस मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए कहा।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि संविधान के तहत SC/ST आरक्षण का उद्देश्य समाज में समानता लाना है। लेकिन, जब कुछ लोग पहले ही आरक्षण के लाभ का लाभ उठा चुके हैं और उनकी आर्थिक स्थिति अब अन्य सामान्य वर्गों के बराबर हो चुकी है, तो उन्हें आरक्षण के लाभ से बाहर करना समाज के लिए बेहतर होगा। इसके लिए एक क्रीमी लेयर की पहचान की आवश्यकता है, ताकि जरूरतमंदों को ही इसका फायदा मिल सके।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह केवल केंद्र सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि राज्य सरकारों और विधानमंडल को भी इस मुद्दे पर अपना निर्णय लेना चाहिए। इससे यह साफ हो गया कि अब यह मामला न्यायपालिका से बाहर जाकर सरकार और संसद के पास जाएगा, जो इसे लागू करने के लिए आवश्यक नीति बना सकते हैं।

जैसा कि हम जानते हैं, ‘क्रीमि लेयर’ का विचार सामान्यत: OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए लागू किया गया था, ताकि समाज के आर्थिक रूप से मजबूत हिस्से को आरक्षण के लाभ से बाहर रखा जा सके। न्यायमूर्ति गवई के अनुसार, SC/ST वर्ग में भी एक ऐसी क्रीमी लेयर हो सकती है, जो इस वर्ग की वास्तविक जरूरतमंद लोगों से अलग हो चुकी हो। उनके अनुसार, इस अवधारणा को SC/ST के संदर्भ में अलग से परिभाषित किया जाना चाहिए, ताकि केवल उन लोगों को आरक्षण के लाभ मिले, जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता है।

इस फैसले के बाद, कई राजनीतिक दलों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए हैं। कांग्रेस ने इसे एक संवेदनशील मुद्दा बताया और सरकार से इस पर व्यापक विचार-विमर्श करने की अपील की। वहीं, बीजेपी ने इसे एक सकारात्मक कदम बताया, जिससे सामाजिक समानता को बढ़ावा मिलेगा।

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